शिवराज जी! जहरीली शराब बनाने वालों पर नकेल कसें

 शिवराज सिंह चौहान

भोपाल/प्रणव बजाज/बिच्छू डॉट कॉम। आबकारी, पुलिस और प्रशासन के अफसरों के नकारापन की वजह से अब मप्र की पहचान जहरीली शराब पीने से होने वाली मौतों वाले प्रदेश के रूप में होती जा रही है। प्रदेश में अब इस तरह की मौतों का होना आम होता जा रहा है। इसके बाद भी संबंधित अफसरों का जमीर नहीं जाग रहा है। यही वजह है कि अब प्रदेश में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से जहरीली शराब बनाने व बेचने वालों पर नकेल कसने की मांग उठना शुरू हो गई है। प्रदेश में यह हालात तब है जबकि लगातार चौथी बार सत्ता में आने के बाद स्वयं चौहान ने सार्वजनिक रूप से एक नहीं बल्कि कई बार प्रदेश में फल-फूल रहे तमाम तरह के माफियाओं को सख्त लहजे में चेताया था। दरअसल हाल ही में मंदसौर जिले के एक गांव में सात मौत होने के बाद भी प्रशासन व जिम्मेदार अफसरों की नींद नहीं टूटी , जिसकी वजह से इसी तरह की घटना अब प्रदेश की आर्थिक राजधानी कहलाए जाने वाले इंदौर शहर में हो गई।
यहां पर दो बार संचालकों ने अधिक मुनाफा कमाने के चक्कर में एक नामी ब्रांड की ही जहरीली शराब बेंच डाली , जिसके पीने से पांच लोगों की मौत हो गई। इस मामले का खुलासा होने पर पहले तो आबकारी अमला ऐसी किसी घटना से ही इंकार करता रहा और जब मामले ने तूल पकड़ा तो अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ने के लिए बहाने बनाने शुरू कर दिए। हालांकि इस मामले में न तो अब तक किसी सरकारी कर्मचारी पर कोई कार्रवाई हुई है और न ही कोई जांच दल ही बनाया गया है। दरअसल प्रदेश की अफसरशाही इतनी निरंकुश और निष्क्रिय हो चुकी है कि उसे न तो सरकार के निर्देशों की परवाह रहती है और न ही आमजन की जान की परवाह।
मंदसौर में सात लोगों की जान जाने के बाद हर बार की ही तरह इस बार भी सरकार द्वारा डॉ राजौरा को इस मामले की जांच का जिम्मा सौंप दिया गया। खास बात यह है कि मुरैना में जहरीली शराब से हुई 26 मौतों के बाद भी एक एसआईटी का गठन किया गया था, जिसकी कमान एसीएस डॉ राजौरा को ही सौंपी गई थी। उनकी अगुवाई वाली एसआईटी ने उस मामले में एक रिपोर्ट कुछ सुझावों के साथ सरकार को सौंप दी थी, लेकिन उस पर आजतक अमल ही शुरू नहीं किया गया है, ऐसे में मंदसौर हादसे की जांच रिपोर्ट पर सरकार द्वारा कोई कार्रवाई की जाएगी, इस पर भी संदेह बना हुआ है। असल में प्रदेश सरकार इस तरह के मामलों में बड़े जिम्मेदार अफसरों पर तो कार्रवाई करती ही नहीं है, दिखावे के लिए एक दो छोटे कर्मचारियों पर जरुर कार्रवाई कर देती है। यही नहीं जब भी कोई इस तरह की बड़ी घटना होती है तो तमाम तरह के दावे और वादे किए जाते हैं, लेकिन मामला शांत होने के बाद उन्हें पूरी तरह से भुला दिया जाता है और जिम्मेदारों को लूपलाइन की जगह और अधिक मलाईदार जगहों पर पदस्थ कर दिया जाता है। प्रदेश में हो रही लगातार जहरीली शराब से मौतों के बाद भी आबकारी महकमा सक्रिय नहीं हो पा रहा है।
