निजी कंपनी के फायदे के लिए आरजीपीवी में ऑफ ग्रिड सौर ऊर्जा प्लांट पर फोकस

 आरजीपीवी
  • शर्तों में कई तरह के रखरखाव वाले प्रावधानों की अनदेखी…

    भोपाल/अपूर्व चतुर्वेदी/बिच्छू डॉट कॉम। 
    निजी बिजली कंपनियों से किए गए 25 साल के करार की वजह से हर साल हजारों करोड़ रुपए का नुकसान उठाने के बाद भी मध्यप्रदेश में बिजली के मामले में निजी कंपनियों को फायदा पहुंचाने के प्रयास लगातार किए जा रहे हैं। यह हाल तब हैं जबकि मप्र की सरकार आर्थिक संकट के बेहद खराब दौर से गुजर रही है। इसी तरह का एक फैसला राजधानी में स्थित आरजीपीवी विश्वविद्यालय द्वारा ले लिया गया है , जिसमें सस्ती  ऑन ग्रिड सौर ऊर्जा को छोड़कर महंगी  ऑफ ग्रिड पर पूरा फोकस किया जा रहा है। दरअसल हाल ही में 12 पॉलिटेक्निक कॉलेजों में इसके बिजली के लिए खुद के प्लांट लगाने का फैसला किया गया है। इसके बाद अन्य इंजीनियरिंग व तकनीकी कॉलेजों में भी इसी तरह के प्लांट  लगाने की योजना है। इसके लिए हाल ही में सौर ऊर्जा के ब्रांड एम्बेसडर बनाए गए स्वराज एनर्जी फाउंडेशन के प्रमुख चेतन सिंह सोलंकी के साथ तकनीकी शिक्षा विभाग और राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय ने एक  एमओयू साइन किया है। इसमें  ऑफ ग्रिड का तरीका तय किया गया है। यही वजह है कि इस मामले में अब कई तरह के गंभीर सवाल खड़े होने लगे हैं। इसकी वजह है कंपनी के तहत किए करार के मुताबिक उसकी अवधि 25 साल नियत की गई है।  
    प्लान यह कि कॉलेज सौ फीसदी सौर ऊर्जा से ही रोशन हों, लेकिन सवाल यह बने हुए हैं कि 25 साल तक प्लांट की बैटरी को कौन देखेगा, किस प्रकार रिप्लेसमेंट होगा, फेल होने पर क्या होगा इस पर कोई ठोस कदम नहीं है। उल्लेखनीय है कि मप्र सरकार द्वारा निजी लोगों से थर्मल बिजली में 25 साल के लिए किए गए करार अब प्रदेश के लिए सिरदर्द बने हुए हैं।
    यह है प्लान
    फिलहाल प्लान 12 पॉलिटेक्निक कॉलेजों में  ऑफ ग्रिड सोलर प्लांट लगाने का है। इससे करीब 80 से 90 फीसदी सौर ऊर्जा डायरेक्ट कनेक्शन से इस्तेमाल होगी। उसे  ऑन ग्रिड नेट मीटरिंग की तरह बेचा नहीं जाएगा। वहीं रात और शाम के समय की जरूरत के हिसाब से 10 से 20 फीसदी बिजली स्टोरेज की जाएगी।
    यह होगा नुकसान  
     ऑफ ग्रिड की स्थिति में बनी हुई बिजली को स्टोर करना होगा। हालांकि आरजीपीवी का कहना है कि सिर्फ 5 से 10 फीसदी बिजली ही स्टोरेज की जाएगी, बाकी डायरेक्ट कनेक्शन से इस्तेमाल होगी। लेकिन, परेशानी ये कि स्टोरेज के लिए हैवी-बैटरी लगाना होगी। इसे अधिकतम पांच साल में बदलना पड़ता है। तीन किलो वॉट पर चार बैटरी लगना है। एक बैटरी औसत पंद्रह हजार रुपए की आती है। इससे 60 हजार रुपए की बैटरी बदलना होगी। एक्सपर्ट के मुताबिक दूसरा सबसे बड़ा नुकसान  ऑफ ग्रिड बिजली भी महंगी है और उसे बेच नहीं सकते।  ऑन ग्रिड बिजली बैटरी खर्च न होने के कारण 38 से 40 रुपए प्रति वॉट पड़ेगी, जबकि यह 65 से 70 रुपए प्रति वॉट रहेगी।  ऑन ग्रिड बिजली एक प्लांट पर औसत 70 हजार रुपए की 1 किलो वॉट पर रहेगी। वहीं  ऑफ ग्रिड में यह लागत 140 हजार हो जाएगी।  ऑन ग्रिड प्लांट पर पैनल स्टॉलेशन 1.20 लाख का रहेगा, जबकि  ऑफ ग्रिड में 2.10 लाख रुपए का पड़ेगा।  ऑन ग्रिड सौर ऊर्जा प्लांट लगाने में सरकारी आर्थिक मदद का प्रावधान भी है। आवासीय सौर ऊर्जा की स्थिति में तीन किलो वॉट तक चालीस फीसदी तक की आर्थिक मदद मिल जाती है। गैर आवासीय में आर्थिक मदद नहीं है, लेकिन इसके प्रोजेक्ट को राज्य व केंद्र से मंजूर कराया जा सकता है। जबकि  ऑफ ग्रिड में कोई मदद नहीं है।  

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