
भोपाल/प्रणव बजाज/बिच्छू डॉट कॉम।
सिंचाई प्रबंधन में किसानों की भागीदार तय करने के लिए गठित की जाने वाली जल उपभोक्ता संस्थाओं का कार्यकाल बीते डेढ़ वर्ष पहले ही समाप्त हो चुका है। इसके बाद भी इन समितियों के चुनाव नहीं कराए जाने से इनका औचित्य ही समाप्त हो गया था। हालांकि इन समितियों के चुनाव के दौरान बड़ी संख्या में विवाद भी होते थे। यही वजह है कि अब प्रदेश सरकार ने इन समितियों के गठन की प्रक्रिया में बदलाव करते हुए जल उपभोक्ता संस्थाओं के लिए एक प्रबंधन समिति गठित करने का फैसला किया है। इसकी खासियत यह होगी कि इसका न तो कार्यकाल समाप्त होगा और न ही इसे भंग किया जा सकेगा। इसमें समय के साथ नए सदस्य आते रहेंगे, लेकिन यह समिति स्थायी रूप से काम करती रहेगी। बीते दिनों ही राज्यपाल आनंदी बेन पटेल ने मप्र सिंचाई प्रबंधन में कृषकों की भागीदारी संशोधन अधिनियम-2021 पर मुहर लगा दी है। इस समिति के गठन के लिए अधिसूचना जारी की जा चुकी है , जिससे यह अधिनियम प्रदेश में प्रभावी हो गया है।
सदस्य ही बनेंगे अध्यक्ष
जिला कलेक्टर द्वारा इस प्रबंध समिति के अध्यक्ष का निर्वाचन कराया जाएगा। इसके लिए गुप्त मतदान कराया जाएगा। संशोधित अधिनियम में प्रावधान किया गया है कि प्रबंध समिति के अध्यक्ष का कार्यकाल भी दो वर्ष का होगा। यदि उन्हें किसी नियम विरुद्ध कार्य के कारण वापस नहीं बुलाया गया हो या फिर उन्हें हटाया नहीं गया हो या फिर उन्हें अयोग्य घोषित नहीं किया गया हो तो ही दो वर्ष का कार्यकाल रहेगा, नहीं तो समय से पहले उन्हें हटाया भी जा सकता है।
दो साल में होंगे एक तिहाई सदस्य सेवानिवृत्त
संशोधित अधिनियम में किए गए प्रावधानों के तहत जल उपभोक्ता संस्थाओं की प्रबंध समिति कभी भंग नहीं होगी। इनका कार्यकाल भी कभी समाप्त नहीं होगा। समिति के एक तिहाई सदस्य हर दो साल में सेवानिवृत्त होंगे। यह समिति अपने-अपने प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्र से जल उपभोक्ता संस्थाओं के लिए निर्वाचित सदस्यों से बनेगी। इसके लिए तय की गई शर्तों के मुताबिक प्रबंध समिति में उन्हें ही शामिल किया जा सकेगा, जिन्हें पूर्व में उपबंधों के अधीन वापस नहीं बुलाया गया हो या फिर उन्हें हटाया नहीं गया हो या फिर उन्हें समय से पहले अयोग्य घोषित नहीं किया हो। समिति के लिए सभी प्रादेशिक सदस्यों का एक ही बार में निर्वाचन कराया जाएगा। इन्हीं सदस्यों में से एक तिहाई सदस्य को प्रबंध समिति में प्रथम दो वर्ष की अवधि के लिए नियुक्त किया जाएगा, उसके बाद उन्हें सेवानिवृत्त कर दिया जाएगा। दूसरे एक तिहाई सदस्य चार वर्ष की अवधि पूर्ण होने पर सेवानिवृत्त होंगे, वहीं तीसरे एक तिहाई सदस्य पद के 6 वर्ष पूर्ण होने पर सेवानिवृत्त होंगे। उनकी सेवानिवृत्ति की अवधि को प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों के सदस्यों का प्रथम निर्वाचन प्रारंभ होने के पूर्व लॉट डालकर तय किया जाएगा। यानी प्रबंध समिति में प्रथम एक तिहाई में कौन सबसे पहले सेवानिवृत्त होंगे, इसका फैसला लॉट डालकर तय होगा। इससे विवाद की स्थिति नहीं बनेगी।