किसकी मेहरबानी से अंगद का पांव बने मुख्य अभियंता

  • बड़ी-बड़ी खामियां सामने आने के बाद भी पद पर जमे

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम
लोक निर्माण विभाग में छोटी-छोटी गलतियों पर  जहां इंजीनियरों को बलि का बकरा बना दिया जाता है, वहीं  बड़ी-बड़ी खामियां उजागर होने के बावजूद प्रभारी मुख्य अभियंता संजय मस्के राजधानी परिक्षेत्र में पिछले 5 साल से जमे हुए हैं। इस बीच विभाग के पांच प्रमुख अभियंता (ईएनसी), 2 मंत्री, 2 सरकारें बदल चुकी हैं। ऐसे में सवाल उठने लगे हैं कि आखिरकार मुख्य अभियंता पर किसकी मेहरबानी है कि वे अंगद के पांव की तरह जमे हुए हैं।
गौरतलब है कि राजधानी भोपाल में लोक निर्माण विभाग ने पिछले 5 साल के भीतर जितने भी पुल, फोरलेन एवं अन्य प्रमुख मार्ग बनाए उनमें कोई न कोई बड़ी खामी सामने आई है, लेकिन इस घनघोर लापरवाही के लिए विभाग अभी तक उच्च स्तर पर किसी की जिम्मेदारी तय नहीं कर सका है। हर बार निचले स्तर के अधिकारियों को निलंबित कर या नोटिस देकर इतिश्री कर ली जाती है। आमतौर पर एक जगह पदस्थापन के लिए तीन साल की अवधि रहती है, पर प्रभारी मुख्य अभियंता संजय मस्के राजधानी परिक्षेत्र में पिछले 5 साल से जमे हैं।
घटिया निर्माण की लगातार शिकायतें
संजय मस्के को पांच साल पहले प्रभारी मुख्य अभियंता राजधानी परिक्षेत्र भोपाल पदस्थ किया गया था। इस बीच सरकार ने राजधानी परियोजना प्रशासन (सीपीए) को खत्म करके लोनिवि में विलय कर दिया। यानी सीपीए के 200 करोड़ से ज्यादा के काम राजधानी परिक्षेत्र के पास आए। सीपीए के खात्मे के बाद राजधानी स्थित कई शासकीय भवनों के मेंटेनेंस से लेकर पार्क, सडक़ एवं अन्य कार्यों में गुणवत्ता में कई खामियां आईं। मुख्य अभियंता के नियंत्रण में  भोपाल के अलावा आसपास के जिलों में लोक निर्माण विभाग द्वारा कराए जा रहे कार्यों में भी गड़बडिय़ां उजागर हुईं। लोनिवि के पास राजधानी में तीन हजार किमी से ज्यादा सडक़ों की जिम्मेदारी है, लेकिन वहां से भी हर बार घटिया निर्माण की शिकायतें सामने आती हैं। राजधानी में गणेश मंदिर से गायत्री मंदिर तक 153 करोड़ की लागत से बनाए गए करीब ढाई किमी लंबे ओवर ब्रिज का मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने जनवरी में लोकार्पण किया था। उसके अगले ही दिन पुल का घटिया निर्माण उजागर हो गया। अपर मुख्य सचिव नीरज मंडलोई ने निरीक्षण के बाद दो इंजीनियरों को निलंबित किया और दो को नोटिस भेजा। जबकि पुल निर्माण के दौरान भी ये खामियां सामने आईं थीं, तब मस्के ऐसी किसी भी बात से इंकार करते रहे। भोपाल शहर का कोलार क्षेत्र बड़ा आकार ले रहा है। यहां बढ़ती आबादी के चलते 40 करोड़ की लागत से कोलार फोरलेन का कार्य जारी है। इस सीसी सडक़ की गुणवत्ता पर शुरुआत से ही सवाल उठ रहे हैं। जगह-जगह क्रेक हैं। यहां इंजीनियरों ने एक डिवाइडर एल शेप में बना डाला जो अकुशल इंजीनियरिंग का उदाहरण है। लेकिन इसमें भी वरिष्ठ अधिकारियों की कोई जिम्मेदारी तय नहीं हुई है।

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