
- पंचायती राज का मॉडल स्टेट बना मप्र
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र में पंचायती राज का सशक्त बनाने के लिए प्रदेश सरकार कई मोर्चों पर काम कर रही है। उधर, नवाचार, डिजिटल और ई-गवर्नेंस से गांव की सरकारें सुशासन की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रही हैं। हालांकि, कई चुनौतियां अब भी बनी हुई हैं। ग्राम स्तर पर जनप्रतिनिधियों की प्रशासनिक दक्षता की कमी, वित्तीय संसाधनों की सीमित उपलब्धता और भ्रष्टाचार जैसी समस्याएं पंचायती राज की कार्य कुशलता को प्रभावित कर रही हैं। राज्य सरकार द्वारा डिजिटल ग्राम पंचायतों और ई-गवर्नेंस जैसे नवाचारों ने भी शासन व्यवस्था को अधिक उत्तरदायी बनाने की दिशा में कदम बढ़ाया है।
मप्र जिसे पंचायती राज का मॉडल स्टेट माना जाता है, में ग्राम पंचायतें विभिन्न क्षेत्रों में उल्लेखनीय कार्य कर रही हैं। ये ग्राम सरकारें स्थानीय स्तर पर विकास और प्रशासन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। पंचायती राज व्यवस्था के तहत मप्र में गांव की सरकारें कई क्षेत्रों में मिसाल कायम कर रही हैं। ग्राम पंचायतें शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वच्छता और ग्रामीण विकास से संबंधित कई महत्वपूर्ण विकास कार्य करती हैं। ग्राम पंचायतों को स्थानीय स्तर पर धन जुटाने और खर्च करने का अधिकार है, जिससे वे अपनी आवश्यकताओं के अनुसार विकास योजनाएं बना सकती हैं। ग्राम पंचायतें गांव के लोगों की भागीदारी सुनिश्चित करती हैं, जिससे वे स्थानीय समस्याओं का समाधान करने और विकास कार्यों में योगदान देने में सक्षम होते हैं। ग्राम पंचायतें स्थानीय स्तर पर स्वशासन प्रदान करती हैं, जिससे गांव के लोग अपनी सरकार को बेहतर ढंग से चलाने और अपने विकास को नियंत्रित करने में सक्षम होते हैं।
मिसाल कायम कर रही गांव की सरकारें
मप्र में गांव की सरकारें कई क्षेत्रों में मिसाल कायम कर रही हैं। नवाचार और डिजिटल पंचायत की दिशा में कुछ तेजी से आगे बढ़ीं तो कुछ मूलभूत चुनौतियों का सामना कर रही हैं। 31 साल पहले गांव की सरकार को सशक्त बनाने के लिए पंचायती राज प्रणाली लागू की गई। इसको प्रभावी ढंग से लागू करने में प्रदेश ने अग्रणी भूमिका रही। तीन दशक में प्रदेश में महिलाओं और जनजातियों को पहले पायदान में आकर निर्णय लेने न सिर्फ मौका मिला है बल्कि इससे सामाजिक न्याय को भी बढ़ावा मिला। प्रदेश में कई पंचायतों ने मिसाल पेश की है। सीहोर की भौंरी पंचायत स्वच्छता की रोल मॉडल बनी है। यह पंचायत पिछले तीन वर्षों से ओडीएफ प्लस बनी हुई है और गांव में शौचालय निर्माण, कचरा प्रबंधन व स्वच्छता पर नवाचार किए गए हैं। मंडला की पंचायत कटरा अब एक आदर्श पंचायत गांव में सोलर पैनल से बिजली, नल-जल योजना, स्वच्छता, स्ट्रीट लाइट, और आयुष्मान कार्ड जैसी योजनाएं हर घर को सुलभ हैं। शहडोल जिले के जयसिंहनगर विकासखंड की ग्राम पंचायत ढोलर की महिला सरपंच कविता सिंह के प्रयास ने किसानों को खेती से समृद्ध बनाया है। किसान आधुनिक तकनीक से खेती कर लाभ अर्जित कर रहे हैं। 200 से अधिक किसान पोषण वाटिका, मल्टीवेयर, मचान व ब्लीच सिस्टम से खेती कर रहे हैं।
आपसी सहमति से चुनाव
झाबुआ जनपद के तहत आने वाली ग्राम पंचायत परवट में चुनाव नहीं होते। बीते दो दशक से यहां ग्रामीण आपसी सहमति से ही सरपंच और पंच का नाम तय करते आ रहे हैं। वर्तमान में बागडोर सरपंच से लेकर सभी 12 पंच ने थाम रखी है। सरपंच पद के लिए रमिला शंकर सिंह भूरिया का नाम तय कर दिया। इनके अलावा पंच दल्ला भूरिया, मंगा भूरिया, कमती निनामा, बाबूड़ी परमार, जेमती वागूल, हुमी भूरिया, कमली देवल, रतनी भूरिया, दीतू कोसरा, वरदी झणिया, रमतू चौपड़ा और हड़ी भूरिया के नाम पर आपसी सहमति से चुनाव किए गए। पंचायत में सामंजस्य की इस मिशाल को देखते हुए 2004-14 तक तीन निर्विरोध पंचायत चुनने पर सरकार ने इनाम भी दिया। प्रदेश में कुल 23,006 ग्राम पंचायतें हैं। इनमें महिला सरपंचों की संख्या 99,500 (करीब 41 प्रतिशत)है। ओडीएफ पंचायतें 11,400+, डिजिटल पंचायतें 1,200+ हैं। सेवानिवृत्त प्रमुख सचिव पंचायत एवं ग्रामीण विकास बीके बाथम का कहना है कि पंचायती राज प्रजातंत्र के लिए रीढ़ की है, लेकिन राजनीतिक दल इसे कमजोर करने पर तुले हैं। ऐसे में पंचायतों के अधिकार सिर्फ कागजी ही रह गए हैं। इन पर निर्णय थोपे जाने लगे हैं। इनके अधिकार कम करने की कोशिशें भी समय-समय पर होते रहते हैं। पंचायतों को यदि पूरी तरह स्वतंत्रता से निर्णय करने दिए जाएं तो रामराज की संकल्पना साकार हो सकती है। पंचायती राज में अभी कई चुनौतियां हैं। मनरेगा जैसी योजनाओं में फर्जी मस्टर रोल और बिल में भ्रष्टाचार किया जा रहा है। जिला-जनपद नेताओं का प्रभाव पंचायत के निर्णयों पर दिखता है। सरपंच-सचिवों को सही जानकारी नहीं होने से फंड का सही उपयोग नहीं हो पाता। डिजिटल टूल्स की कमी है, जिससे पारदर्शिता बाधित होती है।