मप्र भाजपा के आधे जिलों को अब भी कार्यकारिणी का इंतजार

कार्यकारिणी

भोपाल/प्रणव बजाज/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र भाजपा का एक समय पूरे देश में संगठन के मामले में उदाहरण दिया जाता था, लेकिन अब उसी प्रदेश में हालत यह हो चुकी है कि एक-एक साल से अधिक समय बाद भी जिलों की कार्यकारिणी तक नहीं बन पा रही है। लगभग यही हाल प्रदेश भाजपा की कार्यकारिणी का भी हो चुका है। अभी भी प्रदेश स्तर पर मीडिया टीम का गठन अटका हुआ है तो प्रदेश के आधे जिले ऐसे हैं जिनमें कार्यकारिणी के घोषित होने का इंतजार समाप्त ही नहीं हो रहा है।
यह हाल प्रदेश में तब है जबकि जिला कार्यकारिणी की घोषणा के लिए 30 जून की अंतिम तिथि तय की गई थी। इस वजह से अब प्रदेश भर में जिला व मंडल स्तर पर कल से एक पखवाड़े के अंदर कार्यकारिणी की बैठक करने के निर्देशों पर भी अमल होना मुश्किल हो गया है। खास बात यह है कि पार्टी के लिए प्रदेश के बड़े शहरों वाले जिले इस मामले में अधिक मुसीबत बने हुए हैं। इनमें भोपाल से लेकर इंदौर व ग्वालियर तक शामिल हैं। जिले स्तर पर संगठन की टीम का गठन न होने की वजह से पार्टी की सक्रियता में भी बेहद कमी आयी है।
उल्लेखनीय है कि पूर्व में मप्र में प्रदेश संगठन में बदलाव होने के बाद जिला और मंडल स्तर की टीमों का भी गठन हो जाता था, लेकिन अब संगठन व्यवस्था में प्रदेश स्तर से किए गए बदलाव की वजह से देरी हो रही है। इस वजह से अब लोगों द्वारा भाजपा को भी कांग्रेस का अनिर्णय वाला रोग लगने की बातें कही जाने लगी है। पूर्व में जिला व मंडल स्तर पर टीमों की घोषणा स्थानीय स्तर पर ही की जाती रही है। इसकी वजह से टीम के गठन में समय नहीं लगता था, लेकिन अब इसमें बदलाव करते हुए पहले सर्वे कराया गया और जिलों की टीम के नाम भोपाल से तय किए जा रहे हैं, जिसकी वजह से कार्यकारिणी का मामला अटका हुआ है। फिलहाल माना जा रहा था कि सभी जिलों में संगठन की टीम का गठन 30 जून तक कर लिया जाएगा, लेकिन अब भी आधे जिले ऐसे हैं जिनकी टीमों का गठन नहीं किया जा सका है, इस वजह से जिलों में अकेले ही जिलाध्यक्षों को किला लड़ाना पड़ रहा है। यही नहीं 30 जून तक का समय तय करने के बाद यह तय किया गया था कि प्रदेश में जिले स्तर की कार्यकारिणी की बैठक 1 जुलाई से लेकर 15 जुलाई तक हर हाल में हो जाए। प्रदेश स्तर से इसके लिए जिलाध्यक्षों को निर्देश भी दिए जा चुके हैं, लेकिन जिलों की कार्यकारिणी गठित नहीं हो सकी है ऐसे में  जिलों के जिलाध्यक्ष भी परेशान हैं। अब माना जा रहा है कि अगले हफ्ते तक अधिकांश जिलों की कार्यकारिणी के गठन का काम पूरा कर लिया जाएगा। इसके लिए एक बार फिर से कवायद शुरु कर दी गई है।
इन बड़े शहरों वाले जिलों में भी नहीं हुआ गठन
प्रदेश की राजनीति के साथ ही मीडिया के हिसाब से महत्वपूर्ण माने जाने वाले बड़े शहरों वाले जिलों में भी जिले की टीम का गठन अब तक नहीं हो सका है। इनमें भोपाल भी शामिल है। भोपाल राजधानी होने की वजह से यहां पर होने वाली हर गतिविधि का संदेश पूरे प्रदेश में जाता है, लेकिन इसके बाद भी यहां की टीम के गठन का काम अटका हुआ है। इसी तरह से इंदौर जिले का भी मामला है। वहां की टीम में भाजपा के स्थानीय दिग्गज नेताओं के समर्थकों के नामों पर सहमति बड़ी बाधा बन रही है। दरअसल इंदौर में ताई से लेकर भाई तक सभी अपने-अपने समर्थकों को अधिक से अधिक जिले की टीम में देखना चाहते हैं। उधर ग्वालियर शहर में इसी तरह का पेंच फंसा हुआ है। इस जिले में केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर, श्रीमंत के अलावा कई बड़े नेताओं का दबाव भी अपने- अपने समर्थकों के नामों को लेकर बना हुआ है। इसी तरह से प्रदेश के अन्य बड़े शहरों वाले जिलों में शामिल जबलपुर और उज्जैन में भी मामला अटका हुआ है।
श्रीमंत की वजह से अटकी मीडिया की सूची
दरअसल मीडया विभाग से जुड़ी पदाधिकारियों की सूची जारी न हो पाने की बड़ी वजह श्रीमंत को माना जा रहा है। वे इसमें अपने कुछ लोगों के नाम चाहते हैं। बताया जा रहा है कि इसके लिए उनकी तरफ से आधा दर्जन नाम दिए गए हैं। इनमें से चार नामों पर संगठन तैयार बताया जाता है। दरअसल श्रीमंत की ओर से चार समर्थकों को प्रवक्ता और दो को मीडिया पैनलिस्ट में शामिल करने के लिए कहा जा रहा है। इसी वजह से यह सूची अटकी हुई है। माना जा रहा है कि इस पर भी इस सप्ताह फैसला हो सकता है। इसके लिए संगठन में मंथन का दौर चल रहा है।
कांग्रेस में बदलाव की कवायद
इधर कांग्रेस ने भी संगठन को मजबूत करने के लिए प्रदेश के कई जिलों में नई टीम गठित करने की कवायद शुरू कर दी है। बताया जा रहा है कि फिलहाल दो दर्जन जिलों में नई टीम का गठन किया जाना है। इन जिलों की नई टीम में पार्टी ने अधिकांश पदों पर युवा और ऊर्जावान कार्यकर्ताओं को रखने का फैसला किया है। इनमें वे जिले खासतौर पर शामिल हैं, जहां पर लंबे समय से पुरानी टीम ही काम कर रही है, जबकि कई जिलों में जम्बों टीम है जिसे छोटी कर प्रभावी बनाने की तैयारी की जा रही है। इनमें ग्वालियर -चंबल के तहत आने वाले जिले विशेषतौर पर शामिल रहने वाले हैं। इसकी वजह है जब श्रींमत के समर्थन में जिलाध्यक्षों सहित कार्यकारिणी ने पार्टी छोड़ दी थी तब आनन-फानन में पार्टी ने जिलाध्यक्षों सहित नए चेहरों को जिले की टीम में शामिल किया था।

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