- राज्य सरकार की वन्यजीव संरक्षण नीतियों पर उठ रहे हैं सवाल
- विनोद उपाध्याय
टाइगर स्टेट मप्र में बाघ संरक्षण को लेकर गंभीर सवाल उठ रहे हैं। बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में पिछले तीन सालों में 34 बाघों की मौत हो चुकी है। जांच समिति की रिपोर्ट में पाया गया है कि वन विभाग की लापरवाही के कारण इन मौतों के पीछे शिकारियों का हाथ हो सकता है। कई मामलों में पोस्टमार्टम नहीं हुआ है और न ही शिकारियों को पकडऩे के लिए कोई ठोस कार्रवाई की गई है। इस घटना ने राज्य सरकार की वन्यजीव संरक्षण नीतियों पर सवाल खड़े कर दिए हैं। दरअसल, बाघों की मौत के मामले में बड़ी अंतरराष्ट्रीय साजिश का शक है। टाइगर रिजर्व में बाघों की मौत की जांच रिपोर्ट पांच महीने बाद भी सामने नहीं आई है। तीन साल में बांधवगढ़ में 34 बाघों की मौत हो चुकी है। जिसमें 10 बाघों का पोस्टमार्टम ही नहीं हुआ। मौत के बाद साक्ष्य सुरक्षित नहीं रखे गए। कई मामलों में रिपोर्ट तक दर्ज नहीं की गई। पोस्टमार्टम की वीडियोग्राफी नहीं कराई गई। शिकार वाले इलाकों में सुरक्षा के इंतजाम नहीं हैं। बता दें कि 6 मार्च को प्रभारी प्रधान मुख्य वन संरक्षक ने एक जांच कमेटी गठित की थी, जिसमें उन्होंने साफ लिखा था कि विभाग ने माना है कि बांधवगढ़ में सबसे ज्यादा बाघों की मौत और शिकार के मामलों में लापरवाही हुई है। यहां तक कि कुछ बाघों के शरीर के अंग भी गायब पाए गए हैं। हैरानी की बात यह है कि बाघों के शिकार के आरोपियों को पकडऩे की कोई कोशिश नहीं की गई। यह सब विभाग की ओर से जारी पत्र में लिखा है। तीन सदस्यीय कमेटी की रिपोर्ट अब तक सामने नहीं आई है। इधर मध्य प्रदेश में पिछले पांच साल में 168 से अधिक बाघों की मौत हो चुकी है। वहीं देशभर में 607 मौतें हुई है। इस वर्ष सात माह में देशभर में 86 बाघों की मौत हुई। वहीं मध्य प्रदेश में 30 बाघों की मौत हुई है। इनमें अधिकांश प्रकरण बाघ के शिकार के है। पांच साल में मप्र में 2,28,812 वन अपराध के प्रकरण दर्ज किए गए हैं। बांधवगढ़ में घटनाओं की जांच के दौरान घटना स्थलों की जांच में श्वान दल और मेटल डिटेक्टर प्रयोग में नहीं लाए गए । साक्ष्य भी सुरक्षित नहीं रखे गए। जिसके चलते शिकार की घोषित घटनाओं में भी न्यायालय में प्रकरण कमजोर होता रहा। बाघ की मौत के अधिकांश प्रकरणों में रिपोर्ट ही दर्ज नहीं की गई। पोस्टमार्टम की वीडियोग्राफी नहीं की गई है और पोस्टमार्टम के दौरान डाक्टर मौजूद रहे, जिसके चलते मौत या हत्या की स्पष्टता नहीं हो सकी। शिकार वाले क्षेत्रों में सुरक्षा इंतजाम ही नहीं थे। प्रभारी वाइल्ड लाइफ वार्डन मप्र वन शुभरंजन सेन का कहना है कि बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में बाघों की मौत के मामले में कार्रवाई चल रही है। वहां के अधिकारियों को कारण बताओ नोटिस भेजा है। बाघों की मौत की रिपोर्ट भी तैयार की है। नोटिस का जवाब आने और सामने आए तथ्यों के आधार पर आगामी कार्रवाई करेंगे।
जांच में कई खामियां सामने आई
