आयोगों को ही… न्याय की दरकार

  • न्याय की आस में आने वाले पीडि़तों को सिर्फ मिल रही  तारीख पर तारीख
  • विनोद उपाध्याय
आयोगों

प्रदेश में जरूरतमंदों और पीड़ितों को न्याय दिलाने के लिए गठित आयोगों को इस समय खुद न्याय की दरकरार है। इसकी वजह यह है कि कई आयोगों के पास न तो चेयरमैन है और न ही सदस्य हैं। इस कारण आयोगों में हजारों शिकायतों का अंबार लगा हुआ है। न्याय के लिए पीड़ित आयोगों के चक्कर काट रहे हैं। न्याय की आस में आने वाले पीड़ितों को सिर्फ तारीख पर तारीख मिल रही हैं। आयोग लोगों को इंसाफ नहीं दे पा रहे हैं। आम लोगों की समस्याओं पर सुनवाई करने वाले आयोगों में अध्यक्ष और सदस्य नहीं हैं। ये कर्मचारियों के भरोसे चल रहे हैं। ये मामले दर्ज करने तक सीमित हो गए है। इसका नतीजा ये है कि यहां पहुंचने वालों की संख्या कम हो गई। मप्र में आयोगों का गठन इसलिए किया गया है कि उसके माध्यम से लोगों की समस्याओं का समाधान हो सके, उन्हें न्याय मिल सके। लेकिन अध्यक्ष और सदस्य विहीन आयोग वीरान पड़े हुए हैं। राज्य महिला आयोग, अनुसूचित जाति आयोग, जनजाति आयोग, माइनॉरिटी कमीशन सहित सभी प्रमुख आयोग में अध्यक्ष नहीं है। फरवरी 2024 में सभी को भंग कर दिया गया। इससे पहले भी इनका कामकाज प्रभावित हुई। जिससे शिकायतें तो पहुंची, लेकिन निराकरण नहीं हुआ।
वर्ष 2018 में विधानसभा चुनाव के चलते आयोग अध्यक्ष विहीन होना शुरू हो गए थे। सरकार का गठन होते-होते अधिकतर आयोग कागजी हो गए। कुछ का कार्यकाल पूरा हो गया तो कुछ ने पद छोड़ दिया। राज्य महिला आयोग का कार्यकाल जनवरी 2019 में पूरा हो गया था। अब यहां शिकायतों को फाइल में रख लिया जाता है।
श्यामला हिल्स स्थित आयोग में लंबे समय से बेंच नहीं लगी। आयोग में एक अध्यक्ष और पांच सदस्य होते हैं। लेकिन वर्तमान में किसी की नियुक्ति नहीं हैं। यहां महिलाएं फरियाद लेकर आती हैं, लेकिन उस पर सुनवाई नहीं हो पा रही। प्रकरण लंबित हो जाते हैं। यह भी इन्हें विभागों तक फारवर्ड करने तक सीमित हो गया। मप्र में सबसे बुरी स्थिति महिला आयोग की है।  मप्र में महिला अपराध के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। पीड़ित महिलाओं को न्याय नहीं मिल पा रहा है। इसका कारण है कि राज्य महिला आयोग की बेंच सात साल से लगी ही नहीं है। दरअसल, आयोग में ना तो अध्यक्ष हैं और ना ही सदस्य। इस कारण प्रदेशभर की पीड़ित महिलाएं न्याय के लिए भटक रही हैं। राज्य महिला आयोग में करीब 24 हजार मामले लंबित हैं, जबकि नियमानुसार किसी भी शिकायत पर 15 दिन के अंदर कार्रवाई करनी होती है। आयोग में 2018 के बाद से बेंच ही नहीं लगी है, इस कारण पीड़ित महिलाओं के मामले बढ़ रहे हैं। आयोग में करीब 3500 महिलाएं हर साल महिला आयोग में शिकायत दर्ज करवाने पहुंचती हैं। बता दें कि 2018 में आयोग की अध्यक्ष लता वानखेड़े का कार्यकाल खत्म होने के बाद 2019 में प्रदेश में कांग्रेस की सरकार ने 18 मार्च 