केन-बेतवा लिंक परियोजना में अब दो हजार हेक्टेयर जमीन का फंसा पेंच

केन-बेतवा लिंक

भोपाल/अपूर्व चतुर्वेदी/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र की केन-बेतवा परियोजना में एक के बाद एक पेंच फंसता जा रहा है। हालत यह है कि एक समस्या का समाधान हो नही पता है दूसरी खड़ी हो जाती है। अब इसकी राह में नया पेंच जमीन का फंस गया है। वन महकमे ने जरुरत से दो हजार हेक्टेयर जमीन कम देने का अंड़गा लगा दिया है। इसकी वजह से परियोजना के लिए जरुरी 6017 हेक्टेयर जमीन में से दो साल की कवायद के बाद 4 हजार हेक्टेयर जमीन ही मिलने का रास्ता साफ हो पाया है। यह जमीन  पन्ना नेशनल पार्क के पास है। इसमें भी अभी बड़ा पेंच फंसा हुआ है। इसके लिए परियोजना के बदले जमीन देने के नियमों में बदलाव करना होगा या फिर वन एवं पर्यावरण मंत्रालय द्वारा विशेष आदेश जारी करना होगा तभी इस परियोजना को मंजूरी मिल पाएगी। दरअसल केन-बेतवा लिंक परियोजना में पन्ना नेशनल पार्क की 6017 हेक्टेयर जमीन डूब में आएगी, जिसमें 4200 हेक्टेयर कोर एरिया का और 2 हजार हेक्टेयर के करीब बफर एरिया का क्षेत्र है। इस मामले में जल संसाधन विभाग को कोर एरिया के बदले जमीन मिल सकती है, लेकिन बफर एरिया के तहत आने वाली जमीन का जो क्षेत्र है, उसके बदले में जमीन मिलना मुश्किल है। इस मामले में सिंचाई विभाग का मानना है कि ऐसे वन क्षेत्र में पौधरोपण किया जाना चाहिए, जहां पर वनों की उजाड़ स्थिति हो। सिंचाई विभाग इस जमीन पर होने वाले वनों के नुकसान के एवज में 10 लाख रुपए प्रति हेक्टेयर पौधरोपण के लिए बतौर एडवांस राशि जामा कराने को तैयार है। फिलहाल वन विभाग ने इस प्रस्ताव को केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय को भेज दिया है, अब इस मामले में वन एवं पर्यावरण मंत्रालय को ही अंतिम निर्णय करना है।
परियोजना से इन जिलों को होगा फायदा
इस परियोजना से मप्र के पन्ना, टीकमगढ़, छतरपुर, सागर, दमोह, दतिया, विदिशा, शिवपुरी और रायसेन जिले को सीधा फायदा मिलेगा , जबकि अप्रत्यक्ष रूप से कई जिले लाभान्वित होंगे। वहीं, पड़ौसी राज्य उत्तर प्रदेश के बांदा, महोबा, झांसी और ललितपुर जिले को इसका फायदा मिलेगा। इस परियोजना से मप्र के  बुंदेलखंड अंचल के तहत आने वाले इन नौ जिलों में 8 लाख 11 हजार हेक्टेयर असिंचित क्षेत्र में सिंचाई की सुविधा मिल जाएगी।  इसी तरह से उप्र की चार लाख हेक्टेयर जमीन की सिंचाई सुविधा में वृद्धि हो जाएगी। जिसकी वजह से दोनों ही राज्यों में 12 लाख हेक्टेयर भूमि में दो-तीन फसलें लेने की सुविधा मिल जाएगी।  इसके अलावा करीब 41 लाख लोगों को पेयजल की सुविधा मिल जाएगी। वर्ष 2017-18 में लगाए गए अनुमान के मुताबिक परियोजना की लागत करीब 35 हजार 111 करोड़ रुपए थी, जिसमें अब वृद्धि होना तय है।  इसमें कुल लागत का 90 प्रतिशत केन्द्र सरकार वहन करेगी , जबकि शेष राशि राज्यों को देनी होगी।  
बाघों को हो सकती है मुश्किल
इस परियोजना से बाघ विचरण का क्षेत्र कम होना तय है। इसकी वजह है परियोजना से आस-पास  के इलाके के जंगल में हर मौसम में पानी भरा रहेगा। इसके अलावा नेशनल पार्क के आस पास अगर दो हजार हेक्टेयर जमीन नहीं मिलती है तो भी बाघ विचरण इलाके में कमी आना तय है। इससे पन्ना नेशनल पार्क का क्षेत्रफल तीन हजार हेक्टेयर के लगभग कम होने का अनुमान है।

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