स्वतंत्रता की चेतना के साथ सशक्तीकरण की भावना भी जरूरी

  • स्वतंत्रता दिवस पर विशेष
  • प्रवीण कक्कड़
स्वतंत्रता दिवस

स्वतंत्रता के इतिहास से तो हम सभी परिचित हैं, हम जानतें हैं कि किन बलिदानों के फल स्वरूप हमें स्वाधीनता मिली। अब हमें वर्तमान पीढ़ी को यह सीखाने की जरूरत है कि स्वतंत्रता की चेतना के साथ सशक्तीकरण की भावना भी जरूरी है। तभी हम देश के विकास को सही दिशा में आगे बढ़ा सकेंगे। तभी देश में उत्साह का संचार संभव हो सकेगा। हमारी अर्थव्यवस्था सुदढ़ होगी और हम हर मोर्चे पर विकास के शिखर तक पहुंच पाएंगे। हमें वर्तमान पीढ़ी में सशक्तीकरण की भावना का विकास करने के लिए इसे चेतना के स्तर पर समझना और समझाना होगा। सशक्तीकरण के लिए जरूरी है कि अपनी परंपराओं, अपनी संस्कृति, अपनी भाषा और अपने वांग्मय को लेकर गौरव का अनुभव करें। अपने समृद्ध इतिहास को तलाशने का प्रयास करें और विस्मृत की गई ऐतिहासिक विभूतियों को अपना आदर्श बनाने की कोशिश करें। अगर चेतना के स्तर पर जाकर देखें तो भारतवर्ष कभी परतंत्र रहा ही नहीं। आक्रांताओं ने भारतवर्ष पर आक्रमण करके इस पर कुछ वर्ष तक शासन अवश्य किया, किंतु भारत की सशक्तीकरण की भावना को नष्ट करने में सफल नहीं हो सके। यही कारण है कि भारत अपने स्वतंत्रता के मूल्यों को तमाम विरोधाभासों के बावजूद संजोने में कामयाब रहा, बल्कि भारत का एक बड़ा भू-भाग उस सांस्कृतिक एकता को भी कायम रखने में कामयाब रहा जो भारत की मूल अवधारणा से विकसित हुई थी।
स्वतंत्रता दिवस पर हमें बच्चों को यह बताने की आवश्यकता है कि हमारी वैदिक परंपरा से लेकर वर्तमान परंपरा तक स्वतंत्रता का हर जगह सम्मान किया गया। केवल अपनी ही नहीं बल्कि दूसरे की स्वतंत्रता को भी हमने उतना ही महत्व दिया। यही कारण है कि भारत में सभी समाज और सभी वर्ग फले-फूले। भारत एकमात्र ऐसा देश है जहां हर वर्ग के राजा-महाराजा और सामंत हुए। 3000 वर्ष के इतिहास में भारत ने किसी देश पर आक्रमण नहीं किया। हूण, कुषाण, तैमूर, तातार, मुगल, अंग्रेज जैसे आक्रांता इस देश पर समय-समय पर आक्रमण अवश्य करते रहे लेकिन भारत अपनी आंतरिक स्वतंत्र चेतना के कारण इनसे अप्रभावित रहा, बल्कि भारत भूमि के जिन निवासियों ने आक्रांताओं की धार्मिक परंपराओं को अपनाया उन्होंने भी भारत की संस्कृति को नहीं त्यागा। अतिथि उनके लिए भी देवता ही रहा। वसुधैव कुटुंबकम की अवधारणा को उन्होंने भी अपनाया। और यही उनकी सशक्तीकरण की भावना थी।