2020 को शोभा ओझा को आयोग का अध्यक्ष बनाया और सदस्यों की नियुक्ति भी की थी। किंतु उसके बाद फिर से भाजपा की सरकार आई और नियुक्तियों का मामला कोर्ट पहुंच गया। इस दौरान एक भी दिन बेंच नहीं लगी। इसके बाद से 2022 में भाजपा की सरकार बनने के बाद महिला आयोग में अध्यक्ष व सदस्यों की नियुक्ति नहीं हो पाई है। इस कारण हिंसा पीड़ित महिलाओं को न्याय नहीं मिल पा रहा है। महिला आयोग में प्रदेशभर से प्रतिदिन नौ से 10 महिलाएं शिकायत दर्ज करवा रही हैं, लेकिन सुनवाई नहीं होने के कारण महिलाएं निराश होकर लौट रही हैं। अब तो महिलाओं को वहां जाने पर महिला थाना या जिला विधिक सेवा प्राधिकरण में काउंसिलिंग के लिए भेजा जा रहा है।
आयोगों को सिविल न्यायालय की हैं शक्तियां
प्रशासन की अन्य एजेंसियों से जब शिकायतकर्ता को निष्पक्ष कार्यवाही नजर नहीं आती। तब आयोग में शिकायत की जा सकती है। आयोग की ओर से संबंधित विभाग से जांच प्रतिवेदन मांगा जाता है। विभाग के द्वारा आयोग को प्रेषित जांच से जब शिकायतकर्ता संतुष्ट नहीं होता तब आयोग की पीठ में मामले की सुनवाई होती है। आयोग को सिविल न्यायालय की शक्तियां प्राप्त हैं। सम्बंधित अधिकारियों की पेशी लगाकर सुनवाई करता है। मामले का निराकरण कर शासन को अनुशंसा भेजी जाती है, लेकिन आयोगों में अध्यक्ष/सदस्यों के नहीं होने से प्रकरणों में इस तरह की कार्यवाही नहीं की जा सकती।
इनकी भी स्थिति खराब
माइनॉरिटी कमीशन में एक अध्यक्ष और चार सदस्य होने चाहिए। लंबे समय से यहां कोई सुनवाई नहीं हुई। कर्मचारियों के भरोसे काम चल रहा है। आनी वाली शिकायतों पर सुनवाई की बजाय विभागों को भेजी जा रही हैं। यहां पहले सौ से ज्यादा मामले आते थे। अब आधे भी प्रकरण नहीं बचे। अभी केवल बाल आयोग में अध्यक्ष और सदस्य हैं। बाल अधिकार संरक्षण आयोग मामलों में सुनवाई कर रहा है। हाल में कुछ मामलों में कार्रवाई भी हुई है। राज्य अनुसूचित जाति आयोग, राज्य अनुसूचित जनजाति आयोग और राज्य महिला आयोग में अध्यक्ष/सदस्यों के पद मार्च 2023 से खाली पड़े हैं। इस बीच तीनों आयोगों में हजारों की संख्या में शिकायती पत्र पहुंचे, लेकिन निराकरण एक का भी नहीं हुआ। राज्य महिला आयोग के एक कर्मचारी ने नाम नहीं प्रकाशित करने की शर्त पर बताया कि प्रति महीने लगभग तीन सौ शिकायतें आयोग को मिलती हैं। साल भर में करीब तीन हजार शिकायतें प्राप्त होती हैं। कुछ शिकायतें आयोग से संबंधित नहीं होती, उन्हें निरस्त कर दिया जाता है। बाकी आवेदनों पर संबंधित विभागों से जांच प्रतिवेदन मंगाकर फाइल बनाकर रख लिया जाता है। इनमें से कुछ मामलों में जांच प्रतिवेदन उपरांत ही निराकरण हो जाता है। बचे हुए प्रकरणों में अध्यक्ष/सदस्य की नियुक्ति के बाद ही कार्यवाही की जा सकती है। यही स्थिति राज्य अनुसूचित जाति/जनजाति आयोगों की है। इन आयोगों में भी शिकायतों की पेंडेंसी हजारों में है।

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