- गौरव चौहान
नगर निगम में संबल घोटाले के उजागर होने के बाद से निगम के सभी दफ्तरों में हडक़ंप मचा हुआ है। निगम के जोनल अधिकारी और वार्ड प्रभारियों की तो जैसे नींद ही उड़ गई है। जोनल अधिकारी और वार्ड प्रभारी संबल की फाइलों को टटोल रहे हैं, वहीं गायब हुई 95 फाइलों को लेकर मुख्यालय में अफरा-तफरी मची हुई है, क्योंकि लोकायुक्त को 118 में से मात्र 23 फाइलें जांचने के लिए मिली थी। शेष फाइलें कहां हैं, इसकी खोजबीन चल रही है। इस बीच विधानसभा पटल पर पहुंची संबल घोटाले की जांच रिपोर्ट से खुलासा हुआ है कि घोटाले में जांच के नाम पर केवल खानापूर्ति की जा रही है।
विभागीय सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, संबल योजना के तहत पिछले दो साल के रिकॉर्ड की जांच होनी है। इसके लिए जोन और वार्ड दफ्तरों में फाइलों को खंगाला जा रहा है। लिहाजा आने वाले दिनों में इस घोटाले में लिप्त अफसर, जेडओ और वार्ड प्रभारियों के नामों का खुलासा होगा। लोकायुक्त ने नगर निगम से पिछले दो सालों में संबल योजना के तहत बांटी गई अनुग्रह राशि की फाइलों को मांगा है। गौरतलब है कि जिंदा लोगों को मुर्दा बताकर संबल अनुग्रह योजाना की आड़ में दो करोड़ रुपए से ज्यादा के गबन का पर्दाफाश हुए एक साल से ज्यादा बीत चुका है। घोटाले में शामिल आठ जोनल अधिकारियों में से छह को सस्पेंड किया जा चुका हैं। इनके सहित 17 अधिकारियों-कर्मचारियों के खिलाफ लोकायुक्त ने मामला दर्ज कर जांच भी शुरू कर दी गई है।
कंप्यूटरों की जांच ही नहीं हुई…
विधानसभा पटल पर पहुंची संबल घोटाले की जांच रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि उन कंप्यूटर्स की जांच नहीं हुई, जिनसे घोटाले का खेल खेला गया। कांग्रेस विधायक कुंवर अभिजीत शाह ने नगरीय प्रशासन एवं विकास विभाग से संबल अनुग्रह राशि घोटाले की जांच रिपोर्ट सहित जानकारी मांगी थी, कि मामले में किन-किन अफसरों के खिलाफ क्या कार्रवाई की गई। क्या जांच करते समय समिति ने कंप्यूटर के आईपी एड्रेस और मेप आईडी एड्रेस की जांच करवाई। इस सवाल के लिखित जवाब में नगरीय प्रशासन मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने विधानसभा में बताया कि जांच के दौरान आईपी एड्रेस और मेप आईडी की जांच नहीं कराई गई।
95 फाइलें कहां गायब हैं
वर्तमान में अप्रैल 2023 से जून 2023 के बीच बांटी गई अनुग्रह राशि की फाइलों की जांच हुई थी। अहम बात यह है कि इस मामले की शुरुआती जांच अपर आयुक्त टीना यादव ने की थी। इसकी जांच रिपोर्ट भी गायब है। इसके बाद इस मामले की जांच का दायित्व निधि सिंह को दिया गया। जांच के लिए उनके पास मात्र 23 फाइलें पहुंचीं। शेष 95 फाइलें कहां गायब हैं, इसकी जानकारी निधि सिंह को भी नहीं है। निगमायुक्त हरेंद्र नारायण का कहना है कि यह मामला अब लोकायुक्त के पास है, वह जो