- इस बार कांग्रेस को अच्छे परिणाम की उम्मीद
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र में कांग्रेस की पहचान गुटबाजी से होती है। पार्टी में जितने दिग्गज हैं उतने गुट की पुरानी परंपरा है। लेकिन मिशन 2024 यानी लोकसभा चुनाव के इस दौर में कांग्रेस को गुटबाजी से राहत मिली हुई है। दरअसल, कुछ गुट के सरदार अब कांग्रेस से छिटके हुए हैं तो कुछ चुनावी माला पहने हुए अपने-अपने किले की दीवारें संभालने में जुटे दिखाई दे रहे हैं। इस मिलीजुली स्थिति का असर यह है कि कांग्रेस अब तक गुटबाजियों से हुए नुकसान से इस बार कुछ हद तक बेफिक्र है। वहीं नाराज नेताओं को भी मना लिया गया है। इसी कड़ी में नाराज चल रहे डॉ. गोविंद सिंह और रामनिवास रावत को भी मना लिया गया है। ऐसे में पार्टी के पदाधिकारियों को इस चुनाव में बेहतर परिणाम की उम्मीद है। प्रदेश में कांग्रेस की गुटबाजी हमेशा इसके नुकसान का कारण बनती रही है। दिग्विजय सिंह, कमलनाथ, ज्योतिरादित्य सिंधिया, सुरेश पचौरी से लेकर अजय सिंह राहुल, कांतिलाल भूरिया और अरुण यादव तक हर नेता अपना एक अलग गुट और अलग समर्थक टोली लिए बैठा है। एकता पाठ कई बार पढ़ाया गया, लेकिन सारा दिन चले, अढ़ाई कोस की तर्ज पर इसके कभी सकारात्मक परिणाम नहीं मिल पाए। नतीजा कमजोरी के रूप में आया और कांग्रेस को पतन के रसातल तक पहुंच जाने के हालात बनते गए। कमजोरी के इन हालात में लोकसभा चुनाव 2024 पार्टी के लिए बड़ा राहत भरा साबित हो रहा है। कारण यह कहा जा सकता है कि गुटों की बटी सियासत के सरगना अलग अलग कारणों से अपनी व्यस्तता लिए बैठे हैं।
डॉ. गोविंद सिंह और रामनिवास रावत भी मोर्चे पर: गौरतलब है कि लोकसभा चुनाव के मद्देनजर कांग्रेस ने ग्वालियर और चंबल में खास फोकस किया है। पार्टी को उम्मीद है कि अगर एकजुट होकर चुनाव लड़ें, तो परिणाम में इसका फायदा दिख सकता है। इसी मंशा से पार्टी के नाराज नेताओं की मान- मनौव्वल की गई है। सबसे ज्यादा नाराजगी कांग्रेस के वरिष्ठ विधायक रामनिवास रावत और पूर्व नेता प्रतिपक्ष डॉ. गोविंद सिंह की थी। रावत से अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी और गोविंद से मध्यप्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष जीतू पटवारी ने बात की थी।
मनुहार के बाद दोनों दिग्गज नेता मान गए हैं और वे पार्टी के लिए काम में जुट गए हैं। ग्वालियर चंबल पर कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व की नजर है। इसीलिए राहुल गांधी और प्रियंका गांधी भिंड और मुरैना में प्रचार के लिए आ रहे हैं। ग्वालियर-चंबल की चारों सीटों पर मतदान तीसरे चरण में सात मई को होना है। पहले और दूसरे चरण में मध्यप्रदेश की 12 लोकसभा सीटों पर मतदान ही चुका है। तीसरे चरण के मतदान से पहले राहुल गांधी और प्रियंका गांधी प्रचार के लिए मध्यप्रदेश आ रहे हैं। उनके आने से पहले कांग्रेस के दोनों नेता चुनाव मैदान में उतर गए है।
दोनों की चुनाव लड़ने की थी मंशा
बताते हैं कि रावत और गोविंद सिंह टिकट वितरण से नाराज थे। रावत पहले घर बैठ गए थे और बाद में पार्टी छोड़ने का मन भी बना लिया था। उनके भाजपा में जाने की अटकलों के बीच राहुल गांधी ने उनसे बात की थी। राहुल से बात करने के बाद रावत मान गए थे। बताते हैं कि मुरैना से रावत और गोविंद खुद टिकट चाहते थे। भाजपा ने जब शिवमंगल सिंह तोमर को टिकट दे दिया, तब गोविंद चुनाव लडऩे से पीछे हट गए और उन्होंने अपनी दावेदारी वापस ले ली थी। रावत पिछला चुनाव मुरैना से लड़े थे और हार गए थे। वे इस बार भी चुनाव लडऩे के इच्छुक थे, लेकिन पार्टी ने सत्यपाल सिंह सिकरवार (नीटू) को टिकट दे दिया। उसके बाद रावत की नाराजगी खुलकर सामने आ गई थी। रावत इस बात से कम नाराज थे कि उन्हें टिकट नहीं मिला, लेकिन इस बात से ज्यादा नाराज थे कि नीटू को टिकट मिल गया। नीटू के टिकट को लेकर गोविंद ने भी आपत्ति जताई थी। बताते है कि साल 2018 के विधानसभा चुनाव में नीटू के चाचा ने गोविंद का विरोध किया था। इसको लेकर नीटू और उनके परिवार से गोविंद भी नाराज थे, लेकिन बाद में नीटू और गोविंद का समझौता हो गया। गोविंद की पार्टी से नाराजगी देवाशीष जरारिया को लेकर थी। गोविंद चाहते थे कि भिंड से जरारिया को उम्मीदवार बनाया जाए। जरारिया पिछला चुनाव भी कांग्रेस के टिकट पर लड़े थे, लेकिन हार गए थे। पार्टी ने जरारिया की जगह फूल सिंह बरैया को मैदान में उतार दिया। इससे नाराज होकर गोविंद रीवा चले गए। उन्हें रीवा का प्रभार सौंपा गया था। रीवा में चुनाव होने के बाद वे भिंड लौट आए हैं। दो दिन तक घर में चुपचाप बैठ गए थे। उसके बाद प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी ने उनसे संपर्क किया था। पटवारी की मनुहार के आद गोविंद भी मान गए हैं। गोविंद ने एक दिन पहले ग्वालियर और रावत ने मुरैना में पार्टी के लिए प्रचार किया है।