आज स्वतंत्रता की वर्षगांठ के अवसर पर हमें एक नागरिक के रूप में अपने दायित्वों का बोध होना बहुत आवश्यक है। हमें राष्ट्र के प्रति अपनी जिम्मेदारी समझने की आवश्यकता है। राष्ट्र के प्रति जिम्मेदारी परिलक्षित होती है कानून का पालन करने से, ईमानदारी बरतने से और मेहनत और लगन से काम करने से। विशेष बात यह है कि यह सारे गुण हमारे भारतीय वांग्मय में और हमारे धर्म ग्रंथों में भी लिखे हुए हैं, इसलिए जब हम कर्मण्येवाधिकारस्ते के सिद्धांत का पालन करते हैं तब राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्यों का बोध स्वत: ही हो जाता है। यदि हम वसुधैव कुटुंबकम की अवधारणा को अपनाते हैं तो राष्ट्र के हर निवासी के प्रति सद्भाव और सौहार्द स्वत: ही विकसित हो जाता है। यह सब हमारे धर्म, हमारी संस्कृति और हमारे साहित्य का हिस्सा है और यही संविधान में एक व्यवस्था के रूप में हमें प्रदान किया गया है। स्वतंत्रता दिवस पर हमें सशक्तीकरण की भावना को सच्चे अर्थों में आत्मसात करना है।
15 अगस्त 1947 एक स्वतंत्र और स्वतंत्र भारत के जन्म का प्रतीक है, एक ऐसा दिन जो हर भारतीय के दिल को गर्व और देशभक्ति से भर देता है। सशक्तीकरण की भावना से युक्त इस उत्साह का संचार आज संभव हो पाया है, क्योंकि हमारा देश सभी मोर्चों पर अच्छी प्रगति कर रहा है। मुश्किल दौर में भारत की अर्थव्यवस्था न केवल समर्थ सिद्ध हुई है बल्कि दूसरों के लिए आशा का स्रोत भी बनी है। अंतर-राष्ट्रीय पटल पर हो रही घटनाओं से अनिश्चितता का वातावरण और गंभीर हो गया है। फिर भी, सरकार कठिन परिस्थितियों का अच्छी तरह सामना करने में सक्षम रही है। देश ने चुनौतियों को अवसरों में बदला है और प्रभावशाली जीडीपी ग्रोथ भी दर्ज की है। हमारे अन्नदाता किसानों ने हमारी आर्थिक वृद्धि में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। ज्ञान-विज्ञान में उत्कृष्टता प्राप्त करना ही हमारा लक्ष्य नहीं है बल्कि हमारे लिए वे मानवता के विकास के साधन हैं। एक क्षेत्र जिस पर पूरे विश्व के वैज्ञानिकों और नीति निर्माताओं को और अधिक तत्परता से ध्यान देना चाहिए वह है – जलवायु परिवर्तन। देश के कुछ हिस्सों में असाधारण बाढ़ का सामना करना पड़ा है। इन सब का एक प्रमुख कारण ग्लोबल वार्मिंग  को भी माना जाता है। अत: पर्यावरण के हित में स्थानीय, राष्ट्रीय तथा वैश्विक स्तर पर प्रयास करना अनिवार्य है। हमारा संविधान हमारा मार्गदर्शक दस्तावेज है। संविधान की प्रस्तावना में हमारे स्वाधीनता संग्राम के आदर्श समाहित हैं। आइए, हम अपने राष्ट्र निर्माताओं के सपनों को साकार करने के लिए सद्भाव और भाई-चारे की भावना के साथ आगे बढ़ें। आज इसी सशक्तीकरण की भावना को जीवित करने और अक्षुण्ण बनाए रखने की आवश्यकता है। तभी स्वतंत्रता सार्थक और मूल्यवान बन सकेगी। हम सब अपनी स्वतंत्रता को कायम रख सकें। भारतवर्ष को विश्व में अग्रणी बना सकें। ज्ञान विज्ञान और आध्यात्मिक चेतना में विश्व में सर्वोपरि बन सकें… इस स्वतंत्रता दिवस पर यही कामना है। आप सभी को स्वतंत्रता दिवस की 77वीं वर्षगांठ की हार्दिक शुभकामनाएं।
(लेखक पूर्व पुलिस अधिकारी हैं)

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