- तीखी टिप्पणियों का भी नहीं हो रहा असर

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम
प्रदेश के अफसर आमजन की तो पहले से ही नहीं सुनते थे, लेकिन बीते लंबे समय से तो वे हाईकोर्ट के निर्देशों तक को महत्व नहीं दे रहे हैं। यही वजह है कि अब हाईकोर्ट को उनके खिलाफ तीखी टिप्पणियां तक करनी पड़ रही हैं। इसके बाद भी प्रदेश की अफसरशाही मनमानी करने से बाज नहीं आ रही है। ऐसे एक नहीं कई मामले लगातार सामने आ रहे हैं। इन अफसरों में कलेक्टर से लेकर मुख्य सचिव स्तर के अफसर शामिल हैं। हाई कोर्ट के निर्देशों का समय पर पालन नहीं करने और उन पर अमल के लिए कोई कदम नहीं उठाने की वजह से कई बार तो अफसरों पर जुर्माना और गिरफ्तारी तक का वारंट निकलना पड़ रहा है। इसके बाद भी सरकार ऐसे अफसरों पर कोई कार्रवाई नहीं करती है। इनमें अधिकांश वे अफसर हैं, जिनके जिम्मे कानून का पालन कराने से लेकर कानून व्यवस्था बनाए रखना होता है।
ऐसा ही एक मामला प्रमुख सचिव पी नरहरि का सामने आया है। उनके विभाग से 2020 में रिटायर हुए रामबाबू जोशी के मामले में पी नरहरि को अवमानना का नोटिस जारी किया गया है। हाई कोर्ट ने भोपाल एसपी के माध्यम से नोटिस की तामील के लिए निर्देशित किया है। मामले की अगली सुनवाई 21 मार्च को होगी। जवाब पेश नहीं करने की स्थिति में हाई कोर्ट ने प्रमुख सचिव को व्यक्तिगत रूप से उपस्थित रहने का आदेश देने की चेतावनी दी है। दरअसल, रामबाबू जोशी के प्रकरण में हाई कोर्ट ने जनवरी 2018 में 1989 से न्यूनतम वेतनमान का लाभ देने का आदेश दिया था। 6 मार्च को हुई सुनवाई में चीफ इंजीनियर आरएलएस मौर्य ने बताया कि 1.95 लाख का भुगतान तो हो गया। लेकिन ब्याज के 86 हजार का भुगतान अटक गया। एडवोकेट नितिन अग्रवाल ने कोर्ट को बताया कि प्रमुख सचिव पी नरहरि मामले में कुछ कर नहीं रहे। इस पर कोर्ट ने प्रमुख सचिव को नोटिस भेजकर जवाब मांगा है।
इसी तरह से ग्वालियर हाईकोर्ट की एकलपीठ ने अवमानना याचिका में कलेक्टर रुचिका चौहान को फटकार लगाई। हाईकोर्ट ने सवाल पूछते हुए कहा है कि अधिकारी ऑफिस में बैठकर खुद को शेर समझते हैं। किसी की सुनते नहीं हैं। कोर्ट को भी नहीं गिन रहे। कोर्ट ने सवाल किया कि प्रकरण में आपने क्या कार्रवाई की। इस पर कलेक्टर ने कहा कि तहसीलदार को तलब किया है। लोक निर्माण विभाग की सेंट्रल पार्क के सामने वाली संपत्ति को कुर्क किया गया है। कोर्ट ने कलेक्टर रुचिका चौहान को अवमानना के लिए दोषी मानते हुए दंड पर सुनवाई के लिए 11 मार्च को तलब किया है। दरअसल, रामकुमार गुप्ता को पीडब्ल्यूडी में उपयंत्री के पद पर वर्गीकृत किया गया था। वर्गीकृत किए जाने के बाद वेतन की राशि का भुगतान नहीं किया। इसको लेकर लेबर कोर्ट ने 17 लाख 61 हजार रुपए की आरआरसी जारी कर दी, लेकिन विभाग ने राशि का भुगतान नहीं किया। इसको लेकर रामकुमार ने याचिका दायर की है। याची के अधिवक्ता अभिषेक अग्रवाल ने तर्क दिया कि 2018 में आरआरसी पालन का आदेश दिया, पर विभाग ने कार्रवाई नहीं की। 2018 से अवमानना याचिका भी दायर की गई। कलेक्टर ने आरआरसी का पालन नहीं कराया। सात साल बीत गए हैं।
