मीटर रीडिंग में भी बिजली कंपनी को लग रही भारी चपत

मीटर रीडिंग

भोपाल/प्रणव बजाज/बिच्छू डॉट कॉम। लगातार भारी घाटे में चल रहीं प्रदेश की बिजली कंपनियां अपनी कार्यप्रणाली सुधारने को तैयार नहीं हैं। यही वजह है कि साल दर साल उनके घाटे में बड़ा इजाफा होता जा रहा है। इसकी वजह है आउट सोर्स कर्मचारी। बिजली कंपनियों द्वारा लगभग सभी महत्वपूर्ण काम आउट सोर्स कंपनियों को देकर फुर्सत पा ली गई है। हालत यह है कि शिकायत केन्द्र से लेकर बिजली के मेंटेनेंस तक का काम इन्हीं आउटसोर्स कंपनियों के कर्मचारियों के भरोसे है। पूर्व की तरह ही अब एक बार फिर इन कंपनियों द्वारा मीटर रीडिंग और उनके बिल वितरण का काम इन्हीं आउटसोर्स कर्मचारियों को दे दिया गया है। इसकी वजह से हर बिजली कंपनी पर इन कर्मचारियों को 12 से लेकर 15 रुपए तक का भुगतान किया जाएगा। खास बात यह है कि यह राशि उपभोक्ताओं से ही बिल में जोड़कर वसूली जाती है। खास बात यह है कि अगर एक आउटसोर्स कर्मचारी हर दिन अगर सौ मीटरों की रीडिंग  लेता है तो उसे कंपनी को 1500 रुपए के हर दिन का भुगतान करना पड़ता है। इसमें भी रीडिंग और बिल का खर्च कंपनी ही वहन करती है। खास बात यह है कि इस बिलिंग के लिए प्रदेश में बिजली कंपनियों को हर माह करोड़ों रुपयों का भुगतान करना पड़ता है। अगर आउट सोर्स कर्मचारियों पर इतनी भारी भरकम रकम खर्च करनी होती है तो फिर विभाग अपने ही स्थाई कर्मचारी क्यों नही रख लेता है। इससे कम भुगतान में कंपनियों को न केवल स्थाई कर्मचारी मिल जाएंगे , बल्कि मीटिर रीडिंग के अलावा बिल वसूली जैसे कई अन्य काम भी लिए जा सकते हैं। दरअसल विभाग के आला अफसरों की आउटसोर्स से काम करने पर पूरा जोर रहता है। इसकी वजह क्या है वे ही जाने।
तो भोपाल में ही बच सकते हैं 60 लाख
बिजली कंपनी ने शहर में अपने मोबाइल चैट के साथ ही एक ऐप बनाया हुआ है। इस ऐप के माध्यम से उपभोक्ता को मीटर रीडिंग की फोटो खींचकर उसे व्हाट्सएप पर भेजने की सुविधा दी गई है। इसके बाद बिजली दफ्तर उपभोक्ता का बिल मोबाइल पर ही भेज देता है। गौरतलब है कि राजधानी में बिजली उपभोक्ताओं की संख्या करीब पांच लाख है। अगर बिजली कंपनी इन सभी उपभोक्ताओं को इससे जोड़ने में सफल रहती है तो फिर अकेले भोपाल शहर से ही करीब साठ लाख रुपए की बचत हो सकती है।
मशीनों पर आठ करोड़ खर्च
खास बात यह है कि इन आउट सोर्स कर्मचारियों से मीटर रीडिंग कराने के लिए कंपनी को बड़ी मात्रा में पीओएस मशीनें खरीदनी पड़ रही हैं। इन मशीनों पर  कंपनी को आठ करोड़ रुपए खर्च करने पड़ रहे हैं। यह मशीनें कंपनी द्वारा रीडिंग लेने वाले आउट सोर्स कर्मचारियों को दी जाएंगीं। इसमें भी खास बात यह है कि मशीनों में लगने वाले कागज के रोल से लेकर मशीनों का रखरखाव का खर्चा भी बिजली कंपनी को ही वहन करना है।  

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