अधूरी सडक़ें बनाकर भाग गई एक दर्जन कंपनियां

अधूरी सडक़ें
  • समय पर नहीं बन पा रहीं प्रदेश में सडक़ें…

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश में सडक़ों का निर्माण करने वाली तो वैसे साढ़े तीन सौ कंपनियां हैं, लेकिन कई कंपनियां ऐसी हैं, जिन्हें काम मिल जाता है, लेकिन वे बीच में ही काम बंद कर भाग जाती हैं। इसकी वजह से न केवल सडक़ों के निर्माण में देरी होती है, बल्कि उनकी लागत भी बढ़ जाती है। इसके अलावा लोगों को होने वाली परेशानी अलग है। दरअसल यह वे कंपनियां होती हैं , जो काम तो किसी तरह से हासिल कर लेंती हैं, लेकिन संसाधन जुटाने में असफल रहती हैं, या फिर उन्हें लगता है कि अगर संबधित सडक़ का काम किया तो उन्हें फायदा कम हो सकता है। अहम बात यह है कि ऐसी कंपनियों के खिलाफ कोई सख्त कार्रवाई न होने से कंपनियों की मनमानी लगातार जारी रहती है। ऐसी ही एक दर्जन कंपनियां सडक़ का निर्माण कार्य शुरु कर भाग खड़ी हुई हैं। अब इन कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई करते हुए उनसे हुए सडक़ निर्माण के पैकेज का अनुबंध तो निरस्त कर ही दिया है साथ ही उन्हें दो साल के लिए सस्पेंड कर दिया है। इनमें शामिल कंपनियों का अनुबंध निरस्त होने के अलग- अलग कारण हैं। इसके पहले मध्यप्रदेश ग्रामीण सडक़ विकास प्राधिकरण ने संबंधित जोनल अफसरों से भी रिपोर्ट ली थी।
रोज आ रही हैं एक हजार शिकायतें
अगर प्रदेश की सडक़ों की बात की जाए तो इन दिनों उनकी हालत बेहद खराब है। हालत यह है कि खराब सडक़ों की शिकायत करने के लिए सरकार द्वारा तैयार कराए गए लोकपथ एप पर हर दिन प्रदेश भर से खराब सडक़ों की करीब एक हजार शिकायतें आ रही हैं। यह हाल तब है जबकि इस एप को दो जुलाई को ही लांच किया गया है। इसमें गड्ढों की शिकायत सात दिन में हल करने का वादा किया गया है।
नई सडक़ों की खुली पोल
बारिश के शुरु होने के एक पखवाड़े के अंदर प्रदेश की सडक़ें बुरी तरह से खराब हो चुकी हैं। अहम बात यहहै कि इनमें वे सडक़ें भी शामिल हैं, जिनका निर्माण बारिश शुरु होने के ठीक पहले किया गया था। लगभग यही हाल भोपाल का है। बारिश शुरु होने के ठीक पहले कई सडक़ों का नए सिरे से डामरीकरण कर दिया गया था। अब वे सडक़ें बेहद खराब हो चुकी हैं। इसके जिम्मेदारों पर अब तक कोई कार्रवाही होती नहीं दिख रहा है। प्राय: सडक़ों के डामरीकरण का काम बारिश समाप्त होते किया जाता है।
बढ़ जाती है  लागत
सडक़ों की दुर्दशा और गड़बडिय़ों के पीछे अहम कारण बजट भुगतान और निर्माण में देरी है। दरअसल, सडक़ निर्माण में भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे हैं। सडक़ों की खराब गुणवत्ता के पीछे भी इसे वजह माना जाता है। सडक़ मंजूर होने से लेकर निर्माण तक में बरसों बीत जाते हैं। कई जगह मंजूरी और टेंडर के बावजूद बजट आवंटन या भुगतान में समय लगता है। इससे निर्माण पिछड़ता जाता है। कुछ साल बाद लागत बढ़ जाती है।

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