संत सियाराम बाबा का निर्वाण

संत सियाराम बाबा
  • पंकज झीरसागर
  • स्मृति शेष
    मां नर्मदा तट पर मध्यप्रदेश के खरगोन जिले के ग्राम तेली भट्याण में दशकों से निवासरत, इस जन्म में एक शतक से अधिक आयु के संत श्री सियाराम बाबा ने आज धरा से प्रस्थान किया। वह भी मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की मोक्षदा एकादशी और गीता जयंती की भोर को।
    बाबाजी करीब 70 वर्ष से इस स्थान पर निवासरत रहे हैं। आपका मूल जन्म स्थान महाराष्ट्र है। सियाराम बाबा का आश्रम निवास पूजा कक्ष आगंतुक कक्ष जो सब एक ही है वह आज उनके कारण तीर्थ बन गया है। कहते हैं यहां एक हनुमानजी का मंदिर भी है। कुछ विवादों के चलते मंदिर में दीवारें बना दी गई है। लेकिन दीवार पर कान लगाकर ध्यान से सुनिए तो घंटियां सुनाई देती हैं।
    मां नर्मदा के अनन्य भक्त, दिन में 21 घंटे से अधिक अनवरत रामायण, रामचरित मानस का पाठ करने वाले, प्रभु श्री राम और श्री हनुमान के परम अनुयायी के मूल नाम जन्म स्थान के बारे में शायद किसी को कुछ पता होगा।
    लेकिन यह जरूर पता है कि वह 12 वर्षों के मौन व्रत पर रहे हैं। बाबा ने 10 वर्षों तक खड़े रहकर तपस्या की। उनके आश्रम कक्ष में बाबाजी के साथ उनके भगवान, उनके भक्त और परिसर में रहने वाले श्वान सभी रहते रहे हैं। आप जाओ तो आपको वहां कोई न कोई सेवादार चाय जरूर पिलाता है। बाबा के यहां दक्षिणा भी अत्यधिक तौर पर 10 रुपए ही स्वीकारी जाती है।  
    संत सियाराम बाबा ने अपने इस तपनिष्ठ जीवन में केवल लंगोट धारण किया। उम्र के कारण पैरों पर पट्टियां बंधी रहती थीं। बाबाजी प्रतिदिन आश्रम की सीढिय़ां उतरकर नर्मदाजी में स्नान करते। इसी नर्मदाजी की बांध परियोजना के डूब मुआवजे की राशि के पूरे 2 करोड़ 60 लाख रुपए बाबाजी ने घाट सुधार एवं जनसुविधा निर्माण में खर्च कर दिए।
    केवल इच्छा शक्ति से बिना माचिस के दीप प्रज्वलित कर देने वाले, सादगी और अत्यंत साधारण जीवन, विनम्रता और पारदर्शिता, बिना उपदेशों के केवल तप मार्ग पर चलना, किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं करना, ऐसे श्री हनुमान और श्री राम के भक्त सदा सर्वदा हृदय में रहेंगे। आज जब सूर्य अस्ताचल की तरफ होगा, तब बाबाश्री की देह पंचतत्व में विलीन हो जाएगी। उनको, उनके तप को, उनकी ख्याति को, उनकी भक्ति को, उनकी सादगी को दंडवत प्रणाम।
    नर्मदे हर, जीवन भर। जय सियाराम। जय श्री हनुमान। जय सियाराम बाबा।

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