- अब जनता सीधे चुनेगी ‘अध्यक्ष’
- गौरव चौहान
डॉ.मोहन यादव सरकार त्रि-स्तरीय पंचायत चुनाव प्रणाली में बड़ा बदलाव करने की तैयारी कर रही है। प्रदेश में जिला पंचायत, जनपद पंचायत अध्यक्ष और नगर परिषदों के अध्यक्षों का चुनाव डायरेक्ट प्रणाली अर्थात जनता से कराया जाएगा। महापौर और नपा अध्यक्षों को जनता सीधे वोट देकर सदन में भेजती है उसी तरह चुनाव कराए जाएंगे। सूत्रों के अनुसार सीएम के निर्देश पर सीएम सचिवालय के अधिकारी प्रस्ताव की तैयारियों में जुट गए हैं। जानकारी के अनुसार जल्द ही इस संबंध में सरकार चुनाव प्रणाली में बदलाव के लिए कैबिनेट में प्रस्ताव ला सकती है। इसके बाद प्रस्ताव पास कर विधानसभा में सदन के पटल पर रखा जाएगा। बहुमत से पास होने के बाद पंचायती राज अधिनियम में बदलाव कर इसे राजपत्र में प्रकाशित कराकर लागू किया जा सकता है। इसके बाद चुनाव आयोग ये चुनाव प्रत्यक्ष प्रणाली से करा सकता है। प्रदेश में त्रि-स्तरीय पंचायत चुनाव जिसमें सबसे महत्वपूर्ण जिला और जनपद पंचायत चुनाव होते हैं, उनमें अभी तक अध्यक्ष का चुनाव गैर दलीय आधार पर अप्रत्यक्ष रूप से होता है। इसमें हॉर्स ट्रेडिंग अर्थात धनबल और बाहुबल खूब चलता है और सदस्यों की खरीद-फरोक्त भी होती है। एमपी की मोहन यादव सरकार इस पर लगाम लगाने की तैयारी में जुट गई है। संभव है आगामी दिनों में जिला, जनपद और नगर परिषदों के अध्यक्ष के चुनाव डायरेक्ट अर्थात जनता इन्हें सीधे चुन सकती है। सरकार की तरफ से कैबिनेट में जल्द ही इस आशय का प्रस्ताव लाया जा सकता है। मप्र में फिलहाल कुल 52 जिला पंचायत हैं। इनमें भाजपा समर्थित अध्यक्ष 40, कांग्रेस समर्थित अध्यक्ष 10, गोंगपा समर्थित अध्यक्ष 1 और सीधी जिला पंचायत में कोर्ट केस के कारण चुनाव नहीं हुए थे। बता दें कि 2019 में कांग्रेस की कमलनाथ सरकार बनने के बाद चुनाव में बदलाव किया गया था। सरकार ने चुनाव अप्रत्यक्ष प्रणाली यानी निर्वाचित पार्षदों के जरिए कटाने का फैसला लिया था। इसके बाद शिवराज सरकार ने इस फैसले को पलट दिया था।
अभी सामने आते हैं हॉर्स ट्रेडिंग के मामले
पंचायती राज व्यवस्था लागू होने के बाद से ही इसके चुनाव को दलीय प्रणाली से दूर रखा गया था। मंशा यह थी कि गांव के चुनाव में दलीय राजनीति हावी न हो पर ऐसा नहीं हो सका। ग्राम से लेकर जिला पंचायत के चुनाव गैरदलीय आधार पर होते हैं पर सियासी दलों की अप्रत्यक्ष रूप से इनमें पूरी घुसपैठ होती है। सदस्य से लेकर अध्यक्ष बनाने तक में सियासी दलों के नेता पूरी तरह सक्रिय रहते हैं। जिला और जनपद पंचायत के चुनाव में सदस्य सीधे जनता से चुने जाते हैं और इसके बाद वह अध्यक्ष का चुनाव करते हैं। हर जिला पंचायत और जनपद पंचायत में दस से लेकर पंद्रह वार्ड होते हैं। इनमें जीतने वाले सदस्य जिला पंचायत की तस्वीर तय करते हैं। सीधे चुनाव न होने से अध्यक्ष पद के निर्वाचन के लिए जमकर खींचतान होती है और सदस्यों की खरीद फरोख्त के आरोप भी लगते हैं। पिछली बार के चुनाव में भोपाल, दमोह, खंडवा में ऐसे नजारे देखने को मिले थे जहां कम सदस्य संख्या होने के बाद भी चुनाव परिणाम चौंकाने वाले रहे थे। भोपाल में तीन सदस्य होने के बाद भी भाजपा ने अपना समर्थित अध्यक्ष बना लिया था तो दमोह में कांग्रेस समर्थित प्रत्याशी ने जीत दर्ज की थी। हालांकि वे बाद में भाजपा में शामिल हो गईं थीं। इसी तरह खंडवा में कम सदस्य संख्या होने पर भी भाजपा ने बाजी पलट दी थी। इसलिए अब इन जिला और जनपद पंचायतों के चुनाव सीधे जनता से कराने पर विचार हो रहा है। भाजपा समर्थित जिला और जनपद अध्यक्षों की बैठक में अधिकांश नेताओं ने यह सुझाव दिया था। लिहाजा संगठन ने सरकार से इस पर विचार करने का आग्रह किया है। इसके साथ ही नगरपालिका और नगर परिषदों के अध्यक्षों का निर्वाचन भी सीधे जनता से कराने पर विचार हो रहा है। अभी सिर्फ नगर निगम के मेयर ही सीधे मतदान से चुने जाते हैं।
