
- सुभाष रानाडे
हजारों लोगों की मौत के बावजूद जो सरकार दूसरी लहर का अनुमान तक नहीं लगा सकी, उसके मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार डॉ. के. विजयराघवन तीसरी लहर की चेतावनी देते हुए दिखाई दे रहे है। सिर्फ चेतावनी ही देना हो तो सिर्फ तीसरी लहर ही क्यों, चौथी की भी चेतावनी दी जा सकती है । सबसे महत्वपूर्ण यह है कि एक सरकार के रूप में उसका मुकाबला करने की उनकी तैयारी कितनी है । इस मोर्चे पर दूसरी लहर ने ही हमको कितना लहूलुहान किया है , यह हम देख ही रहे हैं । इसलिए इस तीसरी लहर की चेतावनी की खबर लेना जरूरी है । तीसरी लहर की भी चेतावनी तब आई है, जब पश्चिम बंगाल सहित चार राज्यों और एक केंद्रशासित प्रदेश के चुनाव संपन्न हो गए और लाखों लोगों ने कुम्भ में पवित्र स्नान भी कर लिया । बंगाल में करारी ठोकर खाने और गंगा मैया में अपनी समझदारी का अर्घ्य देकर पुण्य प्राप्त करने के बाद ही सरकार को कोरोना निवारण की और ध्यान देने की फुरसत मिली।
तीसरी लहर की चेतावनी सरकार के मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार ने दी है । लेकिन समस्या यह है कि मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार के हाथ में कोरोना नियंत्रण के कितने अधिकार है और उनकी कितनी सलाह मानी जाती है , यह पता करने का कोई मार्ग नहीं है । डॉ. के. विजयराघवन ने कुछ दिन पूर्व ‘इंडियन एक्सप्रेस ’ अखबार को दिए इंटरव्यू में स्वीकार किया था कि दूसरी लहर की तीव्रता का अनुमान लगाने में वह कमतर सिद्ध हुए । लेकिन सरकार के वैज्ञानिक सलाहकारों के अधिकारों की कोई स्पष्टता न होने के कारण यह कहना मुश्किल है कि वह सरकार की ‘स्वीकारोक्ति’ थी या नहीं । शायद तीसरी लहर के बाद भी इस तरह की स्वीकारोक्ति की भीषण नौबत अपने पर न आए इसलिए सरकारी सलाहकार ने पहले ही चेतावनी दे डाली होगी। दरअसल ऐसे कई सलाहकार आजकल सरकार की खिदमत में हैं। ऐसे विशेषज्ञों और डॉक्टरों का एक समूह ही सलाहकार समिति के रूप में सरकार की मदद करता है। इनमें से प्रत्येक रोजाना अलग अलग विषय पर टिप्पणी करता है । इसलिए यह कहना मुश्किल है कि यह उनकी अपनी राय है या सरकार की। कोई लहर के बारे में बोलता है, कोई म्यूटेंट के बारे में कुछ कहता है तो कोई सीटी स्कैन और रेमडेसिवीर के अतिरेक बारे में चेतावनी देता है। रही सही कसर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन पूरी कर देते हैं । वे भी पेशे से हैं तो डॉक्टर ही। कुछ राज्य ( खास तौर पर गैर भाजपा शासित) कोरोना से निपटने में किस तरह कमजोर पड़ रहे हैं, वैक्सीनेशन के अभियान पर कैसे ठीक से अमल नहीं कर रहे हैं, यह कहने की जिम्मेदारी वह निभा रहे हैं। अभी दो-तीन दिन पहिले अमेरिका के विख्यात संक्रामक रोग विशेषज्ञ डॉ एंथनी फॉची का एक लंबा इंटरव्यू छपा था। उन्होंने सलाह दी की भारत की वर्तमान समस्या के बारे में जैसे ऑक्सीजन की किल्लत, अस्पतालों में बिस्तरों का अभाव आदि के बारे में सरकार की जो समन्वय समिति है, वह तत्काल निर्णय ले और तड़प रहे बीमारों और उनके संबंधियों को दिलासा दें। लेकिन इसमें यह सवाल उठता है कि इस तरह की समन्वय समिति डॉ. फॉची को कहां दिखाई दी? कम से कम हम निरीह भारतवासियों को इस तरह की किसी समन्वय समिति के अस्तित्व और उसके अधिकारों के बारे में कुछ भी पता नहीं है। देश में संक्रामक रोग नियंत्रण कानून लागू है। इसलिए समन्वय और निर्णय लेने के पूरे अधिकार गृह मंत्रालय के पास है। उस मंत्रालय में सलाह की कितनी गुंजाइश है, यह भी एक सवाल ही है ।
जब प्रधानमंत्री ही कोरोना पर विजय प्राप्त करने का ऐलान कर रहे हो तो कोरोना पर नियंत्रण की मशीनरी शिथिल हो जाए इसमें अचरज कैसा। यह ऐलान खुद प्रधानमंत्री ने 28 जनवरी को किया था। उसके अगले ही महीने में उनकी पार्टी ने उनको इस महान विजय के लिए सलामी भी दी थी। प्रधानमंत्री पर प्रशंसा के फूल बरसाते हुए सत्तारूढ़ पार्टी ने देश की हम बेचारी जनता को यह भी बताया था कि किस तरह हमारे प्रधानमंत्री कोरोना पर विजय प्राप्त कर पूरी दुनिया के पथप्रदर्शक बन गए हैं । लगभग इसी समय, जनवरी के उत्तरार्ध में ब्रिटेन में मिला कोरोना का बी- 1. 17 अवतार भारत में प्रवेश कर चुका था । महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र में कोरोनाबाधितों की तादाद अचानक बढ़ने लगी थी । वहां मिला कोरोना का नया म्युटेंट भी बी- 1.17 ही है, यह हमने अभी अभी 5 मई को अधिकृत रूप से को कबूल किया । कोरोना के नए ब्रिटिश अवतार की संक्रमण गति तीव्र थी । वहां इसकी जिनोम सिक्वेन्सिंग शीघ्र सम्भव हुई और उस पर नियंत्रण पा लिया गया । हमारे देश में भी विशेषज्ञ हैं, प्रयोगशालाएं है । फिर भी डबल म्युटेंट पर ‘चिंताजनक’ का ठप्पा तब लगा जब दूसरी लहर को भारत में पहुंचे साढ़े तीन महीने से ज्यादा वक्त बीत गया । क्योंकि जब यह डबल म्युटेंट तबाही मचा रहा था तब हमारे नीति नियामक चुनाव का युद्ध लड़ रहे थे। उसकी भयावह कीमत आज देश के लाखों लोग चुका रहे हैं ।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। फेसबुक से साभार।