पद और प्रतिष्ठा के लिए नेताओं को करना होगा लंबा इंतजार
गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। कांग्रेस छोडक़र भाजपा में आए नेताओं की राह अब मप्र में आसान नहीं दिख रही। लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस छोडक़र भाजपा में आए रामनिवास रावत को तो मंत्री पद मिल गया, लेकिन छिंदवाड़ा के अमरवाड़ा से विधायक कमलेश शाह मंत्री नहीं बन पाए। अकेले शाह ही नहीं बल्कि इनमें पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश पचौरी से लेकर कमल नाथ का दाहिना हाथ कहे जाने वाले दीपक सक्सेना, पूर्व सांसद गजेंद्र सिंह राजूखेड़ी सहित सैकड़ों नेता ऐसे हैं, जो बड़ी उम्मीद के साथ कांग्रेस छोड़ भाजपा में आए थे, लेकिन फिलहाल उनकी मंशा पर पानी फिर रहा है। हालांकि केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ जो नेता भाजपा में आए थे उन्हें पूरा मान-सम्मान, पद और प्रतिष्ठा मिला है।
गौरतलब है कि मप्र में पिछले चार वर्ष से दल-बदल का खेल जमकर खेला रहा है। इस वजह से राजनीतिक दलों का परिदृश्य ही बदल गया है। विधानसभा चुनाव में भाजपा ने कांग्रेस से आए सात नेताओं मोहन सिंह राठौर, ब्रजबिहारी पटेरिया, राजेश शुक्ला, सिद्धार्थ तिवारी, सचिन बिरला, छाया मोरे और कामाख्या प्रताप सिंह को टिकट दिया। सभी ने जीत हासिल की और विधायक बन गए। लोकसभा चुनाव के पहले भी कांग्रेस में भगदड़ की स्थिति बनी रही। भाजपा की न्यू ज्वाइनिंग टोली के प्रदेश संयोजक डॉ. नरोत्तम मिश्रा ने कांग्रेस के पूर्व सांसद, पूर्व विधायक, प्रदेश व जिला पदाधिकारियों की बड़ी संख्या में भाजपा में ज्वाइनिंग कराई। हालांकि इनमें से अधिकांश को सदस्यता के अलावा कुछ खास नहीं मिला है।
मोहन कैबिनेट में सिंधिया समर्थकों का अच्छा प्रभाव
पूर्व मुख्यमंत्री स्व. कैलाश जोशी के बेटे और पूर्व मंत्री दीपक जोशी की भाजपा में वापसी के बाद अब दल-बदल फिर चर्चा में है। वर्ष 2020 में कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ जितने नेताओं ने पार्टी छोडक़र भाजपा का दामन थामा था, उन सभी की अब तक बल्ले-बल्ले है। शिवराज सिंह से लेकर मोहन कैबिनेट तक में उनका अच्छा प्रभाव है। कांग्रेस से आए नेताओं का डॉ. मोहन यादव की कैबिनेट में भी दबदबा है। इनमें इंदौर से तुलसी सिलावट जल संसाधन मंत्री हैं। ग्वालियर से प्रद्युम्न सिंह तोमर ऊर्जा मंत्री हैं। सागर जिले से गोविंद सिंह राजपूत खाद्य नागरिक आपूर्ति उपभोक्ता संरक्षण मंत्री है। मुरैना से एदल सिंह कंषाना कृषि मंत्री है। कंषाना को छोडक़र बाकी सभी तत्कालीन शिवराज सरकार में भी मंत्री रहे हैं। इनके अलावा छह बार के कांग्रेस विधायक रामनिवास रावत को वन एवं पर्यावरण मंत्री बनाया गया है। वहीं, उदय प्रताप सिंह भी कांग्रेस छोड़ भाजपा में आए थे। अब मोहन कैबिनेट में परिवहन एवं स्कूल शिक्षा मंत्री हैं। कैबिनेट में अभी तीन पद खाली हैं। वहीं, विधानसभा चुनाव 2023 और लोकसभा चुनाव में बड़ी संख्या में कांग्रेस छोडक़र जो लोग भाजपा में शामिल हुए, उनमें से ज्यादातर की हताशा बढ़ती जा रही है।