भिंड कलेक्टर की कायैशेली पर खड़े किए सवाल
ग्वालियर हाईकोर्ट ने भिंड कलेक्टर संजीव श्रीवास्तव की कार्यप्रणाली पर भी सवाल खड़े किए हैं। कहा कि कलेक्टर ने कोई सबक नहीं सीखा है। उनके द्वारा पीडब्ल्यूडी की संपत्ति कुर्क करना दिखावा मात्र है। ऐसा अधिकारी फील्ड में रहना चाहिए या नहीं, मुख्य सचिव खुद तय करें। आदेश की कॉपी मुख्य सचिव को भी भेजी जाएगी। कोर्ट ने अवमानना के लिए दोषी मानते हुए 11 मार्च को 10.30 बजे उपस्थित होने का आदेश दिया है। कलेक्टर ने सुभाष सिंह भदौरिया के वेतन बकाया केस में पालन प्रतिवेदन रिपोर्ट पेश किया। उन्होंने बताया कि 31 जुलाई 2023 को पदभार ग्रहण किया। अवमानना याचिका 23 फरवरी-2024 को सूचीबद्ध की गई। तहसीलदार ने 22 फरवरी 2024 को आरआरसी निष्पादन के लिए प्रकरण पंजीकृत किया। 13 मई को पीडब्ल्यूडी की संपत्ति कुर्क की गई। इसके बाद संपत्ति नीलाम की गई। इससे 20,200 रुपए आए। खर्च काटने के बाद 15,614 रुपए श्रम न्यायालय में जमा कर दिए। चल संपत्ति नीलामी से पर्याप्त धनराशि नहीं आने से आरआरसी निष्पादित नहीं की जा सकी। अब पीडब्ल्यूडी की अचल संपत्ति कुर्क की गई। हाईकोर्ट कलेक्टर के इस जवाब से संतुष्ट नहीं हुआ। कोर्ट ने हैरानी जताते हुए कहा कि भिंड कलेक्टर चल संपत्ति की नीलामी में हुए खर्च को वसूल करने में दिलचस्पी रखते थे।
डीपीआई आयुक्त के खिलाफ जमानती वारंट
मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने पूर्व आदेश का पालन नहीं होने के मामले में लोक शिक्षण आयुक्त शिल्पा गुप्ता के खिलाफ जमानती वारंट जारी किया है। जस्टिस संजीव सचदेवा व जस्टिस विनय सराफ की डिवीजन बेंच ने पालन रिपोर्ट के साथ 24 मार्च को कोर्ट में हाजिर होने के निर्देश दिए हैं। सीहोर निवासी हरिओम यादव सहित अन्य की ओर से दायर याचिका पर वरिष्ठ अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर व अन्य ने पक्ष रखा। बताया कि आवेदक सहित 50 से ज्यादा शिक्षकों को मेरिट के आधार पर अनारक्षित वर्ग में ट्रायबल वेलफेयर स्कूल में की गई पदस्थापना को अवैधानिक मानते हुए उनकी पहली पसंद के अनुसार डीपीआई के स्कूल में पदस्थापना देने कहा गया था। चार हते की मोहलत दी गई थी। इसके बाद भी आयुक्त डीपीआई ने आदेश का पालन नहीं किया। कोर्ट ने 10 फरवरी को आयुक्त से 3 मार्च के पूर्व जवाब तलब किया था। आवेदक की ओर से दलील दी गई, नोटिस तामीली के बावजूद अनावेदक की ओर से कोई जवाब नहीं दिया गया।