 ऐसे मामलों में तो पुलिस फिर भी कभी -कभी सक्रियता दिखा देती है, लेकिन मजाल है कि आबकारी महकमा कोई कार्रवाई करता हो। इस विभाग का अमला इस तरह के मामलों में महज खानापूर्ति ही करता रहता है। यह वो विभाग है, जिस पर सरकार तो ठीक प्रशासन भी पूरी तरह से मेहरबान बना रहता है। इसी वजह से शराब माफिया को संरक्षण देने के आरोपों के बाद भी आबकारी अमले के खिलाफ सरकार इन पर कार्रवाई करने की जुर्रत तक नहीं कर पाती है। इसकी वजह है उनका रसूखदार होना। यह रसूख की वजह क्या है सभी जानते हैं। कार्यवाही न होने की बेफिक्री की वजह से बैखौफ हो चुके आबकारी अमले की वजह से शराब माफिया विभागीय मंत्री जगदीश देवड़ा के इलाके में भी खूब फलफूल रहा है। यही वजह है कि विभागीय मंत्री के ही इलाके में सात लोगों को शराब से मौत का शिकार होना पड़ा है। प्रदेश में अवैध शराब का कारोबार करने वाले माफिया पर कार्रवाई के मामले में पुलिस व आबकारी अमले में आपसी सामंजस्य का तो पूरी तरह से अभाव बना हुआ है।
15 माह पहले हुई घटना से नहीं लिया सबक  
प्रदेश में करीब 15 माह पहले जहरीली शराब से चार मौतें हुई थीं, तब भी न तो सरकार ने और न ही विभाग ने कोई सबक लिया, जिसकी वजह से यह माफिया बेखौफ होकर जहरीली शराब बेचता रहा और लोग मरते रहे। सरकार व प्रशासन की नींद तब खुली जब 11 जनवरी को एक साथ मुरैना जिले में जहरीली शराब पीने से एक साथ 26 लोग काल कवलित हो गए। केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर के संसदीय क्षेत्र और श्रीमंत के इलाके के इस मुरैना जिले में हुई इस घटना के बाद सरकार और इन नेताओं की हो रही बदनामी के बाद बाद सरकार से लेकर प्रशासन तक हरकत में आया और ताबड़तोड़ कार्रवाही शुरू की गई थी, लेकिन कुछ दिनों बाद उस पर पूरी तरह से विराम लग गया।  इसके साथ ही गृह विभाग के प्रशासनिक मुखिया अपर मुख्य सचिव राजेश राजौरा की अगुवाई में एक विशेष जांच दल गठित किया गया।
एसआईटी इसकी जांच रिपोर्ट सीएम को सौंपी चुकी है। जिसमें इस तरह घटनाओं को रोकने के लिए कई अहम सुझाव दिए गए थे। इन सुझावों पर अब तक भी अमल शुरू नहीं किया गया है। अब एक के बाद एक अब तक हो चुकी दो घटनाओं से एक बार फिर से मैदानी अफसरों की भूमिका पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। इसकी बड़ी वजह है मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा कलेक्टर एसपी को माफिया की जड़ों को पूरी तरह से काटने के दिए गए निर्देशों का पालन नहीं किया जाना। इसकी वजह से माफिया को लगातार फलने फूलने का मौका मिल रहा है, जिसकी वजह से यह माफिया पूरी तरह से बैखोफ हो चुका है।
प्रदेश में कब कहां और कितनी हुई मौतें
गौरतलब है कि प्रदेश में अक्टूबर 2020 में उज्जैन में जहरीली शराब पीने से 14 लोगों की मौत हुई थी , जिसके बाद 11 जनवरी 2021 को मुरैना में जहरीली शराब पीने से 26 लोगों की मौत हो गई थी। इसके पहले बीते साल 2 मई को रतलाम जिले में जहरीली शराब पीने की वजह से 4, 6 सितंबर को एक बार फिर इसी जिले में दो लोगों की और फिर 15 अक्टूबर को उज्जैन में 14 व 7 जनवरी को खरगौन में दो लोगों की मौत हुई थी।
निगरानी की जगह अफसरों की सुरक्षा में कर दी तैनाती
आबकारी विभाग ने अमले का रोना रोते हुए अवैध शराब का कारोबार रोकने के लिए शासन से होमगार्ड कर्मचारियों की मांग की गई थी। इसके बाद शासन ने दो सैकड़ा होमगार्ड जवान भी आबकारी विभाग को उपलब्ध करा दिए, लेकिन उनका उपयोग निगरानी में करने की जगह अफसरों ने अपना रसूख बढ़ाने के लिए उन्हें अपनी सुरक्षा में तैनात कर लिया।
सरकार की नीति भी दोषी