पार्टी सिंबल पर होंगे अध्यक्षों के चुनाव
सूत्रों के अनुसार सीएम डॉ. मोहन यादव और उनकी कैबिनेट के सदस्य जिला पंचायत और जनपद पंचायत अध्यक्ष के चुनाव सीधे जनता से कराने को लेकर राजी हैं। चुनावी प्रणाली और प्रक्रिया में जो बदलाव किया जाएगा उसमें दलीय आधार पर ही चुनाव होंगे। जैसे महापौर और नगर पालिका अध्यक्ष प्रत्याशियों को राजनीतिक पार्टियां मेनडेट जारी कर अपना प्रत्याशी घोषित करती हैं, खुलकर चुनावी कैम्पेन होता है, ठीक उसी तरह जिला और जनपद पंचायत अध्यक्षों के चुनाव भी कराए जाएंगे। जनता से सीधे चुनकर आने वाले जनप्रतिनिधि जिनमें सांसद, विधायक, महापौर, नगर पालिका अध्यक्ष शामिल हैं। वे जनता के प्रति सीधे तौर पर जवाबदेह होते हैं और जनहितैषी कार्यों के प्रति उनकी रिस्पांसबिलिटी भी होती है। वहीं, गैर दलीय और अप्रत्यक्ष रूप से होने वाले चुनावों में धनबल और बाहुबल से चुनाव जीतने वाले अध्यक्ष जनता के प्रति उदासीन हो जाते हैं। वे चुनाव में किए गए खर्च को लेकर ज्यादा चिंतित होते हैं। जिला पंचायत और जनपद पंचायत के सदस्य भी दम से अध्यक्ष के सामने अपने क्षेत्र के विकास कार्यों की बात नहीं कर पाते। चूंकी सदस्यों की खरीद-फरोक्त खूब होती है, इसलिए कई सदस्य तो जुबान भी नहीं खोल पाते। इसका खामियाजा जनता को भुगतना पड़ता है और विकास कार्य बाधित होते हैं। प्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली में जनता से सीधे चुनकर आने वाले अध्यक्षों पर दबाव नहीं होगा और वे विकास कार्यों पर ज्यादा ध्यान दे सकेंगे।
वर्तमान में प्रदेश में यह व्यवस्था
दरअसल, पंचायत के चुनाव वास्तव में गैरदलीय आधार पर कराए जाते हैं। राजनीतिक दल सीधे उम्मीदवारों को टिकट प्रदान नहीं करते, बल्कि उन्हें समर्थन देते हैं। इस कारण इन चुनावों में जोड़-तोड़ और खरीद-फरोख्त ज्यादा होती हैं। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि यदि ये चुनाव सीधे कराए जाए तो जनप्रतिनिधियों की जनता के प्रति जवाबदेही में बढ़ेगी। पंचायती राज और नगर निगम मामलों के जानकारों का मानना है कि यदि सरकार जिला जनपद और नगर परिषद अध्यक्ष का चुनाव डायरेक्ट करने पर विचार कर रही है तो इसके लिए पहले नगर पालिका और पंचायत राज अधिनियम में संशोधन होगा। विधानसभा सत्र के दौरान पंचायत और ग्रामीण विकास विभाग तथा नगरीय आवास और विकास विभाग की ओर से अधिनियम में संशोधन का प्रस्ताव केबिनेट के सामने लाया जाएगा। कैबिनेट से मंजूटी मिलने के बाद कानून में विधानसभा से संशोधन होगा। जानकारों के मुताबिक डायरेक्ट चुनाव कराने का फैसला अच्छा है। इस व्यवस्था से सौदेबाजी और धमकी देने पर रोक लगेगी। फिलहाल जो व्यवस्था से चुनाव हो रहे है उससे सही आदमी चुनकर नहीं आ पाता। चुनाव में बदलाव होने से लोकप्रिय व्यक्ति चुनाव जीतेगा। सीधे चुनाव जीतकर जो व्यक्ति आता है उसकी जवाबदारी ज्यादा होती है। उसे पता होता है कि अगली बार चुनाव जीतने के लिए जनता के बीच जाना है तो काम करना होगा। जिला पंचायत अध्यक्ष और जनपद अध्यक्ष के चुनाव सीधे कराने के लिए सरकार की तैयारी को लेकर अभी अधिकारी और मंत्री खुलकर बोलने से बच रहे हैं।