अब कर्जमाफी के लिए प्रदेश के किसान लेंगे न्यायालय की शरण

कर्जमाफी
  • कर्जमाफी प्रमाणपत्र के बाद भी बैंकों द्वारा बनाया जा रहा है डिफाल्टर

    भोपाल/अपूर्व चतुर्वेदी/बिच्छू डॉट कॉम। कर्जमाफी के मामले में अब प्रदेश की भाजपा सरकार की मुश्किलें बढ़ने वाली है। इस मामले में अब प्रदेश के किसानों ने न्यायालय की शरण में जाने का मन बना लिया है। दरअसल किसान कर्ज माफी के रुप में कांग्रेस ने वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में मास्टर स्ट्रोक लगाया था। इसकी वजह से ही डेढ़ दशक बाद कांग्रेस प्रदेश की सत्ता को हासिल कर सकी थी। यह बात अलग है कि आपसी खींचतान की वजह से ही उसे असमय सरकार से बाहर होना पड़ा। सरकार से बाहर होते ही प्रदेश की सत्ता में आयी भाजपा की शिव सरकार ने इस योजना पर विराम लगा दिया। जिसकी वजह से कर्जमाफी से शेष रहे किसानों का कर्ज माफ नहीं हो सका। इस बीच कर्जमाफी की आस में उनके द्वारा कर्ज का चुकारा भी नहीं किया गया , जिसकी वजह से वे डिफाल्टर की श्रेणी में आ गए। कांग्रेस सरकार के समय किसानों के 2 लाख तक के कृषि ऋण माफ करने की रणनीति बनाई गई और उस पर अमल करना शुरू कर दिया गया था। इस योजना के तहत करीब 35 लाख किसानों के कर्ज माफ होने थे। सरकार के पास पैसे की कमी थी , लिहाजा किस्तों में कुछ हजार किसानों का ही कर्ज माफ किया जा सका। सरकार ने वादा किया कि धीरे-धीरे कई चरणों में कर्ज माफ किए जाएंगे, इससे किसानों की उम्मीद जग गई और किसानों ने बैंक का कर्ज वापस करना बंद कर दिया। सरकार बदली तो शिवराज सरकार इस योजना के बारे में पूरी तरह से चुप्पी साध ली। इसका असर यह हुआ कि जिन किसानों को कर्ज माफी का प्रमाण पत्र तक दे दिया गया था, उनसे अब बैंक कर्ज का तगादा करने गले हैं। इसका उदाहरण है जबलपुर के जरोद गांव के किसान केशव पटेल। उनके पास  5 एकड़ खेती की जमीन है। उनकी मां कृष्णाबाई के नाम पर 2018 में करीब 70 हजार का खेती का कर्ज था, जिसे उनके द्वारा सहकारी बैंक से लिया गया था। सरकारी योजना के तहत उन्हें बैंक की ओर से कर्ज माफी का प्रमाण पत्र दे दिया गया, जिसमें यह स्पष्ट लिखा था कि उनका कर्ज माफ कर दिया गया है, लेकिन अब उन पर बैंक अधिकारी दबाव बना रहे हैं कि वह अपना पुराना कर्जा जमा करें। यही नहीं उनका नाम भी बैंक की डिफाल्टर सूची में  डाल दिया गया।  कुछ किसान ऐसे भी हैं, जिनका नाम लिस्ट में है, लेकिन उनका कर्ज माफ नहीं हुआ। यह पता तब चला जब उनके द्वारा अपनी फसल बेंची गई तो बैंक ने उसकी रकम से किस्त काट ली।
    फिर किसान कर्ज माफी का दावा कर रही कांग्रेस  
    इस मामले में भाजपा और कांग्रेस दोनों ही यह मानने को तैयार नहीं है कि उनकी नीतियों के चलते किसान कर्जदार होकर बर्बाद हो रहे हैं। कांग्रेस कह रही है कि अगर 2023 में फिर उनकी सरकार बनी तो वे फिर से कर्जमाफी करेंगे। हालांकि किसान इस मामले में कांग्रेस सरकार को ही अधिक दोषी मान रही है। कांग्रेस का दावा है कि उसकी सरकार में 27 लाख किसानों का कर्ज माफ कर दिया गया था, अब बीजेपी सरकार को शेष किसानों का कर्जा माफ करना चाहिए। उधर भाजपा का तर्क इस मामले में अलग है। प्रदेश के चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग का कहना है कि भाजपा ने कभी किसानों की कर्जमाफी की बात ही नहीं की, बीजेपी किसानों को आत्मनिर्भर बना रही है। बीजेपी की सरकार किसानों को शून्य ब्याज पर ऋण देती है, किसान 1 लाख का लोन लेता है और उसे 90 हजार रुपए ही वापस करना होते हैं। खेती को लाभ का धंधा बनाने के लिए राज्य सरकार लगातार योजनाएं चला रही है।
    यह बने हुए हैं हाल  
    भारत कृषक समाज के संरक्षक केके अग्रवाल का कहना है कि उनके संगठन के सैकड़ों किसानों के पास भी कर्ज माफी के सर्टिफिकेट हैं, जिनमें कमलनाथ का फोटो लगा हुआ है और कर्ज माफी का सर्टिफिकेशन किया गया है, लेकिन बैंक उन्हें डिफाल्टर मान चुका है, जिसके चलते 2018 के बाद से लाखों किसानों को बैंक से नया कर्ज नहीं मिल पा रहा ह ै। उनका कहना  है कि कर्जमाफी किसानों का हक था क्योंकि किसानों को उनकी फसल का सही मूल्य सरकार की वजह से ही नहीं मिल पा रहा है, इसलिए उनका कर्जमाफी करना जरूरी है। उनका कहना है कि किसानों से बैंक अधिकारी साहूकार जैसा बर्ताव कर रहे हैं, जिसकी वजह से ग्रामीण भारत की स्थिति बिगड़ने लगी है, किसान संगठनों का कहना है कि वे अब इस मुद्दे को लेकर वह कोर्ट जाएंगे।

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