आयकर छापों के बाद शुरू हुई कार्रवाई….
गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश के सबसे कमाऊ विभागों में शामिल आबकारी विभाग के भ्रष्ट अधिकारियों-कर्मचारियों के खिलाफ लोकायुक्त ने जांच शुरू कर दी है। इस जांच के बाद प्रदेशभर में हडक़ंप मच गया है। दरअसल, शराब कंपनी मेसर्स शिवहरे ग्रुप के यहां 10 वर्ष पहले आयकर छापे से मिले दस्तावेजों के आधार पर विशेष पुलिस स्थापना लोकायुक्त जांच कर रही है। इस जांच की जद में कुछ आबकारी अधिकारी, आबकारी निरीक्षक अन्य अधिकारी-कर्मचारी सहित 25 से अधिक लोग आ रहे हैं। पुलिस की ओर से आबकारी विभाग से उस दौरान अलग-अलग जिलों में पदस्थ रहे अधिकारी-कर्मचारियों की जानकारी मांगी गई थी, जो कि विभाग ने मई में पुलिस को सौंप दी है। अब इन अधिकारियों के बयान लिए जाएंगे। इसके बाद इनके विरुद्ध प्रकरण दर्ज किया जा सकता है। सूत्रों के अनुसार छापेमारी के दौरान एक कोडेड डायरी बरामद की गई थी, जिसमें संदिग्ध वित्तीय लेन-देन का विवरण था। इस डायरी ने आबकारी विभाग के कई अधिकारियों को संदेह के घेरे में ला दिया है। इनमें भोपाल में वर्तमान में पदस्थ एक सहायक आयुक्त भी शामिल हैं, जिनकी भूमिकाओं और हितों के टकराव की भी जांच की जा रही है। बता दें कि आयकर विभाग ने शराब कंपनी से जुड़े विभिन्न स्थानों पर यह छापेमारी 10 वर्ष पहले की थी। लोकायुक्त पुलिस के अधिकारियों ने बताया कि आयकर विभाग से जो दस्तावेज मिले हैं उनमें कुछ अधिकारियों का पूरा नाम भी नहीं लिखा। जिनका पूरा नाम लिखा है तो पदनाम नहीं है। बांगड़े साहब, शर्मा जी, विश्वकर्मा साहब, पाण्डेय साहब लिखा है। ऐसे में जांच उलझ रही थी। इस कारण इनका पूरा नाम, पदनाम, पदस्थापना स्थल और मोबाइल नंबर मांगे थे। बताया रहा है कि इस तरह के उपनाम वालों की पदस्थापना उस दौरान बैतूल में थी।
कौन हैं शर्मा जी, बांगड़े साहब, पाण्डेय बाबू
लोकायुक्त टीम ने आयकर विभाग की गोपनीय रिपोर्ट की जांच शुरू कर दी है। वहीं आबकारी विभाग से सख्त लहजे में पूछा है कि शर्मा जी, बांगड़े साहब कौन हैं? उनका ड्राइवर कौन था? विश्वकर्मा साहब, पाण्डेय बाबू कौन हैं? लोकायुक्त ने ये सवाल आयकर विभाग की एक गोपनीय रिपोर्ट की जांच के बाद पूछे हैं। यह रिपोर्ट 2016 में मप्र और छत्तीसगढ़ में शराब के एक व्यवसायी के यहां तलाशी के दौरान जब्ती से संबंधित हैं। इस जांच के केंद्र में कई गंभीर आरोप और वित्तीय अनियमितताएं शामिल हैं। विशेष पुलिस स्थापना लोकायुक्त ने 28 फरवरी 2013 से तीन मई 2013 के दौरान आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ अधिकारी की भी जानकारी मांगी थी। इसके अतिरिक्त अलग- अलग समय डीईओ ग्वालियर, 16 दिसंबर 2015 को राज्य उडऩदस्ता में पदस्थ अधिकारी-कर्मचारी की जानकारी मांगी गई थी। सभी जिलों के जिला आबकारी अधिकारियों ने अपने-अपने यहां अलग-अलग समय पदस्थ रहे अधिकारी-कर्मचारियों की जानकारी भेज दी है। पूरे मामले की जांच लोकायुक्त विशेष पुलिस स्थापना ग्वालियर द्वारा की जा रही है।
कोडेड डायरी का खुलासा
