- एक जुलाई से शुरु होगा मानसून सत्र
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव में फेल हो चुकी कांग्रेस नेताओं की युवा जोड़ी को अब अगले माह एक बार फिर से परीक्षा देनी होगी। इस परीक्षा में यह जोड़ी सरकार को घेरने में सफल होती है या नहीं इस पर सभी की निगाहें लगी हुई हैं। दरअसल विधानसभा चुनाव में पार्टी की हुई करारी हार के बाद पार्टी हाईकमान ने तमाम अनुभवी व बुजुर्ग नेताओं को दरकिनार कर सदन में पार्टी की जिम्मेदारी उमंग सिंघार और हेमंत कटारे को सौंपी हैं। सिंघार को नेता प्रतिपक्ष और कटारे को उप नेता प्रतिपक्ष बनाया गया है। ऐसा नही है कि सिर्फ सदन में ही पार्टी की कमान युवाओं को दी गई है , बल्कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद पर भी जीतू पटवारी की ताजपोशी कर साफ संदेश दिया गया है कि अब पार्टी में युवाओं को महत्व दिया जाएगा। यानि की भाजपा की तरह ही कांग्रेस में भी पीढ़ी परिवर्तन का प्रयोग किया गया है। पार्टी का यह प्रयोग हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव में पूरी तरह से फेल हो चुका है। दरअसल यह तीनों नेता जिन -जिन लोकसभा क्षेत्रों से आते हैं, उन सभी में भाजपा को अच्छी खासी जीत मिली है। यही नहीं अब तक तो मैदानी स्तर पर आमजन के मुद्दों को लेकर कांग्रेस सडक़ों पर भी उतरती नहीं दिखी है। यह जरुर है कि तीनों नेताओं को जिम्मेदारी मिलने के बाद लोकसभा चुनाव आ गए थे। हालांकि, पहली बार ऐसा हुआ है कि प्रदेश में इस बार लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का खाता तक नहीं खुल सका है। लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार से पटवारी के नेतृत्व पर भी सवाल उठ रहे हैं। इसके अलावा पार्टी के अंदर से प्रदेश नेतृत्व को बदलने की मांग भी होना शुरु हो चुकी है। पटवारी के बाद अब नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार और उप नेता प्रतिपक्ष हेमंत कटारे की बारी है। अगले माह से शुरु हो रहा विधानसभा के मानसून सत्र को इन दोनों नेताओं के लिए अग्नि परीक्षा के समान है। मप्र विधानसभा का मानसून सत्र एक जुलाई से शुरू हो रहा है। कांग्रेस अजा- अजजा वर्ग पर अत्याचार, महिला अत्याचार, कानून व्यवस्था की स्थिति आदि को लेकर सदन में सरकार को घेरने की तैयारी कर रही है।
दमदार अनुभवी नेताओं की कमी
इस बार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के कई दमदार नेता विधानसभा का चुनाव हार गए, इसलिए सदन में सरकार के खिलाफ आवाज उठाने वाले अनुभवी नेताओं की संख्या भी कम रह गई है। इसके अलावा फरवरी में आयोजित बजट सत्र में नेता प्रतिपक्ष की भूमिका निभाने वाले विधायक रामनिवास रावत भी अब पार्टी के साथ नहीं है। दरअसल वे कांग्रेस के ऐसे नेता थे, जो सदन में होने वाली किसी भी विषय पर महत्वपूर्ण चर्चा की शुरुआत पार्टी की ओर से करते थे, और फिर सरकार को कटारे में खड़ा करने में पीछे नहीं रहते थे, लेकिन अब वे पाला बदल कर भाजपा में शामिल हो चुके हैं। इस वजह से अब सिंघार और कटारे की जवाबदेही बढ़ गई है।
वरिष्ठ नेताओं के साथ समन्वय की भी परीक्षा
सदन में विपक्ष की सशक्त भूमिका तभी दिखती है, जब दल के सभी नेता सामूहिकता दिखाते हुए सरकार को घेरने का प्रयास करते हैं। ऐसे में इन दोनों युवा नेताओं को पार्टी के वरिष्ठ विधायकों के साथ समन्वय की परीक्षा से भी सदन में गुजरना होगा। कटारे तो ऐसे नेता हैं तो महज दूसरी बार ही विधायक बने हैं। पहली बार उप चुनाव में जीतने पर उन्हें बेहद कम समय मिला था, जबकि इस बार भी अभी विधायक बने हुए उन्हें छह माह का ही समय हुआ है। इस वजह से उनके सामने संसदीय पंरपराओं के साथ अन्य तरह के मामलों को लेकर कड़ी मेहनत करनी होगी। यदि सत्र के दौरान कांग्रेस विपक्ष की भूमिका ठीक से नहीं निभा पाती है, तो पटवारी की ही तरह इन दोनों नेताओं को भी पदों से हटाने की मांग का समाना करना पड़ सकता है। उधर, नेता प्रतिपक्ष और उप नेता प्रतिपक्ष में वरिष्ठता का ध्यान नहीं रखने की वजह से पहले से ही पार्टी के अनुभवी व वरिष्ठ विधायकों में नाराजगी बनी हुई है।