- एनजीटी के निर्देशों के अनुसार नहीं हो रहा राख का उपयोग
विनोद उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम। फ्लाई ऐश यानी उडऩ राख। ऐसी जहरीली राख जो कोयले को जलाने पर मिलती है और हवा के संपर्क में आने पर उड़ सकती है। यह पर्यावरण के लिए खतरा बन गई है। कोयला आधारित थर्मल पावर प्लांट्स से निकलने वाली फ्लाई ऐश को खत्म करने के तमाम दावे फेल हो रहे हैं। राखड़ का स्टॉक कम होने का नाम ही नहीं ले रहा। यह राख नदी-नालों के जरिए तालाबों और हवा के जरिए इंसानों के लिए खतरा बन रही है। केंद्र सरकार 1999 से फ्लाई ऐश को लेकर चेता रही है। 2003, 2007, 2009, 2016 में केंद्र ने इसे राष्ट्रीय समस्या माना और स्टॉक खत्म करने की रूपरेखा बताई। लेकिन मप्र में इसका ठीक से पालन नहीं किया गया। सामान्य प्रशासन विभाग ने जुलाई 2011 में फ्लाई ऐश के स्टॉक को खत्म करने के लिए राज्य स्तरीय निगरानी समिति बनाई। पर्यावरण विभाग के पीएस को अध्यक्ष, पीडब्ल्यूडी, ऊर्जा, खनिज व आयुक्त गृह निर्माण को सदस्य और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सदस्य सचिव को संयोजक बनाया गया। समिति ने गिने-चुने मौकों पर खानापूर्ति करने वाली बैठकें करें।
मप्र गौरतलब है कि कि 15 थर्मल पावर प्लाट सालाना औसतन 2.85 करोड़ मीट्रिक टन फ्लाई ऐश उग रहे हैं। सरकारी दावा है कि इसमें से 62 फीसदी का उपयोग किया जा रहा है। यानी 38 फीसदी फ्लाई ऐश अभी भी जल, जंगल और जमीन को जकड़ रही है। फ्लाई ऐश की वजह से सिंगरौली बांध फूटने की सबसे बड़ी घटना सामने आ चुकी है। सारणी जैसे कई बांध राख से गले तक भर गए हैं। नदी-नालों में फ्लाई ऐश जमा होने के कारण इनकी जल संग्रहण क्षमता कम होती जा रही है। हवा के साथ उडऩेे और पानी के साथ बहने बाली राख जमीन को बंजर बना रही है। पर्यावरण को हो रहे नुकसान को तो गिना ही नहीं जा रहा। यह सबकुछ होने के बावजूद जिम्मेदार कागजी घोड़े दौड़ा रहे हैं।
लगातार तबाही मचा रही राख
बात 2020 की है। रिलायंस सासन पावर फ्लाई ऐश डैम (डाइक) फूटने से जल, जंगल, जमीन और जानमाल की भारी तबाही हुई थी। इसके बाद भी सासन पावर के लापरवाह अधिकारियों पर एफआइआर दर्ज नहीं की गई थी। जिले के हर्रहवा से लेकर रिहंद नदी तक फैली हजारों टन राख और इसके नीचे मकान दब गए थे। इसी राख के ढेर के नीचे से पांच शव बरामद किए गए थे। अनूपपुर जिले में पलाई ऐस परिवहन का कार्य जैतहरी स्थित मोजर वेयर पावर प्लांट एवं चचाई स्थित अमरकंटक ताप विद्युत गृह से किया जा रहा है। वर्तमान में ग्राम हरद के पास जमुना कोतमा क्षेत्र के एसईसीएल के बंद ओपन कास्ट कोयला खदान के गड्ढे में राख डम्प की जा रही है। इसके साथ ही कोतमा के ग्राम गढ़ी में स्थित गड्ढे में ऐसा किया जा रहा है। फ्लाई ऐश परिवहन के दौरान जिला मुख्यालय में सुबह 6 से रात 10 बजे तक नो-एंट्री होने से चचाई अनूपपुर मार्ग, अनूपपुर-जैतहरी मार्ग एवं अनूपपुर-साधा मार्ग पर बिना सुरक्षा उपाय के वाहनों को सुबह से रात 10 तक सडक़ किनारे पार्क कर दिया जाता है। बीते दिनों चचाई मार्ग पर 3 बाइक सवार युवक इस वाहन में पीछे से टकरा गए, जिससे तीनों की मौत हो गई। कोतमा नेशनल हाईवे पर भी इसी तरह से अंधेरे में सडक़ पर खड़े वाहन से टकराने से तीन की मौत इसी वर्ष हो चुकी है। कोतमा के ग्राम पंचायत गढ़ी में गड्ढे में फ्लाई ऐश की भरपाई किए जाने से भारी वाहनों के आवागमन से प्रधानमंत्री ग्राम सडक़ योजना के अंतर्गत निर्मित निगवानी मार्ग टूट गया है। इससे ग्रामीणों का आवागमन प्रभावित हो रहा है।
फ्लाई ऐश का पूरा उपयोग नहीं
थर्मल पावर प्लांट में कोयला जलाकर बिजली बनाने से राख निकलती है। यही फ्लाई ऐश है। मप्र समेत देश के पावर प्लांट बिजली की 70-75 प्रतिशत जरूरत पूरी करते हैं। जम्मू-कश्मीर को छोड़ दें तो सभी राज्यों में ये प्लांट है। वैश्विक स्तर पर बिजली पैदा करने के इस पैटर्न को सोलर समेत अन्य माध्यमों से बदलने की कर जमी है कई ऐस की समस्या से निपटा जा सके। प्रदेश में सरकारी और निजी क्षेत्र के 15 बर्मल पावर प्लांट हैं। बिजली उत्पादन क्षमता लगभग 22,730 मेगावाट है। सालाना 2 करोड़ 85 लाख 17 हजार 588 मीट्रिक टन फ्लाई ऐश निकलती है। इनमें से सारणी अनूपपुर नरसिंहपुर में ही फ्लाई ऐश कर 80 से 95 प्रतिशत उपयोग हो रहा है, बाकी के प्लाटों में ढेर लगा है। सिंगरौली का महान और नरसिहपुर के गाडरवारा का का आधा भी उपयोग नहीं करवा पा रहे। सारणी में 11 एमबी पावर लिमि अनूपपुर में 100 प्रतिशत, निवारी गाडरवारा का बीएलए पावर प्लांट 100 प्रतिशत नई ऐश के उपयोग का दावा कर रहे हैं। राष्ट्रीय स्तर पर भी फ्लाई ऐश के उपयोग में कमी नहीं आ रही। विशेषज्ञों के अनुसार एक मेगावाट बिजली उत्पादन में 1800 से 2000 टन फ्लाई ऐश प्रतिदिन निकलती है। इसमें 18-20 प्रतिशत बालू जैसी मोटी राख और 80 प्रतिशत हवा में फैलने योग्य फ्लाई ऐश रहती है। पर्यावरणकविदों का कहना है कि थर्मल पावर प्लांट्स के आसपास के बांध, नदी, नाली में सिल्ट जमा हो गई है। जल, जंगल जमीन को खतरा बढ़ता जा रहा है है। सरकार कोई अध्ययन नहीं करा है। फ्लाई ऐश के उपयोग को लेकर कागजी चौड़े दौड़ाए जा रहे हैं. हकीकत में स्टॉक खत्म नहीं हो रहा है।