- सरकार और कर्मचारी संघों के बीच बातचीत की परंपरा बंद
- विनोद उपाध्याय
अधिकारी-कर्मचारी किसी भी सरकार की रीढ़ हुआ करते हैं। इसलिए सरकारें उनको सबसे अधिक महत्व देती है। लेकिन प्रदेश में पिछले एक दशक से सरकार और कर्मचारी संघों के बीच संवाद नहीं होने के कारण कर्मचारियों की समस्या दूर नहीं हो पा रही है। जानकारों का कहना है कि सरकार और कर्मचारी संघों के बीच संवाद की परंपरा बंद होने के कारण अफसरों की मनमानी बढ़ गई है।
आलम यह है कि अफसर सरकार के दिशा-निर्देशों का भी पालन नहीं कर रहे हैं। इस कारण सरकार के प्रति कर्मचारियों का रोष दिन पर दिन बढ़ रहा है। जानकारी के अनुसार वर्ष 2015 तक कर्मचारी संघों को चर्चा के लिए बुलाया गया। इसके बाद ऐसा कभी आमंत्रण नहीं गया कि सीएम कर्मचारी संघों से संवाद करेंगे। यह जरूर है कि त्योहारों पर कर्मचारियों को आमंत्रण दिए गए, लेकिन ऐसे समय में कर्मचारी अपनी मांगों से संबंधित कोई भी बात नहीं रख पाए। अब कर्मचारियों ने मांग उठाई है कि तत्काल सरकार कर्मचारियों से चर्चा करना शुरू करे। ताकि वह अपनी समस्या रख सकें।
आज मप्र में यह स्थिति है कि लगभग हर विभाग का कर्मचारी सरकार से असंतुष्ट है। इसकी वजह यह है कि कर्मचारियों की बात सरकार तक नहीं पहुंच पा रही है। इस कारण कर्मचारियों की मांगें लंबें समय से अधर में हैं। कर्मचारियों की जो मांगें लंबित है उनमें बंद पड़ा प्रमोशन का तत्काल चैनल खोला जाए, लिपिक कर्मचारियों की वेतन विसंगतियां, स्टेनोग्राफरों के विसंगतिपूर्ण ग्रेड-पे में सुधार, विभागों में छूटे संवर्गों को चतुर्थ समयमान, तत्काल उच्च पदनाम की प्रक्रिया पूर्ण हो, पेंशनरों को समय पर सभी सुविधाएं, छत्तीसगढ़ से धारा 49 की समाप्ति शीघ्र हो, दैवेभो कर्मियों का एकमुश्त नियमितीकरण,स्थाई सेवकों को नियमित सभी सुविधाएं, बाल विकास की पर्यवेक्षकों को ग्रेड-पे और नियम से परामर्शदात्री समितियों का आयोजन आदि।
नियमित वार्ता के लिए दबाव
कर्मचारी दबाव बना रहे कि अब नियमित वार्ता जरूरी है, ताकि सरकार को प्रदेश की जमीनी हकीकत पता चल सके और विकास को पंख लगा सकें। सेवकों के अनुसार जब से कर्मचारी संगठनों का गठन हुआ है। तभी से मुख्यमंत्री और कर्मचारियों के बीच संवाद की परंपरा चलती रही है। पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान के दूसरे कार्यकाल तक बाकायदा यह दौर चलता रहा। इसके बाद चर्चा बंद कर दी गई। जबकि वर्ष में एक बार मुख्यमंत्री स्वयं सभी कर्मचारी संगठनों को चर्चा के लिए बुलाया करते थे। इस दौरान कर्मचारी खुल कर अपनी बात रखा करते थे।तृतीय वर्ग कर्मचारी संघ के सचिव उमाशंकर तिवारी का कहना है कि कर्मचारियों को एकजुट रहना होगा। तभी सरकार पर दबाव बन सकता है। जरूरी है कि साल में कम से कम एक बार तो मुख्यमंत्री से वार्ता हो। ताकि कर्मचारी खुलकर अपनी समस्याओं को रख सकें।
तत्काल शुरू होना चाहिए संवाद
जानकारों का कहना है कि सरकार और कर्मचारी संघों के बीच संवाद होते रहते के कारण अधिकारी भी सतर्क और संवेदनशील बने रहते थे। अब तो विभागों में अफसर कर्मचारी संगठनों की बात तक नहीं सुन रहे हैं। मप्र राज्य कर्मचारी संघ के पूर्व अध्यक्ष विश्वजीत सिंह सिसौदिया का कहना है कि मुख्यमंत्री पूर्व की तरह कर्मचारियों से नियतित चर्चा कर सकते हैं। यह तब संभव है, जब कर्मचारी संघ आपस में कलह खत्म कर अपनी एकता दिखाएं। अगर ऐसा नहीं हुआ तो सरकार और कर्मचारियों की इसी तरह दूरियां बनी रहेंगी। गौरतलब है कि करीब एक दशक से सरकार और कर्मचारी संघों के बीच संवाद की परंपरा बंद पड़ी है। इसके पीछे सरकारी सेवकों ने संघों में पनपे आपसी विवादों को भी एक वजह बताया गया है। यह पीड़ा भी झलकी है कि प्रक्रिया बंद होने के कारण जहां मांगों का दायरा बढ़ रहा है। वहीं सामंजस्य की कमी सामने आ रही है। स्टेनोग्राफर संघ के वरिष्ठ उपाध्यक्ष आलोक तिवारी का कहना है कि मुख्यमंत्री से संवाद जरूरी हो गया है, क्योंकि लंबे समय से मांगों के लिए संघर्ष कर रहे कर्मचारियों की समस्याओं का समाधान जरूरी है। सभी संघ अपनी ताकत दिखाकर इसके लिए आगे आएं।