![प्रदेश सरकार](https://www.bichhu.com/wp-content/uploads/2021/08/5-8.jpg)
भोपाल/राजीव चतुर्वेदी/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र ऐसा राज्य है जिसमें प्रदेश सरकार ने बीते डेढ़ दशक में रिक्त पड़े सरकारी पद भरने में कभी भी कोई रुचि नहीं ली है। इसके बाद भी जब भी राजनैतिक फायदा लेने का मौका आता है, तब रोजगार व अन्य लोकलुभावन वाली घोषणाओं को करने में पीछे नहीं रहती है, लेकिन जैसे ही मौका निकलता है सरकार अपना वादा भूल जाती है। यही हाल है एक साल पुरानी उन घोषणाओं का जो प्रदेश में उद्यानिकी और कृषक मित्रों की नियुक्तियों को लेकर की गई थी।
यह घोषणाएं बीते साल विधानसभा की 28 सीटों पर होने वाले उपचुनाव से पहले की गई थीं। इसका फायदा भी भाजपा को मिला, लेकिन इसके बाद इन घोषणाओं को भुला दिया गया, जिसके बाद से ही युवा बेरोजगारों से बुलाए गए आवेदन फाइलों में दफन कर दिए गए। इसकी वजह से वे अब भी अपनी नियुक्तियों को लेकर परेशान बने हुए हैं, जिसकी वजह से उनमें अब सरकार को लेकर गहरी नाराजगी की स्थिति बन रही है। दरअसल उद्यानिकी और कृषक मित्रों की नियुक्तियों की घोषणा उस समय कृषि मंत्री कमल पटेल और उद्यानिकी विभाग के मंत्री भारत सिंह कुशवाहा द्वारा अलग-अलग की गई थी।
इसके लिए आधिकारिक तौर पर विभागीय अधिकारियों को भी निर्देश दिए गए थे। उपचुनावी समय होने की वजह से विभागों ने उस समय तो इस मामले में बेहद सक्रियता दिखाई, लेकिन उपचुनाव निकलने के बाद इस पूरे मामले को ही भुला दिया गया। इन पदों को लेकर उस समय बेरोजगारों से आवेदन भी जमा करा लिए गए थे। इसके लिए आवेदन देने वाले ग्रामीण इलाकों के युवाओं को लग रहा था कि अब उनका कृषक मित्र बनना तय है। इसके बाद इन आवेदनों पर अफसरशाही ने ऐसी कुंडली मारी कि वे फाइलों में दफन की स्थिति में पहुंच गए हैं।
योजना के तहत हर पांच ग्राम पंचायतों में एक उद्यानिकी मित्र और ग्राम पंचायत में एक कृषक मित्र की नियुक्ति की जानी थी। इस हिसाब से 26 हजार कृषक मित्रों की और करीब 6 हजार उद्यानिकी मित्रों की नियुक्त किया जाना था। इन सभी को मानदेय के रुप में एक तय राशि के भुगतान की भी उस समय तैयारी की गई थी। इन पदों पर भर्ती के लिए बड़ी संख्या में जिलों में ग्रामीण युवाओं ने कृषि और उद्यानिकी उप संचालक कार्यालयों में अपने-अपने आवेदन भी जमा करा दिए थे। इसके बाद एक साल से अधिक का समय निकल चुका है, लेकिन अब तक न कृषक मित्र भर्ती किए गए और न ही उद्यानिकी मित्रों की नियुक्ति की गई है।
शिव सरकार ने इन पदों पर नियुक्ति की घोषणा उस समय किसानों के बीच अपनी बात पहुंचाने के लिए की थी। इसके तहत सरकार की मंशा इन कृषक मित्रों के जरिए सरकार द्वारा किसानों के हित में लिए जा रहे फैसलों और खेती-किसानी से जुड़ी योजनाओं का प्रचार-प्रसार करना था। जैसे ही उपचुनाव में 28 में से 19 सीटें जीतकर भाजपा सरकार को पूरा बहुमत हासिल हुआ मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। घोषणा के बाद जिन युवा बेरोजगारों ने आवेदन दिए थे, वे अब भर्ती का इंतजार करने को मजबूर बने हुए हैं। अब इस मामले में देरी के लिए पहले उपचुनाव और अब कोरोना संक्रमण का बहाना बनाया जा रहा है।
इन्हें बनाया जाना है मित्र
उद्यानिकी राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) भारत सिंह कुशवाहा ने विभागीय अधिकारियों को हर पांच ग्राम पंचायतों में एक उद्यानिकी मित्र की भर्ती करने को कहा था। इसमें उन्हें ही मित्र बनाए जाने के निर्देश दिए गए थे, जो उद्यानिकी फसलों का उत्पादन कर रहे हैं और उन्हें इस क्षेत्र की पूरी जानकारी हो। इसके अलावा जो दूसरे किसानों को उन्नत फल, फूल सब्जी के उत्पादन, विपणन और प्रोसेसिंग की जानकारी दें और प्रेरित कर सकें। उन्हें मानदेय देने का भी प्रावधान किया गया है।
नाथ सरकार बनाना चाहती थी कृषक बंधु
भाजपा की शिव सरकार के पहले प्रदेश में बनी कमलनाथ सरकार भी कृषक बंधु के नाम से ग्रामीण बेरोजगारों को भर्ती करने की योजना बना चुकी थी। इनकी नियुक्ति दो ग्राम पंचायतों में एक कृषक बंधु की होनी थी। इनका काम सरकार और किसान के बीच कड़ी के रुप में करने का था। इसके अलावा उनसे सरकार की योजनाओं की जानकारी किसानों तक पहुंचाकर उनकी समस्याओं को कृषि विभाग के माध्यम से सरकार तक पहुंचाने का काम लिया जाना था। उस समय इन्हें हर माह बतौर मानदेय एक हजार रुपए देने की भी तैयारी की गई थी। इस पर अमल हो पाता इसके पहले ही नाथ सरकार को असमय ही सत्ता से बाहर होना पड़ा।
अफसरशाही नहीं ले रही रुचि
दरअसल प्रदेश में अफसरशाही सरकार के हर निर्णय के पालन पर भारी पड़ती है। इसकी वजह से सरकार की घोषणाओं पर अमल होने में बेहद देरी की जाती है। खासतौर पर नियुक्तियों के मामले में जिम्मेदार अफसर ऐसे उलझाते हैं कि सरकार व बेरोजगार उसमें उलझकर चकरघिन्नी बनने को मजबूर बने रहते हैं। यही वजह है कि प्रदेश में कई भर्तियों की परीक्षा होने व उनके परिणाम जारी होने के बाद भी नियुक्ति आदेश तक कई सालों से अटके हुए है। अगर यही मामला आला अफसरों से संबंधित होता है तो उसकी फाइलें इतनी तेज रफ्तार से दौड़ती हैं कि सप्ताह के अंदर ही उनके पुनर्वास के आदेश जारी होकर उनका पालन तक हो जाता है।