मंत्री दर्जा की आस
भाजपा के सूत्र बताते हैं कि सरकार में राजनीतिक नियुक्तियों को लेकर सूची तैयार तो हो गई थी, लेकिन अब माना जा रहा है कि पार्टी के संगठन चुनाव के बाद ही उन्हें मंत्री दर्जा मिल पाएगा। भाजपा में शामिल हुए पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश पचौरी के बारे में सूत्र बताते हैं कि उन्हें ज्योतिरादित्य सिंधिया के सांसद चुने जाने के बाद रिक्त होने वाली राज्यसभा की सीट देने का आश्वासन दिया गया था लेकिन हुआ कुछ और। सुरेश पचौरी का कद कांग्रेस में राष्ट्रीय स्तर के नेताओं के बराबर था। वह लंबे समय तक राज्यसभा सदस्य भी रहे। दिल्ली की राजनीति में उनकी मजबूत पकड़ रही है लेकिन जब से भाजपा में आए हाशिए पर ही हैं। इसी तरह दीपक सक्सेना को भी भाजपा नेताओं ने निगम-मंडल में नियुक्ति का भरोसा दिलाया था, पर उन्हें भी कुछ नहीं मिला। कांग्रेस विधायक रहे कमलेश शाह को भी मंत्री बनाने का वादा किया था, लेकिन वह केवल विधायक बन पाए। गौरतलब है कि मार्च 2024 तक पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश पचौरी सहित 6 पूर्व विधायक, 1 महापौर, 205 पार्षद-सरपंच और 500 पूर्व जनप्रतिनिधियों सहित 17 हजार कांग्रेसियों ने भाजपा जॉइन की। अप्रैल में टोली के संयोजक डॉ. नरोत्तम मिश्रा ने दावा किया था कि एक ही दिन में 1 लाख लोगों ने पार्टी जॉइन की। इनमें 90 फीसदी नेता कांग्रेस पार्टी से आए।
विधानसभा सत्र में तय होगा निर्मला का भविष्य
कांग्रेस छोडक़र भाजपा में आई सागर जिले की बीना विधायक निर्मला सप्रे ने अबतक विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा नहीं दिया है। वही कांग्रेस दल बदल कानून के तहत उनके खिलाफ कार्रवाई की मांग कर रही है। दरसअल, 16 दिसंबर से मप्र विधानसभा का शीतकालीन सत्र शुरू होने वाला है। ऐसे में माना जा रहा है कि सत्र के दौरान निर्मला सप्रे के राजनैतिक भविष्य का फैसला किया जा सकता है। निर्मला सप्रे को लेकर अंतिम फैसला विधानसभा अध्यक्ष को लेना है, लेकिन यह जरूर तय है कि अगर 16 दिसंबर से पहले निर्मला सप्रे को लेकर कोई फैसला नहीं लिया गया तो सत्र में उनके लिए अलग से बैठने की व्यवस्था की जाएगी। निर्मला सप्रे ने साल 2023 में कांग्रेस के टिकट पर बीना सीट से चुनाव लड़ा था और चुनाव जीत गई थी, लेकिन निर्मला सप्रे ने बीते लोकसभा चुनाव के दौरान सागर जिले के राहतगढ़ में सीएम मोहन यादव की एक सभा के दौरान भाजपा में शामिल हो गई थी। निर्मला सप्रे बीजेपी में तो शामिल हो गई, लेकिन उन्होंने विधानसभा सदस्यता से इस्तीफा नहीं दिया, जबकि वे भाजपा के कार्यक्रमों और भाजपा नेताओं के साथ नजर आई। कांग्रेस का आरोप है कि जब उन्होंने दल बदल कर लिया है तो उनको इस्तीफा दे देना चाहिए, उनके खिलाफ दल बदल कानून के तहत कार्रवाई होना चाहिए।