सूत्रों के अनुसार छापेमारी के दौरान एक कोडेड डायरी बरामद की गई थी, जिसमें संदिग्ध वित्तीय लेन-देन का विवरण था। इस डायरी ने आबकारी विभाग के कई अधिकारियों को संदेह के घेरे में ला दिया है। इनमें भोपाल में वर्तमान में पदस्थ एक सहायक आयुक्त भी शामिल हैं, जिनकी भूमिकाओं और हितों के टकराव की भी जांच की जा रही है। सूत्रों के अनुसार, अलग-अलग तारीखों पर ग्वालियर, शिवपुरी और अन्य स्थानों पर तैनात अधिकारियों के बारे में भी जानकारी मांगी गई है, जिसमें ग्वालियर में शर्मा के बारे में जानकारी मांगी गई है और यह भी पूछा गया है कि किस अधिकारी/कर्मचारी को बांगरे साहब के नाम से जाना जाता था।
व्यापक तलाशी अभियान चला
7 जनवरी 2016 को मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, झारखंड, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड और राजस्थान में एक बड़े शराब कारोबारी के ठिकानों पर इनकम टैक्स का छापा पड़ा था, जिसमें 1000 करोड रुपए से ज्यादा की अघोषित आय का पता चला था। 55 परिसरों पर तलाशी ली गई थी। इस छापे में कई करोड़ नकद, जेवर, जमीन, कॉलेज और कोल्ड स्टोरेज में निवेश के अलावा अन्य संपत्तियां भी बरामद हुईं थीं। विशेष पुलिस स्थापना लोकायुक्त के निरीक्षक कविंद्र सिंह चौहान ने आयकर रिपोर्ट पर जानकारी मांगने के लिए आबकारी विभाग को नोटिस भेजा है, उन्होंने विभाग से 28 फरवरी, 2013 और 3 मई, 2013 को आबकारी आयुक्त के पद के बारे में जानकारी भी मांगी है।
सबूत मिले लेकिन केस चलाने की मंजूरी नहीं…
लोकायुक्त द्वारा शुरू की गई जांच अंजाम तक पहुंचेगी की नहीं इस पर कुछ भी नहीं कहा जा सकता। क्योंकि दिल्ली में 144 करोड़ के आबकारी घोटाले में सीएम अरविंद केजरीवाल समेत सरकार के कई बड़े लोग जेल की सलाखों के पीछे हैं, जबकि मप्र में करीब 200 करोड़ के घोटाले करने वाले अफसरों के खिलाफ कार्रवाई की मंजूरी तक नहीं मिल रही है। मप्र का आबकारी घोटाला सिर्फ इंदौर ही नहीं, बल्कि भोपाल, कटनी, रीवा, दमोह समेत आधा दर्जन से अधिक जिलों में भी फैला है। इंदौर में डेढ़ साल पहले हुए फिक्स्ड डिपॉजिट रिसीप्ट (एफडीआर) के मामले में आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ (ईओडब्ल्यू) ने जांच की थी, पर जांच सही नहीं हुई। अब दोबारा जांच की जा रही है। मप्र में फर्जी एफडीआर को लेकर करीब 20 मामलों में 200 करोड़ का भ्रष्टाचार हो चुका है। 5 मामलों में ही 77 करोड़ का घपला है, पर आज तक कोई बड़ा अफसर या नेता गिरफ्त में नहीं आ सका। इन्हें बचाने में पूरा सिस्टम ही लग गया है। हालांकि, एक मामले में ईडी ने जांच शुरू की है। जानकारों का कहना है कि ईडी की जांच सही दिशा में हुई तो दिल्ली की तर्ज पर मप्र में भी कई नेता और बड़े अफसर कानून के शिकंजे में आ सकते हैं।
मिले फर्जी एफडीआर के सबूत
ईडी ने इसी साल जनवरी में रीवा निवासी शराब कारोबारी पुष्पेंद्र सिंह को गौरीघाट इलाके से गिरफ्तार किया था। उसके घर से भी फर्जी एफडीआर से जुड़े कुछ दस्तावेज मिले थे। दो दिन की रिमांड पर पूछताछ में पता चला था कि उसने केनरा बैंक के मैनेजर के साथ मिलीभगत कर कई लोगों के नाम से वाहन लोन निकलवाए और इनकी राशि अपने खाते में ट्रांसफर कराई, लेकिन कंपनी से वाहनों की डिलीवरी नहीं ली। मामले में ईडी और सीबीआई ने एफआईआर भी दर्ज की थी। पुष्पेंद्र फर्जी डिमांड ड्राफ्ट मामले में कटनी निवासी बल्लन तिवारी का भी पार्टनर है। उसने 2016 में कटनी में शराब दुकानों का लाइसेंस लेने के दौरान 4 करोड़ रुपए की बैंक गारंटी लगाने के लिए 13 फर्जी डीडी दिए थे। सूत्रों के मुताबिक टीम को बैंक खाते, फर्म का लेन-देन और रिटर्न की जांच के बाद कई सुराग हाथ लगे हैं।