दरअसल इस तरह के माफिया के पनपने के लिए सरकार की शराब नीति भी दोषी है। नाथ सरकार ने शराब लॉबी के दबाब में ऐसी शराब नीति बनाकर लागू की थी कि पूरे प्रदेश में शराब सिंडीकेट खड़ा हो गया। इस सिंडीकेट के पास ही प्रदेश में अधिकांश शराब के ठेके हैं। यह सिंडीकेट इतना ताकतवर है कि उसके द्वारा मनमाने दामों पर शराब बेची जा रही है , लेकिन विभाग व प्रशासन उस पर कार्रवई करने की हिम्मत नहीं दिखा पा रहा है। जिसकी वजह से शराब के शौकीनों को सस्ती शराब के चक्कर में अवैध रुप से बिकने वाली शराब को पीना पड़ रहा है। हद तो यह हो गई कि इसी नीति को अब शिव सरकार भी आगे बढ़ा रही है। इसकी वजह से प्रदेश के दूर दराज के इलाकों में तो ठीक राजधानी के सीमायी इलाकों में भी बड़े पैमाने पर अवैध शराब बनने और बिकने लगी है। इसके बाद भी मजाल है कि पुलिस, आबकारी या फिर जिला प्रशासन का अमला उन पर कार्रवाई करता हो। दरअसल यही अड्डे सरकारी अमले के लिए कमाई का जरिया बन चुके हैं।
यह कहा था सीएम शिवराज सिंह ने
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सार्वजनिक रुप से गुंडे-माफियाओं को खुली चेतावनी देते हुए कहा था कि ऐसे लोग प्रदेश को छोड़ दें, अन्यथा  उन्हें जमीन के 10 फुट नीचे गाड़ दिया जाएगा। मप्र में दुष्टों और बदमाशों की नहीं चलेगी। मैं दुष्टों के लिए वज्र से ज्यादा कठोर हूं। कुछ लोग ऐसे होते हैं जो जनता की जिंदगी से खेलते हैं। जो युवाओं का भविष्य चौपट और बर्बाद करते हैं। ऐसे दुष्टों को हम किसी भी कीमत पर नहीं छोड़ेंगे। मप्र में दुष्टता और बदमाशी नहीं चलने दूंगा। जो जनता की जिंदगी से खेलेंगे उनको हम तबाह कर देंगे।
इस तरह से झाड़ रहे हैं अफसर पल्ला
इंदौर में नकली शराब से हुई युवकों की मौत के मामले में पहले तो आबकारी विभाग मौत की वजह अत्यधिक शराब का सेवन करना बताता रहा, लेकिन पुलिस ने अपनी जांच में जब उनकी मौत जहरीली शराब से होने का खुलासा किया तो अब आबकारी विभाग को भी जहरीली शराब से मौतों को मानना पड़ा है। अब सहायक आबकारी आयुक्त राजनारायण सोनी ने अपनी जिम्मेदारी से बचने के लिए खुले माल की काउंटिंग न करने का नया बहाना खोज लिया है। जबकि पुलिस को बीयर बार संचालकों से पूछताछ में पता चला है कि लाइसेंसी दुकानों के अलावा बाहर से भी सस्ती शराब उनके द्वारा खरीद कर बेची जा रही है। पुलिस का कहना है कि स्थानीय स्तर पर रॉयल स्टैग की बोतलों में हल्की अथवा नकली शराब भरकर बेची जा रही है।
इस तरह से बढ़ता गया मौत का आंकड़ा
शहर के स्कीम नंबर 155 स्थित पैराडाइज में 23 जुलाई को पहली घटना हुई थी। इस बार में सागर पाटिल अभिषेक और शिशिर नामक युवा पार्टी मनाने पहुंचे थे। इन लोगों के बारे में रॉयल स्टैग ब्रांड की शराब पी थी। 24 जुलाई को शिशिर की तबीयत बिगड़ी और रात में उसकी मौत हो गई। इसी तरह अगले दिन अभिषेक की मौत हो गई जबकि एक अन्य साथी रिंकू अस्पताल में भर्ती है। शिशिर और अभिषेक दोनों की शार्ट पीएम रिपोर्ट में जहर पाया गया। पैराडाइज बार में अलावा बाणगंगा क्षेत्र में स्थित सपना बार में भी शराब पीने वाले दो युवक सचिन गुप्ता और शिवनंदन पुत्र सुखदेव रावत की मौत 27 जुलाई को हो गई थी इनकी भी पीएम रिपोर्ट में जहर पाया गया।

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