फाइलें मांगेंगे हम उन्हें उपलब्ध कराएंगे। सूत्रों के मुताबिक, संबल अनुग्रह राशि घोटाले में दलाली का नेटवर्क भी सामने आया। फर्जी भुगतान वाले बैंक खातों की डिटेल लेकर पड़ताल के दौरान यह सामने आया। इसमें नगर निगम से फर्जी जन्म और मृत्यु प्रमाण पत्र बनाने का भी खुलासा हो रहा है। यहां से फर्जी मृत्यु प्रमाण पत्र बनाकर जीवित व्यक्ति के नाम का आवेदन कर ईपीओ बनाकर भुगतान कराया गया।
बिना जांच छह जोनल अफसरों को निलंबित
जांच समिति ने शुरुआत में बिना जांच के छह जोनल अफसरों को निलंबित कर मामले की लीपापोती की, पर घोटाले की तह तक पहुंचने वाले पहलू को छुआ ही नहीं। यानी घोटाले में शामिल कंप्यूटर सिस्टम की पहचान के लिए आईपी एड्रेस की पड़ताल, पुलिस में मामला दर्ज करने के लिए निगमायुक्त के पत्र, तकनीकी व्यक्ति को समिति में शामिल करने जैसे काम नहीं हुए। इस मामले में निगम अधिकारियों से बात की कोशिश की गई, लेकिन संपर्क नहीं हो सका। क्या होता है आईपी एड्रेस आईपी एड्रेस इंटरनेट और लोकल नेटवर्क में डिवाइस की पहचान के लिए एक यूनिक एड्रेस है। इसका फुल फॉर्म इंटरनेट प्रोटोकॉल होता है। इसकी मदद से किसी नेटवर्क पर दो डिवाइस के बीच कम्युनिकेशन के लिए इन्फॉर्मेशन भेजी और रिसीव की जाती है। इंटरनेट को अलग-अलग कम्प्यूटर और वेबसाइट की पहचान के लिए आईपी एड्रेस की जरूरत होती है। लोकायुक्त नें 8 जेडओ सहित 17 पर दर्ज किया है प्रकरण 19 फरवरी 2024 को कम्मू का बाग निवासी अब्दुल सबूर ने लोकायुक्त एसपी को शिकायत कर बताया था कि निगम अधिकारियों-कर्मचारियों ने उसे मृत बताकर दो लाख की सहायता राशि किसी सैयद मुस्तफा अली के खाते में ट्रांसफर कर दी। लोकायुक्त पुलिस ने जांच की तो मामला सही मिला। इसके बाद 14 जून को 8 जोनल अधिकारी, 6 वार्ड प्रभारी और 3 कर्मचारियों पर केस दर्ज हुआ। इन सभी को शासन से मिलने वाली अंत्येष्टि, अनुग्रह राशि के भुगतान में वित्तीय अनियमितता बरतते हुए पद के दुरुपयोग का आरोपी बनाया गया है। लोकायुक्त पुलिस की जांच में 8 बिंदुओं पर अनियमितता सामने आई। क्या है कर्मकार मंडल 2003 में कामगारों के लिए मप्र भवन व अन्य संनिर्माण कर्मकार कल्याण मंडल बनाया गया था। राज्य में 90 प्रतिशत से अधिक श्रमिक असंगठित क्षेत्र में हैं, जिसमें बड़ी संख्या निर्माण श्रमिकों का है। काम के दौरान मौत होने पर इन्हीं श्रमिकों को मंडल अंतिम संस्कार के लिए 2 लाख रुपए की आर्थिक मदद करता है। रजिस्टर्ड श्रमिक की दुर्घटना में स्थाई या आंशिक अस्थाई चोट लगने पर भी आर्थिक सहायता मिलती है। इसी योजना में जिंदा मजदूरों को मुर्दा बताया गया, फिर उन्हीं को नॉमिनी बनाकर फर्जी खाते खोले गए। घोटाले का खुलासा जुलाई 2023 में हुआ। इनमें 2-2 लाख की सहायता राशि ट्रांसफर कराई गई। फर्जीवाड़े के कुल 118 मामलों में 11 मामले जिंदा मजदूरों के थे।