डीएनए लैब से अटकी गंभीर मामलों के सैंपलों की जांच

सैंपलों की जांच
  • दुष्कर्म पीडि़तों को कैसे मिलेगा त्वरित न्याय…?

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र में महिलाओं पर होने वाले अत्याचार के खिलाफ प्रदेश सरकार काफी सख्त है। लेकिन उसके बाद महिलाओं के साथ दुष्कर्म की घटनाएं कम नहीं हो रही हैं। उस पर विडंबना यह देखने को मिल रही है कि दुष्कर्म पीडि़तों को समय पर न्याय नहीं मिल रहा है। जबकि सरकार त्वरित न्याय दिलाने की बात कह रही है। न्याय में हो रही देरी की सबसे बड़ी वजह डीएनए लैब में सैंपलों की जांच का लंबित होना। इस समय प्रदेश में डीएनए के लगभग 3700 सैंपल जांच के इंतजार में अटके हुए हैं, उनमें लगभग दो हजार सैंपल नाबालिगों से दुष्कर्म (पाक्सो के अंतर्गत) के हैं।
गौरतलब है कि प्रदेश में महिलाओं की सुरक्षा को लेकर सरकार काफी संवेदनशील है। उसके बावजुद प्रदेश में दुष्कर्म की शिकार नाबालिगों को दोहरी पीड़ा झेलनी पड़ रही है। एक तो उनके साथ हुई घटना और दूसरा न्याय में देरी। न्याय में देरी की एक बड़ी वजह डीएनए जांच रिपोर्ट समय पर नहीं मिल पाना है। इस समय प्रदेश में डीएनए के लगभग 3700 सैंपल जांच के इंतजार में अटके हुए हैं, उनमें लगभग दो हजार सैंपल नाबालिगों से दुष्कर्म (पाक्सो के अंतर्गत) के हैं। नतीजतन, इनसे संबंधित मामले कोर्ट में ट्रायल में लगने के बाद डीएनए जांच रिपोर्ट का इंतजार करना पड़ रहा है। संबंधित कोर्ट जब किसी मामले से जुड़े डीएनए सैंपलों की रिपोर्ट उपलब्ध कराने के लिए पुलिस को निर्देशित करती है तो किसी भी हालत में डीएनए लैब से सैंपलों की जांच कर रिपोर्ट उपलब्ध करा दी जाती है। बाकी सैंपलों की जांच अटकी है।
लैब में चार साल से जांच अटकी
प्रदेश में डीएनए जांच करने वाली चार लैब हैं। लेकिन विडंबना यह है कि प्रदेश की चारों लैब में संसाधन कम होने से आवश्यकता के अनुसार जांच क्षमता नहीं है। कुछ तो 2020 के सैंपल भी बिना जांच रखे हुए हैं। बता दें कि प्रदेश में भोपाल, सागर, इंदौर और ग्वालियर में चार लैब हैं। इनमें ही डीएनए सैंपल की जांच की जाती है। सबसे अधिक सैंपलों की जांच भोपाल लैब में अटकी है। ऐसा इसलिए भी है, क्योंकि पाक्सो (लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम) के अंतर्गत सर्वाधिक डीएनए सैंपल भोपाल की लैब में ही आते हैं। हालांकि पिछले दो वर्ष में लंबित जांचों की संख्या आठ हजार से घटकर 3700 सैंपल पर आ गई हैं। वर्तमान लैबों की क्षमता बढ़ाने के साथ नई लैब भी बनाई जा रही हैं। नवंबर से जबलपुर में डीएनए लैब प्रारंभ हो जाएगी। फारेंसिक साइंस लैब भोपाल के डायरेक्टर शशिकांत शुक्ला का कहना है कि डीएनए सैंपलों में आधे से अधिक पाक्सो के हैं। ट्रायल शुरू होने पर कोर्ट निर्देश देता है तो उस सैपल की रिपोर्ट एक-दो दिन में उपलब्ध करा देते हैं। आगामी तीन माह में भोपाल में सैंपलों की लंबित जांच शून्य करने की कार्ययोजना बनाई है।
सजा के लिए फोरेंसिक जांच जरूरी
जानकारी के अनुसार एक जुलाई से देशभर में नए स्वरूप में प्रभावी हुए तीन कानूनों का उद्देश्य पीडि़त को त्वरित न्याय दिलाना है। नए कानूनों में सात वर्ष की सजा वाले सभी अपराधों में फोरेंसिक जांच टीम का मौके पर जाना अनिवार्य किया गया है, लेकिन प्रदेश में पहले से ही फोरेंसिक अधिकारियों की कमी है। यही कारण है कि संसाधन जुटाने के लिए सभी राज्यों को पांच वर्ष का समय दिया गया है। प्रदेश में लगभग 20 हजार सैंपलों की विसरा जांच अटकी है। जांच क्षमता बढ़ाने के लिए सरकार जबलपुर में डीएनए और फोरेंसिक और रीवा, रतलाम में फोरेंसिक जांच प्रारंभ करने जा रही है। डीएनए जांच की जरूरत इसलिए पड़ती है कि डीएनए व्यक्ति की कोशिकाओं में पाया जाने वाला एक उत्व है। इसमें एक तो संतान से जैविक संबंध पता लगाया जा सकता है, दूसरा दुष्कर्म के मामलों में संदिग्ध की पुख्ता पहचान के लिए डीएनए जांच कराई जाती है। हालांकि कई बार पुख्ता सुबूत होने या आरोपित द्वारा अपराध स्वीकार कर लेने के बाद डीएनए जांच की आवश्यकता भी नहीं रह जाती है। 

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