बाघों की मौत को लेकर एसआईटी की रिपोर्ट में कई तरह की खामियां सामने आई है। एसआइटी की रिपोर्ट में बताया गया है कि एक अप्रैल 2023 को एक कुएं में बाघ की हड्डियां मिलीं थी, इसकी जांच में सारे तथ्यों को नजरंदाज कर दिया गया। जैसे घटनास्थल पर डाग स्क्वाड को नहीं बुलाया गया था। कुएं से कोई मूंछें और बाल के नमूने बरामद नहीं हुए। स्पेशल टास्क फोर्स की रिपोर्ट के अनुसार 15 सितंबर, 2023 को, एक वयस्क बाघ का शव रेत में दबा हुआ पाया गया जिसके नौ नाखून, सिर, एटलस कशेरुक, सभी चार कुत्ते, मूंछें, खोपड़ी, त्वचा और सिर के कुछ अंग गायब थे। रिपोर्ट में कहा गया है कि 17 मई, 2023 को, एक 8 या 9 साल का बाध मृत पाया गया, उसके नाखून गायब थे। इस बाघ की मौत अवैध शिकार के कारण हुई और दो लोगों को गिरफ्तार किया गया। बाद में प्रबंधन ने कहा कि एक बाघ की मौत होने की जानकारी सामने आई है। इसे बाघों का संघर्ष बताया गया। नहीं की गई, पोस्टमार्टम और प्रयोगशाला के निष्कर्षों से अवैध शिकार का पता चला है। इस बाघ की मौत के मामले में कहा गया था कि बाघ की मौत नाले के नीचे हुई है। संभवत: वर्षा के दौरान पानी के बहाव के साथ रेत बहने के कारण शव उसके नीचे दब गया होगा।
मप्र में सबसे ज्यादा मौतें
चौंकाने वाली बात यह है कि वर्ष 2024 में देश में 86 बाघों की मौत हुई, जबकि मप्र में बाघों की मौत का आंकड़ा 30 है। बाघों के शिकार में अंतर्राष्ट्रीय फंडिंग का संदेह जताया जा रहा है। टाइगर रिजर्व में बाघों की मौत सामान्य न होकर शिकार किए जाने की आशंका जताई जा रही है। वर्ष 2021 में 12 बाघों की मौत हुई, तो 2022 में नौ और 2023 में 13 बाघों की मौत हुई। सबसे अधिक मौतें मनपुर बफर जोन में हुईं। आरटीआई कार्यकर्ता का कहना है कि बांधवगढ़ में शिकारियों का बोलबाला है। बाघों की मौत और हत्या के मामले चिंताजनक हैं। कई बाघों की मौत के बाद पोस्टमार्टम न कराना संदेश को आगे बढ़ा रहा है। वन विभाग को रिपोर्ट सार्वजनिक करनी चाहिए। उन्होंने बाघों के अंगों की तस्करी के लिए शिकार किए जाने का संदेह जताया और इसमें वन विभाग की संलिप्तता बताई। इस मामले में वन मंत्री रामनिवास रावत का बयान भी सामने आया है। उन्होंने कहा कि बांधवगढ़ में बाघों की मौत और एमपी में बाघों की मौत में दिखाई गई लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी। मैं जांच रिपोर्ट का पता लगाऊंगा और बाघों की सुरक्षा में कोई चूक नहीं होने दूंगा।
10 का पोस्टमार्टम क्यों नहीं कराया
बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में बाघों के शिकार की अंतरराष्ट्रीय साजिश का अंदेशा इसलिए जताया जा रहा है कि 10 बाघों की मौत के बाद उनके शवों का पोस्टमार्टम नहीं कराया गया, जबकि, नियमानुसार पोस्टमार्टम अनिवार्य होता है। वन मुख्यालय ने रिजर्व में तैनात वनाधिकारियों को नोटिस थमाया है। विभाग ने जानना चाहा है कि इसके लिए कौन-कौन जिम्मेदार है। बताया जाता है कि वन विभाग ने बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में बाघों की मौत पर रिपोर्ट तैयार कर ली है। इसमें टाइगर रिजर्व के डाक्टर को दोषी बताया गया है, लेकिन वहां अलग-अलग समय में पदस्थ रहे फील्ड डायरेक्टरों को लेकर कोई बात नहीं की गई और न ही उन्हें दोषी माना गया है। इनमें से कई तो सेवानिवृत्त हो चुके हैं। बांधवगढ़ में घटनाओं की जांच के दौरान घटना स्थलों की जांच में श्वान दल और मेटल डिटेक्टर प्रयोग में नहीं लाए गए। साक्ष्य भी सुरक्षित नहीं रखे गए, जिसके चलते शिकार की घोषित घटनाओं में भी न्यायालय में प्रकरण कमजोर होता रहा। बाघ की मौत के अधिकांश प्रकरणों में रिपोर्ट ही दर्ज नहीं की गई। पोस्टमार्टम की वीडियोग्राफी नहीं की गई है और न ही पोस्टमार्टम के दौरान डाक्टर मौजूद रहे, जिसके चलते मौत या हत्या की स्पष्टता नहीं हो सकी। शिकार वाले क्षेत्रों में सुरक्षा इंतजाम ही नहीं थे।