वीएलटीडी और इमरजेंसी पैनिक बटन बनकर रह गए शो-पीस

वीएलटीडी और इमरजेंसी पैनिक बटन
  • महिला सुरक्षा को लेकर सतर्क नहीं परिवहन विभाग

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। वर्ष 2022 में महिला सुरक्षा को लेकर परिवहन विभाग ने जो तत्परता दिखाई थी, वह तीन साल बाद जस की तस है। गौरतलब है कि यात्री वाहन की निगरानी परिवहन विभाग, पुलिस व गाड़ी के मालिक कर सकें, इसके लिए परिवहन विभाग ने यात्री वाहनों में व्हीकल लोकेशन ट्रेकिंग डिवाइस(वीएलटीडी) व पैनिक डिवाइस लगाने का अभियान शुरू किया था।
जानकारी के अनुसार निर्भया फंड के तहत केंद्र व राज्य सरकार ने परिवहन विभाग को फंड दिया। 15 करोड़ 40 लाख रुपए की लागत से भोपाल में कंट्रोल कमांड सेंटर बनाया गया है। लेकिन उसे तीन साल बाद भी पुलिस कंट्रोल रूम से नहीं जोड़ा जा सका। परिवहन विभाग की लापरवाही के कारण राजधानी समेत प्रदेशभर में महिला यात्रियों की सुरक्षा के लिए पब्लिक ट्रांसपोर्ट वाले वाहनों में लगाए गए वीएलटीडी यानी व्हीकल लोकेशन ट्रेकिंग डिवाइस और इमरजेंसी पैनिक बटन शो-पीस बनकर रह गए हैं, क्योंकि ट्रॉयल के 3 साल बाद भी कमांड सेंटर पुलिस कंट्रोल रूम से नहीं जुड़ पाया है। अगर कोई बस में पैनिक बटन दबाता है तो कॉल पुलिस के पास नहीं, बल्कि वाहन मालिक के पास जाता है। दूसरी तरफ वाहन संचालक यह सेवा प्रदान करने वाली कंपनियों पर अवैध वसूली के आरोप भी लगा रहे हैं। गौरतलब है कि निर्भयाकांड के बाद केन्द्र सरकार ने पब्लिक ट्रांसपोर्ट में महिला यात्रियों की सुरक्षा को लेकर पैनिक बटन की व्यवस्था शुरू की थी, लेकिन एक तरफ जहां यह व्यवस्था लापरवाही और गड़बडिय़ों की भेंट चढ़ती नजर आ रही है, तो दूसरी तरफ हर रोज पब्लिक ट्रांसपोर्ट में सफर करने वाली महिला यात्रियों की सुरक्षा भी सुरक्षा भी रामभरोसे नजर आ रही है। कई महिला यात्रियों की शिकायत है कि जब जरूरत पड़ती है तब या तो पैनिक बटन काम ही नहीं करता या फिर दबाने के बाद भी कोई मदद नहीं आती। पब्लिक ट्रांसपोर्ट में महिला यात्रियों के साथ आए दिन छेडख़ानी या दुव्र्यव्यहार के मामले होते हैं।
पुलिस कंट्रोल रूम से नहीं जुड़ पाया कमांड सेंटर
दरअसल आरटीओ में 18 करोड़ की लागत से बने स्टेट कंट्रोल कमांड सेंटर का दिसंबर 2022 में ट्रॉयल किया गया था।  इस कंट्रोल कमांड सेंटर से यात्री वाहनों की निगरानी की जाने की योजना बनाई गई, लेकिन कमांड सेंटर बनने के समय भी यह पुलिस कंट्रोल रूम से कनेक्ट नहीं था। ट्रॉयल को तीन साल हो चुके हैं, ये अभी भी पुलिस कंट्रोल रूम से जुड़ नहीं पाया है। बस ऑपरेटर एसोसिएशन के सुरेंद्र तनवानी बताते हैं कि सेंटर के पुलिस कंट्रोल रूम से कनेक्ट नहीं होने के चलते एक लाख 30 हजार वाहनों में लगे पैनिक बटन शो-पीस बनकर रह गए हैं। कहीं पैनिक बटन दब भी जाए तो पुलिस नहीं आती, बल्कि कमांड सेंटर से रजिस्टर्ड वाहन मालिक के पास कॉल आता है। अधिकारी पिछले तीन साल से कमांड सेंटर के  जल्द शुरू हो जाने का दावा कर रहे हैं। इस मामले में ट्रांसपोर्ट कमिश्नर विवेक शर्मा का कहना है कि जल्द ही कमांड सेंटर को पुलिस  कंट्रोल रूम से जोड़ा जाएगा। बता दें कि परिवहन विभाग को कमांड सेंटर स्थापित करने के लिए केंद्र ने निर्भया फंड से पैसा दिया है।
रीचार्ज के लिए दोगुनी राशि की वसूली
मप्र में वीएलटीडी और इमरजेंसी पैनिक बटन के रिचार्ज के नाम पर प्राइवेट कंपनी करोड़ों रुपए की अवैध वसूली कर रही है। बस मालिक इसकी शिकायत कई बार परिवहन विभाग के अधिकारियों से कर चुके हैं, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। दरअसल मप्र में साल 2022 से सार्वजनिक परिवहन के वाहन, मालवाहक गाडिय़ां, टैक्सी, स्कूल बस में व्हीकल लोकेशन ट्रेकिंग डिवाइस और पैनिक बटन लगाना जरूरी किया गया है। इसे न लगाने पर गाडिय़ों को फिटनेस सर्टिफिकेट नहीं दिया जाता है। लिहाजा 1 लाख 30 हजार वाहन मालिकों ने वीएलटीडी और पैनिक बटन लगाए हैं। इन्हें हर साल रिचार्ज करना पड़ता है जिसमे वाहन मालिक सेवा प्रदाता कंपनियों पर अवैध वसूली के आरोप भी लगा रहे हैं। बस मालिकों का आरोप है कि कंपनियां उनसे हर साल रिचार्ज के नाम पर 2 हजार की बजाय साढ़े 4 हजार रुपए वसूल रही है। इस तरह हर साल गाड़ी मालिकों से करीब 32 करोड़ रुपए ज्यादा वसूले गए हैं। गाड़ी मालिक खुद डिवाइस को रिचार्ज कर सके, ऐसी कोई सुविधा परिवहन विभाग ने नहीं दी है। पैनिक बटन भी केवल दिखावे के लिए है। पैनिक बटन और वीएलटीडी लगाने का काम परिवहन विभाग ने प्राइवेट कंपनियों को दिया है। इसे लेकर कई जिलों के बस ऑपरेटरों ने हाईकोर्ट में याचिकाएं लगाई। हाईकोर्ट ने परिवहन विभाग को वीएलटीडी की कीमत तय करने के निर्देश दिए थे। लेकिन कोई हल नहीं निकला।

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