सरकारों पर भारी पड़ी अफसरों की अरुचि

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  • ई-ऑफिस प्रणाली मामले में की जा रही देरी

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश की अफसरशाही की कार्यप्रणाली ही ऐसी है कि सरकार का मुखिया कोई भी हो, वह काम अपनी ही तरह से ही करती है। इसका बड़ा उदाहरण है प्रदेश के सरकारी विभागों में लागू होने वाली ई-ऑफिस प्रणाली। यही वजह है कि छह साल बाद भी इस पर अमल नहीं हो पाया है। इस बीच चार सरकारें बदल गईं और हर सरकार की प्राथमिकता में ई-ऑफिस प्रणाली रही है, इसके बाद भी वह लागू नहीं हो सकी है। इसकी वजह है अफसरशाही की इस मामले में रुचि नहीं होना। दरअसल इस कार्यप्रणाली से सरकारी कार्यालयों में सरलीकृत, उत्तरदायी, प्रभावी, जवाबदेह और पारदर्शी कामकाज हो सकता है। ई-ऑफिस की गति और दक्षता न केवल विभागों को सूचित और त्वरित निर्णय लेने में सहायता करती है बल्कि उन्हें कागज रहित भी बनाती है। इसमें अफसरशाही का सबसे बड़ी दिक्कत फाइल ट्रेक होने से है। फाइलें अभी कहां पर हैं और किसने दबा कर रखी थी यह पता नहीं चल पाता है। यही वजह है कि इस प्रणाली को लागू करने के लिए 2018 में शिवराज सरकार में लागू करने की योजना बनाई गई थी। जिस पर 2019 में कमलनाथ सरकार में भी महज चर्चा होती रही। 2020 में फिर से शिव सरकार बनी तब भी कुछ नहीं हुआ , लेकिन अब मोहन सरकार में इस पर काम होना शुरु हुआ है। ई-ऑफिस प्रणाली मप्र के ज्यादातर सरकारी कार्यालयों में अभी भी किसी शिगूफे से कम नहीं लग रही है। इसकी सबसे बड़ी वजह अफसरों में काम करने की रूचि नहीं होना है। मुख्य सचिव अनुराग जैन ने अभी हाल में ही बैठक लेकर ऐसे सभी अफसरों व विभागों से साफ कर दिया है कि हर हाल में वे 30 दिसंबर तक अपने-विभाग में ई- ऑफिस प्रणाली लागू करें। एक जनवरी से सारे कामकाज इसी प्रणाली पर होंगे। यह आदेश अभी महज मंत्रालय के लिए होगा, इसके बाद सभी संचालनालयों व प्रदेश भर में इसे क्रियान्वित किया जाएगा।
खरीदी होने के बाद भी नहीं हुआ काम
सामान्य प्रशासन विभाग ने मार्च 2018 में सभी विभागों को आदेश जारी कर ई-ऑफिस प्रणाली का क्रियान्वयन कराने को कहा था। उस वक्त जीएडी की की कुछ शाखओं को छोडक़र बाकी किसी भी विभाग ने कोई खास काम नहीं किया। जबकि इस कार्य के लिए बाकायदे राशि का अलाटमेंट किया गया था। इस राशि से कंप्यूटर से लेकर अन्य सामानों की खरीदी भी की गई। पर, अफसरों की रूचि नहीं होने की वजह से इस प्रणाली में कुछ खास प्रगति नहीं हो पाई। जीएडी ने बाद में जून 2019 में भी पत्र भेजकर स्मरण कराया, इसके बाद भी किसी ने कोई रूचि नहीं ली। वर्ष 2021 में भी इसी तरह का एक पत्र भेजा गया।
विभागों से ली थी सहमति
अक्टूबर 2022 में विज्ञान एवं प्रौद्योगिक विभाग के तत्कालीन प्रमुख सचिव निकुंज कुमार श्रीवास्तव ने सभी विभागों के अपर मुख्य सचिवों, प्रमुख सचिवों व सचिवों को पत्र भेजकर बाकायदे ई-ऑफिस प्रणाली के नए वर्जन के लिए सहमति ली। उन्होंने समझाया कि ई-ऑफिस प्रणाली में नस्तियों का निराकरण तेजी से होता है। यह भी बताया कि यह आखिर समय के साथ कदमताल करने के लिए क्यों जरूरी है। एक प्रपत्र में उन्होंने विभागीय अभिमत भी ले लिया, किंतु यहां एक बार फिर से अफसरों की रूचि व अरुचि का मुद्दा सामने आया और सब कुछ ठंडे बस्ते में ही रहा।
अब जीएडी ने उक्त दोनों पत्रों का हवाला देकर फिर से पत्र लिखा
नए मुख्य सचिव जैन के पदभार ग्रहण करने के बाद संभावना जगी है कि अब पहले मंत्रालय के विभागों में इसके बाद प्रदेश भर में ई- ऑफिस प्रणाली पर काम शुरू हो जाएगा। जीएडी ने अभी 7 नवंबर 2024 को सभी विभाग के एसीएस, पीएस व सचिवों को पत्र भेजकर 2018 से लेकर 2023 तक के पत्रों का हवाला देकर इस बार काम शुरू कराने को कहा है। जीएडी के एसीएस संजय दुबे ने लिखा कि इस व्यवस्था को मंत्रालय में सुदृढ़ करने का निर्णय लिया गया है। प्रथम चरण में एक जनवरी 2025 से ई-ऑफिस प्रणाली लागू किया जाना है। एक जनवरी से नस्तियां इलेक्ट्रॉनिक मोड में ही भेजी जाएंगी। मंत्रालय में ई- ऑफिस प्रणाली को हाईब्रिड मोड में उपयोग किया जा रहा है। ऐसे में अधिकारियों व कर्मचारियों के ईएमडी (एंपलाई मास्टर डाटा) का अपडेट कराना सुनिश्चत करें।

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