कमलनाथ का… फिर इम्तेहान!

  • अमरवाड़ा उपचुनाव में होगी भाजपा बनाम नाथ की जंग
  • विनोद उपाध्याय
कमलनाथ

लोकसभा चुनाव के समापन के साथ ही मप्र में छिंदवाड़ा जिले की अमरवाड़ा विधानसभा सीट पर उपचुनाव की जंग शुरू हो गई है। लोकसभा चुनाव में अपना गढ़ (छिंदवाड़ा)गंवाने के बाद अब कमलनाथ के सामने एक बार फिर अमरवाड़ा विधानसभा उपचुनाव को लेकर चुनौती है। 2018 में अमरवाड़ा विधानसभा में कांग्रेस से चुनाव जीत कर आए कमलेश प्रताप शाह ने लोकसभा के पहले भाजपा ज्वाइन कर ली थी। अब इस सीट पर भाजपा बनाम नाथ ही जंग होगी। इस विधानसभा क्षेत्र में 10 जुलाई को उपचुनाव होने हैं। अब यहां पर कांग्रेस को प्रत्याशी ढूंढना भी चुनौती साबित हो रही है। लगातार तीन बार कांग्रेस की टिकट पर अमरवाड़ा विधानसभा से चुनाव जीतकर आए कमलेश प्रताप शाह इस बार फिर भाजपा के उम्मीदवार होंगे, क्योंकि लोकसभा चुनाव के एन वक्त पहले कमलेश शाह ने भाजपा ज्वाइन कर विधायकी से इस्तीफा दिया था। इसीलिए अमरवाड़ा में उपचुनाव हो रहे हैं। भाजपा की तरफ से कमलेश प्रताप शाह कैंडिडेट माने जा रहे हैं, लेकिन कमलनाथ और कांग्रेस के सामने प्रत्याशी को लेकर चुनौती है, क्योंकि अमरवाड़ा विधानसभा क्षेत्र में अब तक कमलेश प्रताप शाह कांग्रेस का सबसे बड़ा चेहरा थे। जो नेता कांग्रेस से टिकट की दावेदारी कर रहे थे। उन्हें टिकट नहीं मिला , इसलिए वे विधानसभा के दौरान भाजपा में शामिल हो गए थे। ऐसे में कांग्रेस के लिए प्रत्याशी चुनना अब मुश्किल साबित हो रहा है।
गोंडवाना होती है निर्णायक भूमिका में
अमरवाड़ा विधानसभा में तीसरी शक्ति गोंडवाना निर्णायक भूमिका में रहती है। जिसने लोकसभा चुनाव में 23036 वोट लेकर साबित भी किया है। इससे पहले वर्ष 2018 तक गोंडवाना इस विधानसभा से स्वर्गीय मनमोहन शाह बट्टी के रहते 60 हजार वोट हासिल करती थी। 2003 में भाजपा की लहर के बाद भी यहां से मनमोहन शाह बट्टी चुनाव जीते थे। अब तक कांग्रेस के टिकट और कमलनाथ के नाम पर चुनाव जीतने वाले कमलेश प्रताप शाह को कांग्रेस भी हार का स्वाद चखाना चाहेगी, लेकिन फिलहाल कांग्रेस के सामने चुनौती प्रत्याशी चुनने की है।  प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी ने उपचुनाव के लिए पूर्व मंत्री सुखदेव पांसे और पूर्व विधायक सुनील जायसवाल को चुनाव प्रभारी नियुक्त कर दिया है। दोनों कमल नाथ समर्थक हैं। ये प्रत्याशी चयन को लेकर संगठन को नाम भी सुझाएंगे। कमलनाथ से चर्चा करने के बाद केंद्रीय संगठन को अंतिम निर्णय के लिए नाम प्रस्तावित किया जाएगा। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के मीडिया सलाहकार केके मिश्रा का कहना है कि अमरवाड़ा में उपचुनाव किस कारण से हो रहा है, यह जनता जानती है। निर्वाचित जनप्रतिनिधि के धोखे का वह उपचुनाव में बदला लेगी। जहां तक बात कमल नाथ की है तो वे छिंदवाड़ा ही नहीं देश के वरिष्ठ नेता हैं और मात्र एक चुनाव में हार-जीत राजनीतिक भविष्य का पैमाना नहीं होती है। उधर, भाजपा कमलेश शाह को ही अमरवाड़ा विधानसभा से चुनाव लड़ा सकती है। इसके लिए स्थानीय नेताओं के बीच सहमति बनाई जाएगी। संगठन जल्द ही उपचुनाव के लिए प्रभारी की नियुक्ति करेगा। मुख्यमंत्री डा.मोहन यादव के दौरे भी अगले सप्ताह से प्रारंभ हो जाएंगे।
नाथ की प्रतिष्ठा दांव पर
छिंदवाड़ा जिला ही ऐसा रहा है, जहां कि सभी सातों विधानसभा सीटें 2018 और 2023 में कांग्रेस ने जीती थीं। इसका श्रेय पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ को ही जाता है। दोनों चुनाव कमल नाथ के नाम पर लड़े गए। टिकट भी उन्हीं ने तय किए। बीच लोकसभा चुनाव में उनके भरोसेमंद साथी कमलेश शाह ने अमरवाड़ा विधानसभा सीट से त्यागपत्र देकर भाजपा की सदस्यता लेकर बड़ा झटका दिया। इसका नुकसान कमल नाथ के बेटे नकुलनाथ को लोकसभा चुनाव में हुआ और वे इस विधानसभा सीट पर भाजपा के विवेक बंटी साहू से 15 हजार 39 मतों से पीछे रह गए थे। अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए सुरक्षित छिंदवाड़ा जिले की अमरवाड़ा विधानसभा सीट से कभी कांग्रेस तो कभी भाजपा को बढ़त मिली है। 2008 से पार्टी ने यहां कमलेश शाह को चुनाव मैदान में उतारा पर वे 1,140 मतों के अंतर से हार गए थे। 2013 के चुनाव में कमल नाथ ने फिर उन पर भरोसा जताया और उन्होंने 4,063 मतों के अंतर से जीत प्राप्त की। 2018 में 10,393 और 2023 के चुनाव में 25 हजार 286 मतों से भाजपा को पराजित कर फिर विधानसभा पहुंचे। आदिवासियों के बीच शाह की छवि का लाभ कांग्रेस को पूरे जिले में मिलता रहा। लोकसभा चुनाव में भाजपा ने कांग्रेस के किले में सेंध लगाने के लिए कमल नाथ के विश्वासपात्र कमलेश शाह को अपने पाले में करने में सफलता प्राप्त की। उन्होंने बाकी नेताओं की तरह पद पर बने रहने के स्थान पर पहले विधानसभा की सदस्यता से त्यागपत्र दिया और फिर विधिवत भाजपा में शामिल हुए। कांग्रेस पदाधिकारियों का कहना है कि यह उपचुनाव कांग्रेस और खासतौर पर कमल नाथ के लिए बहुत अहम है। प्रतिष्ठा भी उनकी ही दांव पर रहेगी, क्योंकि लोकसभा चुनाव में उनमें बेटे नकुलनाथ को पराजय मिलने के बाद अब उनको पास वापसी का यह बड़ा अवसर है।

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