दावेदार चाहते हैं जल्द मिले सत्ता में भागीदारी

  • राजनैतिक नियुक्तियों का मामला
  • विनोद उपाध्याय
सत्ता में भागीदारी

प्रदेश में भाजपा की डॉ. मोहन यादव की सरकार को बने हुए नौ माह का समय हो गया है, लेकिन अब भी इक्का -दुक्का छोडक़र बाकी नेताओं व कार्यकर्ताओं को सत्ता में भागीदारी नहीं मिल सकी है। इस बीच जरुर कई बार निगम मंडलों में नियुक्तियां जल्द होने की चर्चाएं जोर पकडती रहती हैं। कुछ दिन चलने वाली चर्चाओं के बाद मामला शांत हो जाता है, लेकिन हाल ही में जिस तरह से पड़ौसी राज्य उप्र की भाजपा सरकार में राजनैतिक नियुक्तियां कर कार्यकर्ताओं व नेताओं को सत्ता में भागीदारी दी गई है, उसका सहारा लेकर मप्र में भी दबाव बनाया जाने लगा है। हालांकि पार्टी सूत्रों की माने तो प्रदेश में संगठन के सदस्यता अभियान के पहले यह नियुक्तियंा नहीं करने का पहले ही तय किया जा चुका है। दरअसल प्रदेश में सरकार बनने के बाद से ही विभिन्न निगम- मंडल, प्राधिकरण, आयोग और समितियों सहित अन्य उपक्रमों में अध्यक्ष-उपाध्यक्ष व सदस्यों की नियुक्ति लंबित हैं। पार्टी सूत्रों  की माने तो इन नियुक्तियों को लेकर संगठन स्तर पर कार्यकर्ताओं व नेताओं की सूचियां भी तैयार कर ली गई हैं। इस खबर के बाद से ही दावेदार लगातार सक्रिय बने हुए हैं। इसकी वजह से ही दावेदार भोपाल तो ठीक दिल्ली तक की परिक्रमा लगाने में पीछे नही रह रहे हैं।  
फरवरी से खाली हैं निगम
फरवरी में मोहन सरकार ने निगम- मंडल और प्राधिकरणों में पदासीन 46 मंत्रियों का दर्जा पाए नेताओं की नियुक्तियां निरस्त कर दी थीं। इसके बाद से ही अटकलें लगाई जा रही थीं कि जो बोर्ड रह गए हैं, उनकी नियुक्तियां भी निरस्त होंगीं, पर संगठन स्तर पर विचार के बाद सरकार ने निर्णय लिया है कि विभिन्न समाजों से जुड़े बोर्डों की नियुक्तियां निरस्त नहीं की जाएंगी।चुनाव के बाद ऐसा माना जा रहा था कि सभी लोकसभा की 29 सीटें जीतने का रिकार्ड बनने के बाद सियासी नियुक्तियों के जरिए भाजपा नेताओं को उपकृत किए जाने का सिलसिला शुरू होगा। लेकिन साढ़े तीन महीने बीत गए दावेदार नेताओं का इंतजार लंबा हो गया।
यहां होंगी नियुक्तियां
निगम-मंडल, आयोग, प्राधिकरण, ऐल्डरमैन, शासकीय अधिवक्ता, कॉलेजों की जनभागीदारी समितियां एवं अंत्योदय समितियों में नियुक्तियां होंगी। सहकारिता में हजारों कार्यकर्ता एडजस्ट होंगे। इनमें प्राथमिक समिति, जिला सह. बैंक, बीज निगम, लघु वनोपज, आवास संघ, विपणन संघ और उपभोक्ता संघ जैसे उपक्रम है। हाल ही कई निगम मंडलों का प्रभार विभागीय मंत्रियों को दिया गया है। इससे राजनीति सरगर्मी तेज हो गई हैं और नेताओं की उम्मीदें बढ़ गई हैं।
टिकट से वंचित रहे नेताओं का मिल सकता है अवसर
विधानसभा और लोकसभा चुनाव में कई नेताओं की टिकट काटी गई थी। इनमें से कुछ नेताओं के पुर्नवास का पार्टी ने आश्वासन दिया था। इसकी वजह से ऐसे नेता भी सक्रिय बने हुए हैं। भाजपा इस बात पर भी विचार कर रही है कि जिन नेताओं को मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया गया है, उन्हें भी निगम-मंडल में समायोजित किया जा सके, जिससे उनकी नाराजगी दूर हो जाए।
पूर्व संभागीय संगठन मंत्रियों को मिलेगा मौका
शिव सरकार में भाजपा के पूर्व संभागीय संगठन मंत्रियों को निगम-मंडल में पदस्थ कर मंत्री दर्जा दिया गया था। लेकिन पिछले वर्ष हुए विधानसभा चुनाव के बाद इन नेताओं को हटा दिया गया था। पार्टी सूत्रों ने बताया कि उन सभी पूर्व संभागीय संगठन मंत्रियों को एकबार और अवसर देकर निगम में तैनात किया जाएगा।
पूर्व कांग्रेस नेताओं को भी इंतजार
दल बदलकर भाजपा में शामिल हुए नेताओं में पूर्व मंत्री सुरेश पचौरी, पूर्व सांसद छतरसिंह दरबार, दीपक सक्सेना ,रामलखन सिंह, गजेंद्र सिंह राजूखेड़ी। सिंधिया समर्थकों के अलावा अर्जुन पलिया, दिनेश अहिरवार, शशांक भार्गव, नीलेश अवस्थी और शिवदयाल बागरी जैसे नेता जोर लगा रहे हैं। इन सभी को रिटर्न गिफ्ट का इंतजार है। इसी वजह से यह सभी नेता सदस्यता अभियान में सक्रिय हैं। उधर, भाजपा के जिन नेताओं की दावेदारी है उनमें, माखन सिंह चौहान, केपी यादव, शैलेंद्र बरूआ, आशुतोष तिवारी, संजय नगायच व जितेंद्र लिटोरिया। डॉ हितेष वाजपेयी, आशीष अग्रवाल, नरेंद्र बिरथरे, धीरज पटैरिया, गौरव रणदिवे, शैलेंद्र शर्मा, विनोद गोटिया, कृष्णमोहन सोनी व यशपाल सिंह सिसोदिया जैसे नेता शामिल हैं।

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