एसी डिब्बे लगाकर गरीबों की जेब काट रहा रेलवे

रेलवे की पार्किंग से लेकर स्टेशन के अंदर तक जाना किया महंगा

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। रेलवे महकमे द्वारा लगातार कई तरह के बहाने बनाकर यात्रियों की जेबेंं काटी जा रही हैं। फिर चाहे मामला जनरल से लेकर स्लीपर कोच का हो या फिर पार्किंग का। हद तो यह है कि रेलवे स्टेशन के अंदर तक जाना महंगा किया जा चुका है। यात्रियों के पास कोई दूसरा विकल्प नहीं होने की वजह से मजबूरी का फायदा उठाया जा रहा है। हालत यह है कि अब तो गरीबों का रेलवे से सफर करना बेहद मुश्किल होता जा रहा है। इसकी वजह है रेलवे प्रशासन द्वारा लगातार जनरल व स्लीपर कोच की संख्या कम कर उनकी जगह एसी कोचों की संख्या में वृद्धि की जाना। इसकी वजह से बेचारे गरीब बेहद परेशान बने हुए हैं।
उन्हें स्लीपर व जनरल कोच के अभाव में एसी के टिकट लेने पड़ रहे हैं। जनरल कोच बेहद कम होने की वजह से स्लीपर कोचों की हालत सामान्य कोच की तरह होती जा रही है। सामान्य कोच में जगह न मिलने और टिकट कंफर्म न होने से स्लीपर कोच में यात्रियों की मजबूरन भीड़ बढ़ जाती है। हालत यह है कि भोपाल से चलने वाली आधा दर्जन बेहद महत्वपूर्ण ट्रेनों में भी सामान्य व स्लीपर कोंच कम किए जा चुके हैं। इनमें रेवांचल एक्सप्रेस और भोपाल एक्सप्रेस जैसी ट्रेनें शामिल हैं। इनमें ट्रेनों में छह स्लीपर कोच को कम कर उनकी जगह दो थर्ड एसी इकोनामी कोच लगाए गए हैं। थर्ड एसी इकोनॉमी कोच का किराया स्लीपर के किराए से दोगुने से भी अधिक है।
शादी के सीजन में भारी भीड़
रेलवे ने एलएचबी रैंक के ट्रेनों में स्लीपर कोचों की संख्या घटा दी गई है। नतीजतन इस परेशानी की वजह से यात्रियों का सफर बेहद मुश्किल भरा हो गया है। सामान्य व स्लीपर कोच की कमी के कारण स्लीपर की हालत सामान्य बोगी जैसी हो गई है। गर्मी की छुट्टी और शादी के समय तो अत्यधिक भीड़ के कारण यात्रियों की फजीहत हो रही है। अब स्लीपर कोच कम होने से लोगों को दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। रानी कमलापति रेलवे और रीवा के बीच चलने वाली एक्सप्रेस में पहले स्लीपर के कोच होते थे, लेकिन इनमें से छह को हटा दिया गया है। इनकी ट्रेन के एसी कोच लगा दिए गए अब सिर्फ छह स्लीपर कोच बचे इसी तरह भोपाल से दिल्ली वाली भोपाल एक्सप्रेस में भी 12 स्लीपर कोच होते थे, अब ट्रेन में भी छह स्लीपर कोच लगाए जा रहे हैं। नियमानुसार राजधानी, शताब्दी, दुरंतो, हमसफर व सुविधा एक्सप्रेस जैसी ट्रेनों को छोडक़र अन्य सभी में छह जनरल कोच लगाना अनिवार्य है। लेकिन कमाई बढ़ाने के लिए जोन व मंडल स्तर पर जनरल डिब्बों की संख्या में कटौती की जाती है। चूंकि एक ट्रेन में अधिकतम 24 कोच लगाए जा सकते हैं। ऐसे में जनरल कोच की संख्या कम करके इसकी जगह पर एसी व स्लीपर कोच लगा दिया जाता है। कमाई बढ़ाने के चक्कर में रेलवे प्रशासन आम व जरूरतमंद यात्रियों की सुविधा को दरकिनार कर रहा है।
कई ट्रेनों के जनरल कोचों में इन दिनों इतनी भीड़ थी कि यात्री टॉयलेट के समीप बैठकर सफर करने को मजबूर हो रहे हैं। ऐसा ही नजारा अक्सर अधिकतर ट्रेन में दिखाई देता है। इतना ही नहीं जिन ट्रेनों में पेंट्रीकार है, उसकी सुविधा जनरल कोच के यात्रियों को नहीं मिलती। चलती ट्रेन में जनरल डिब्बे में घुसने का रास्ता नहीं होता, इसलिए पेंट्रीकार के वेंडर यहां तक पहुंच नहीं पाते। स्टेशन में ट्रेन खड़ी होने पर ही यात्रियों को कुछ खाने-पीने को मिलता है। इसी तरफ के हालात सभी ट्रेनों की है। रेलवे यदि ट्रेनों में जनरल कोच की संख्या को छह भी रखें, तो लोगों को कुछ राहत मिल जाएगी। टॉयलेट में सफर करना मानवाधिकार के भी विरुद्ध है, लेकिन इसे देखने और समझने वाला कोई नहीं है।
देना पड़ा रहा है अधिक किराया…
यात्रियों को 40 फीसदी तक ज्यादा किराया देना पड़ रहा है। इसकी वजह से इन गाडिय़ों में स्लीपर श्रेणी में अब लंबी वेटिंग चल रही है। रेलवे के इस फैसले से आम यात्रियों पर आर्थिक भार बढ़ गया है।  उन्हें वैकल्पिक व्यवस्था के रूप में अधिकतम 40 फीसदी तक अतिरिक्त किराया देकर इकोनॉमी या एसी-3 श्रेणी में रिजर्वेशन लेकर सफर करना पड़ रहा है। उधर, रेलवे प्रशासन का तर्क है कि लोगों के भुगतान की क्षमता में वृद्धि हुई है, जिसकी वजह से ट्रेनों में स्लीपर व जनरल की संख्या कम कर एसी इकोनॉमी और एसी-3 श्रेणी के कोच लगाए जा रहे हैं। यही नहीं विश्वस्तरीय रेलवे स्टेशनों के नाम पर भी पहले से ही यात्रियों की जेबें काटी जा रही हैं।

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