न मुद्दे, ना दावे, जाति पर सिमटा चुनाव

चुनाव
  • चंबल-अंचल में चुनाव प्रचार जोरों पर…

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। जर, जोरू और जमीन की रणभूमि चंबल में लोकसभा चुनाव का प्रचार जोरों पर है। अंचल की दोनों सीटों भिंड और मुरैना-श्योपुर में समस्याओं की भरमार है। लेकिन चुनाव प्रचार में क्षेत्रीय विकास, रोजगार, स्वास्थ्य, शिक्षा जैसे न पक्ष और न ही विपक्ष उठा रहा है। भाजपा-कांग्रेस के अलावा बसपा प्रत्याशी जीत के लिए सिर्फ जातियों को साधने में लगे हैं। ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है, बल्कि यहां चुनाव विधानसभा का हो या लोकसभा का पार्टियों का फोकस जातियों को साधने पर रहा है। पार्टियां यहां पर टिकट भी जाति के आधार पर देती हैं। दरअसल, मतदाता भी जाति आधारित प्रत्याशी को वोट देते हैं। बात मुरैना-श्योपुर लोकसभा सीट की करें , तो भाजपा ने यहां शिवमंगल सिंह तोमर तो कांग्रेस ने सत्यपाल सिंह (नीटू) सिकरवार को मैदान में उतारा है। दोनों क्षत्रिय समाज से हैं, ऐसे में क्षत्रिय वोटों के बंटवारे की संभावना देख दोनों दलों की नजरें ब्राह्मण के अलावा अनुसूचित जाति, कुशवाह, रावत, आदिवासी और गुर्जर वोट पर है। जबकि बसपा ने यहां से व्यवसायी रमेशचंद्र गर्ग को चुनाव मैदान में उतारा है, इसलिए बसपा की नजरें अब वैश्य वर्ग के साथ ब्राह्मण वोट को भी अपने पाले में लाने पर टिक गई हैं।
तीन जातियों का दबदबा
मुरैना-श्योपुर लोकसभा सीट पर सबसे अधिक साढ़े चार लाख अनुसूचित जाति का वोट है। दूसरे नंबर पर ढाई से पौने तीन लाख के करीब क्षत्रिय वोट है, तीसरे नंबर पर ब्राह्मण वोट हैं, जिसकी संख्या दो से सवा दो लाख है। गुर्जर, कुशवाह, रावत, धाकड़-यादव और वैश्य समाज का वोट एक से सवा-सवा लाख तक के बीच है। जातिगत वोट को साधने के लिए भाजपा की ओर से मुख्यमंत्री डा. मोहन सिंह यादव की पहली चुनावी सभा सबलगढ़ के छोटे से गांव मामचौन में करवाई गई, क्योंकि यहां यादव समाज का वोट अच्छा-खासा है। इसी परिपाटी को आगे बढ़ाते हुए गुर्जर वोट को साधने के लिए कांग्रेस प्रत्याशी सुमावली-मुरैना क्षेत्र में राजस्थान के गुर्जर नेता सचिन पायलट की सभा कराने की तैयाीी में हैं। कांग्रेस ने ब्राह्मण नेताओं को श्योपुर से मुरैना तक मैदान में उतार दिया है। बसपा भी अनुसूचित जाति के वोट को रिझाने के लिए जल्द मायावती की सभा करवा सकती है।
अवैध खनन पर कोई बात नहीं
चंबल नदी से रेत का अवैध उत्खनन पर नेशनल ग्रीन टिब्यूनल से लेकर राजस्थान उच्च न्यायालय तक नाराजगी जता चुका है। अंधी दौड़ में दौड़ते रेत के वाहन आए दिन जानलेवा हादसे कर रहे हैं, लेकिन मुरैना की राजनीति के लिए रेत का अवैध उत्खनन कोई मुद्दा नहीं, क्योंकि अवैध रेत के कारोबार को राजनीतिक संरक्षण खुलकर मिला हुआ है। बारिश में चंबल-क्वारी नदी में बाढ़ आती है तो सैकड़ों गांव पानी से घिर जाते हैं। 70 से ज्यादा गांव डूब में जाते हैं, जिससे बचने के लिए लोगों को पलायन करना पड़ता है, पर चुनाव में इस बड़ी समस्या पर कोई चर्चा तक नहीं करता दिख रहा। बेलगाम होते अपराध से जिलेभर का व्यापारी वर्ग परेशान है, परंतु इस पर केवल बसपा प्रत्याशी ही अपना वोट साधने के लिए मुंह खोल रहे हैं।
विकास की कोई बात नहीं
क्षेत्र में कई मुद्दे हैं, लेकिन इन पर बात नहीं हो रही है। मुरैना-श्योपुर दोनों जिलों से ढाई लाख से ज्यादा लोग पलायन करके दूसरे राज्य व महानगरों में मजदूरी कर रहे हैं। बानमोर इंडस्ट्री एरिया के आधे से ज्यादा उद्योग बंद हैं, नए औद्योगिक क्षेत्रों में उद्योग इकाई नहीं आ रहीं। कैलारस शक्कर मिल को भी सरकार बंद करने का ऐलान कर चुकी है। मुरैना में मेडिकल कालेज का निर्माण शुरू नहीं हो पा रहा, जिला अस्पताल से लेकर अन्य अस्पतालों में डाक्टरों की कमी है। पांच साल पहले स्वीकृत हुए अटल एक्सप्रेस-वे का निर्माण नहीं हो पा रहा। दो बार सर्वे के बाद पूरा काम ठप पड़ा है। मुरैना के व्यवसायी विवेक गुप्ता का कहना है कि विकास की कोई बात नहीं कर रहा, सब जातिवाद के गणित से चुनाव जीतना चाहते हैं। मुरैना शहर का यातायात दम तोड़ चुका है, बाजार में दिनभर जाम रहता है। सडक़ों के किनारे अतिक्रमण है, व्यापारी वर्ग को सुरक्षित माहौल नहीं मिल रहा। दुकानदार कमल यादव का कहना है कि बाजार में कब कहां गोली चल जाए, व्यापारी पर हमला हो जाए कोई कह नहीं सकता। अपराध बढ़ रहा है, व्यापारी वर्ग डरा-सहमा रहता है। पहले चुनावों में ऐसी समस्याओं पर बात होती थी, लेकिन अब तो चुनाव के बीच ही जिलेभर में ऐसी घटनाएं हो रही हैं। अंशुल गुप्ता का कहना है कि इस बार चुनाव में रोजगार, स्वास्थ्य, शिक्षा पर तो कोई बात ही नहीं कर रहा। इंडस्ट्री एरिया से फैक्ट्री बंद हो रही हैं।

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