ब्यूरोक्रेसी की मनमानी के शिकार ‘माननीय’

ब्यूरोक्रेसी
  • विपक्ष के साथ ही सत्तापक्ष के नेताओं को भी नहीं दिया जा रहा महत्व

गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र में सुशासन की राह पर चल रही सरकार का अफसरों को सख्त निर्देश है कि वे जनप्रतिनिधियों के संपर्क में रहें। लेकिन विडंबना यह है कि प्रदेश के ब्यूरोक्रेट्स सामान्य जनप्रतिनिधियों की तो छोड़ें, मंत्रियों, सांसदों और विधायकों तक का फोन नहीं उठाते हैं। ‘माननीय’ ब्यूरोक्रेसी की मनमानी से परेशान हैं। आलम यह है कि जहां एक ओर विपक्षी कांग्रेस अफसरों की मनमानी पर सरकार को कोस रही है, वहीं सत्तापक्ष के नेता सत्ता और संगठन को शिकायत कर रहे हैं। गौरतलब है कि विपक्षी दल कांग्रेस के विधायक, सांसद और अन्य जनप्रतिनिधियों की सदन से लेकर सडक़ तक यह शिकायत रहती है कि अधिकारी उनकी बात नहीं सुन रहे हैं, पर अब सत्ताधारी भाजपा के जनप्रतिनिधियों की भी ऐसी ही शिकायतें हैं। प्रदेश के कई जिलों के कलेक्टर, पुलिस अधीक्षक और अन्य अधिकारियों के बारे में अक्सर यह बात सामने आती रहती है कि वे मंत्री, सांसद और विधायकों तक की बात नहीं सुन रहे हैं। कई बार फोन रिसीव नहीं करते और बाद में काल बैक भी नहीं करते। इसे लेकर कई बार कहासुनी की नौबत आ जाती है। अधिकारियों के बैठकों और दौरों में नहीं आने की शिकायतें भी जनप्रतिनिधि कर रहे हैं। ऐसे में कांग्रेस के नेता यह तंज कसते हैं कि जब सत्ताधारी मंत्री और विधायकों की बात नहीं सुनी जाती तो जनता की क्या सुनी जाएगी।
सख्ती पर अदालत चले जाते हैं अफसर
मप्र में अफसरों की निरंकुशता का आलम यह है कि एक तो वे मंत्रियों, सांसदों और विधायकों की सुनते नहीं हैं, वहीं जब सख्ती की जाती है तो वे अदालत चले जाते हैं। जनता के फोन न उठाने की शिकायत पर वर्ष 2022 में तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अलग-अलग दिन मंच से ही दो अधिकारियों को निलंबित करने निर्देश दिए थे। इसमें छिंदवाड़ा के तत्कालीन सीएमएचओ डा. जीसी चौरसिया और सीधी के डीईओ पवन कुमार थे। निलंबन पर दोनों अधिकारी हाई कोर्ट चले गए थे। सेवानिवृत्त डीजीपी अरुण गुर्टू का कहना है कि लोकतंत्र में जनप्रतिनिधियों की अहम भूमिका और जवाबदेही होती है। लोक सेवक तो सिर्फ मददगार हैं। जनप्रतिनिधियों की जायज बातें अधिकारियों को सुननी और माननी चाहिए। जायज नहीं है तो मना करना चाहिए। फोन नहीं उठा पा रहे हैं तो बाद में बात करना चाहिए पर यदि लोक सेवक लोकतंत्र में विश्वास रखते हैं तो जनप्रतिनिधियों की उपेक्षा नहीं कर सकते। यह भी मायने नहीं रखता कि जनप्रतिनिधि कितना पढ़ा-लिखा है।
फोन तक नहीं उठाते नौकरशाह
प्रदेश की नौकरशाही के बिगडै़ल रूख का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वे सांसदों तक का फोन नहीं उठाते हैं। जबकि प्रदेश के सभी 29 लोकसभा सांसद सत्तारूढ़ भाजपा के ही हैं। ताजा मामला देवास का है, जब लोकसभा सदस्य महेन्द्र सिंह सोलंकी को कलेक्टर ऋतुराज सिंह से फोन पर यह तक कहना पड़ा कि अगली बार बात फेस-टू-फेस होगी। मामला देवास की एक शराब दुकान हटाने को लेकर था। कुछ लोग सांसद के पास कलेक्टर के विरुद्ध शिकायत लेकर पहुंचे थे। सभी के सामने सांसद ने कलेक्टर को फोन लगाया। वहीं राजधानी भोपाल के सांसद और एक अफसर के बीच खींचतान उस वक्त मच गई, जब नगर निगम कमिश्नर बैठक में नहीं पहुंचे। जिसके बाद इंतजार कर रहे सांसद आलोक शर्मा भडक़ गए और मीटिंग छोडक़र बाहर चले गए। उन्होंने ऐतराज जताते हुए कहा कि ये जनता और जनप्रतिनिधियों का अपमान है। इसके बाद मीटिंग में  नगर निगम के कमिश्नर हरेंद्र नारायण यादव के बारे में पूछा गया तो बताया गया है। वह नहीं है, फिर पूछा गया कि उनकी जगह कौन आया है। तो जवाब मिला कि कोई नहीं। इसके बाद सांसद, विधायक और महापौर ने फोन भी लगाया, लेकिन किसी का भी फोन नहीं उठाया गया। जिससे नाराज होकर सांसद आलोक शर्मा ने बैठक को कैंसिल कर दी। पिछले सप्ताह भोपाल में प्रदेश के खेल, युवा कल्याण और सहकारिता मंत्री विश्वास सारंग ने भोपाल के नगर निगम आयुक्त हरेंद्र नारायण को फोन कर कहा कि आप फोन नहीं उठाते हो। इसके पहले भोपाल के लोकसभा सदस्य आलोक शर्मा ने भी यही शिकायत की थी। चार माह पहले मऊगंज के भाजपा विधायक प्रदीप पटेल कानून-व्यवस्था की खराब  स्थिति को लेकर एएसपी अनुराग पांडे के सामने दंडवत हो गए थे। वह नशे के विरुद्ध अभियान में पुलिस की निष्क्रियता से नाराज थे। उन्होंने एएसपी से कहा था कि आप तो मुझे गुंडे से मरवा दीजिए। वहीं भोपाल के अशोका गार्डन इलाके की एक कालोनी में आग लगने पर लोगों ने नगर निगम आयुक्त हरेंद्र नारायण को फोन लगाया। उन्होंने फोन ही नहीं उठाया। फायर ब्रिगेड भी देर से पहुंची। इस बीच मंत्री विश्वास सारंग भी मौके पर पहुंच गए।  उन्होंने आयुक्त को फोन लगाकर कहा कि आप निगम कमिश्नर हो, लेकिन आप  फोन नहीं उठा रहे हो। मेरे फोन लगाने पर फायर बिग्रेड की गाड़ी आई है। इसमें न तो हूटर लगा है और न ही पानी है। यदि बस्ती वाले खुद आग नहीं बुझाते तो आगजनी में कई जानें चली जातीं। मजाक हो गया। क्या नगर निगम कमिश्नर हो भई, लोग किससे बोले, बताओ।

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