मध्य प्रदेश में धान की मिलिंग को लेकर सरकार फिर मुश्किल में

धान की मिलिंग

राज्य के मिल संचालकों के बाद अब अन्य राज्यों  के मिलर्स ने भी धान की मिलिंग करने में रुचि नहीं दिखाई है

भोपाल/राजीव चतुर्वेदी/बिच्छू डॉट कॉम।
प्रदेश में धान की मिलिंग को लेकर सरकार की मुश्किलें कम होने के बजाय और बढ़ती जा रहीं हैं। एक तरफ जहां प्रदेश के मिलर्स सरकार के प्रविधानों पर मिलिंग करने के लिए राजी नहीं हुए वहीं सरकार को उम्मीद थी कि दूसरे राज्यों से मिलर्स को बुलाकर यह काम करा लिया जाएगा। लेकिन अन्य राज्यों के मिलर्स ने भी धान की मिलिंग करने में दिलचस्पी नहीं दिखाई है। यही वजह है कि प्रदेश सरकार की धान की मिलिंग को लेकर मुश्किलें बढ़ती ही जा रही हैं।
छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र यहां तक कि उत्तर प्रदेश के मिलर्स भी मिलिंग करने तैयार नहीं हुए। प्रदेश सरकार ने इसके लिए बाकायदा निविदा भी निकाली थी पर अब तक कोई भी मिलर आगे नहीं आया। यही वजह है कि बारिश आदि के कारण ओपन कैंपों में रखी लाखों क्विंटल धान सड़ रही है। वहीं नागरिक आपूर्ति निगम के जिम्मेदार अधिकारियों का कहना है कि उनके पास चावल रखने की जगह नहीं है इसलिए मिलिंग नहीं हो रही। जून के महीने तक हर हाल में मिलिंग हो जानी चाहिए। जनवरी-फरवरी व मार्च में ही 80 प्रतिशत मिलिंग हो जानी थी लेकिन नहीं की गई। अभी भी केंद्रों व गोदामों में लाखों मीट्रिक टन धान की मिलिंग बाकी है। उल्लेखनीय है कि धान मिलिंग का यह पूरा विवाद एक क्विंटल धान से चावल बनाकर देने की मात्रा को लेकर है। मिलर एक क्विंटल धान से 67 किलोग्राम चावल बना कर देने के लिए राजी नहीं है। उनकी मांग है कि इसे 12 किलोग्राम घटाकर 55 किलोग्राम किया जाए। प्रदेश सरकार को ऐसा करने के लिए केंद्र सरकार की अनुमति लेनी होगी। जो इसलिए संभव नहीं है क्योंकि केंद्र यदि मध्य प्रदेश को छूट देगा तो यह मांग अन्य राज्यों से भी उठने लगेगी।
सरकार से अब तक नहीं बन सकी बात
पिछले साल प्रदेश सरकार ने रिकॉर्ड 39 लाख टन धान की खरीदी की थी। वहीं छह लाख टन धान पहले से ही रखी हुई है। इसकी मिलिंग कराने के लिए निगम ने टेंडर निकालकर मिल संचालकों से दरें बुलाई थीं लेकिन  सरकार के प्रावधानों पर मिलिंग के लिए मिलर्स तैयार नहीं हुए। मध्य प्रदेश मिलर्स एसोसिएशन का कहना है कि इस बार धान में टूटन ज्यादा है इसलिए एक क्विंटल धान में 67 किलोग्राम चावल बना कर देना संभव नहीं है। वहीं सरकार द्वारा दी जा रही प्रोत्साहन राशि भी कम है। ऐसे में मिलिंग करने में नुकसान है। इस कारण से चावल की मात्रा 55 किलोग्राम और प्रोत्साहन राशि बढ़ाकर सौ रुपए प्रति क्विंटल करने की मांग की गई थी। हालांकि सरकार इसके लिए तैयार नहीं हुई। यहीं से मिलर्स और सरकार के बीच विवाद गहराता गया जिसे सुलझाने के लिए मंत्रियों की समिति भी बनाई गई लेकिन उनसे भी मामला नहीं सुलझा। उसके बाद सरकार ने छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश सहित अन्य राज्यों के मिल संचालकों से मिलिंग कराने के लिए निविदा बुलाने का निर्णय लिया। निगम ने निविदा निकाली पर पड़ोसी राज्यों के मिलर्स भी गुणवत्ता की कमी के कारण एवं मौजूदा प्रविधानों के तहत मिलिंग करने के लिए तैयार नहीं हुए। अब एक बार फिर से प्रदेश सरकार ने प्रदेश के ही मिल संचालकों से निविदा बुलाई है। इनका परीक्षण करने के बाद शासन स्तर पर मिलिंग के बारे में  फैसला लिया जाएगा।
मिलिंग का और कोई विकल्प नहीं
मध्यप्रदेश सरकार ने धान की मिलिंग के लिए इस बार प्रोत्साहन राशि में 25 रुपए प्रति क्विंटल की वृद्धि की है। इस तरह अब मिलर को पचास रुपए प्रति क्विंटल प्रोत्साहन राशि दी जा रही है। वहीं सूत्रों की मानें तो सरकार इस राशि में कुछ और वृद्धि की कर  सकती है क्योंकि मिलिंग कराने के लिए इसके अलावा और कोई विकल्प है भी नहीं। यही वजह है कि राज्य नागरिक आपूर्ति निगम ने एक बार फिर से प्रदेश के ही मिल संचालकों से  मिलिंग के लिए दरें बुलाई है। लेकिन अब मिलर्स दो सौ से तीन सौ रुपए प्रति क्विंटल प्रोत्साहन राशि मांग रहे हैं।

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