आम आदमी पार्टी के अस्तित्व पर खतरा!

  • अमिताभ श्रीवास्तव
आम आदमी पार्टी

दिल्ली की करारी हार के बाद आम आदमी पार्टी अब तेजी से खात्मे की तरफ बढ़ सकती है। इस हार ने उसकी जड़ें हिला दी हैं। आम आदमी पार्टी किसी स्पष्ट विचारधारा के आधार पर अस्तित्व में नहीं आई थी। भगतसिंह से लेकर हनुमान जी तक सबकी खिचड़ी पकाई है  अरविंद केजरीवाल ने । उनका पर्सनल करिश्मा आम आदमी पार्टी के उभार और विस्तार का सबसे बड़ा कारण था। अब जबकि अरविंद केजरीवाल और उनके सबसे भरोसेमंद साथी मनीष सिसोदिया खुद अपनी ही सीट हार गये हैं तो दिल्ली और देश के आम आदमी पर उनके असर के बारे में क्या ही कहा जाए । दिल्ली की सत्ता गंवाने के बाद एक राष्ट्रीय पार्टी के तौर पर विस्तार का सपना तो चकनाचूर होगा ही, इसका सीधा असर पंजाब में आम आदमी पार्टी की सत्ता पर पड़ेगा और सरकार का बचाखुचा कार्यकाल डांवाडोल ही रहने वाला है। बीजेपी तो अब अरविंद को कतई चैन से जीने नहीं देगी। अरविंद वापस जेल जा सकते हैं और इस बार लंबे समय के लिए। पार्टी में टूट हो सकती है। कई नेता पार्टी छोडक़र दूसरे दलों में जा सकते हैं। विपक्ष का एक और गढ़ ढह गया है और अगर इंडिया गठबंधन बना रहा, तो इसमें अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी की स्थिति कमजोर होगी।
आम आदमी पार्टी को इन विधानसभा चुनावों में 43.36 प्रतिशत वोट मिला है, जिसमें  पिछले चुनाव से लगभग 11 फीसदी की गिरावट आयी है। उधर, बीजेपी को 46.22 प्रतिशत वोट मिले हैं। अगर इसमें उसके सहयोगियों जेडीयू और लोकतांत्रिक जनशक्ति पार्टी का वोट फीसद (जेडीयू 0.52 प्रतिशत और लोजपा 0.51 प्रतिशत) भी जोड़ लें तो यह 47 प्रतिशत से थोड़ा सा ही ज्यादा होता है। कांग्रेस को 6.36 प्रतिशत वोट मिला है, यानी पिछले चुनाव से उसके मत प्रतिशत में बढ़ोतरी हुई है।
इस गणित के आधार पर कहा जा सकता है कि अगर आम आदमी पार्टी और  कांग्रेस मिलकर चुनाव लड़ते तो 50 प्रतिशत वोट मिल सकते थे और तब बीजेपी सत्ता की दौड़ में पीछे रह जाती। लेकिन लोकसभा चुनावों  में कांग्रेस से हुए गठबंधन को आम आदमी पार्टी ने ही चुनाव के फौरन बाद तोड़ दिया था। हालांकि लोकसभा में साथ मिलकर लड़ने का दिल्ली में कोई फायदा नहीं मिला था, क्योंकि सातों लोकसभा सीटें बीजेपी के खाते में गई थीं। कांग्रेस  ने भी दिल्ली चुनाव में कुछ हासिल नहीं किया है, सिवाय इस खुशी के कि उसको दिल्ली की सत्ता से बेदखल करने वाले अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी अब खुद सत्ता से बाहर हो गये हैं।
जिस दिल्ली में कांग्रेस ने सबसे लंबे समय तक राज किया और उसका दबदबा रहा, उस दिल्ली में अब कांग्रेस लगातार तीसरे विधानसभा चुनाव में जीरो सीट पाकर भी बहुत ख़ुश है क्योंकि इस बार उसने सही मायनों में वोट कटवा पार्टी बनकर अरविंद केजरीवाल से अपनी पुरानी हार का बदला ले लिया है। भले ही इस दांव की वजह से विपक्ष की एक और सरकार चली गई।
विपक्ष की राजनीति ऐसी ही नासमझियों और ख़ुदगर्जियों की वजह से बर्बाद है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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