यहां रसूख देखकर काम करता है पुलिस का कानून

पुलिस का कानून
  • मामला मंत्री पुत्र के मारपीट का….

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश सरकार द्वारा भले ही भोपाल में पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू की जा चुकी है, लेकिन इसका फायदा आम जनता को नहीं मिल पा रहा है। हालत यह है कि कानून व्यवस्था से लेकर यातायात तक की व्यवस्था से लोग त्रस्त बने हुए हैं। दरअसल भोपाल पुलिस व्यक्ति के रसूख को देखकर ही कार्रवाई करती है। इसका ताजा सबसे बड़ा उदाहरण मंत्री नरेन्द्र शिवाजी पटेल के पुत्र का है। इस मामले में जिस तरह से अब तक पुलिस ने कार्रवाई की है, उससे राजधानी के पुलिस अफसरों तक की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े होने लगे हैं। चुनावी आचार संहिता के बीच थाने पर प्रदर्शन, पुलिस कर्मचारियों को धमकी देना और एक मीडियाकर्मी की पिटाई के मामले में तो कोई प्रकरण दर्ज ही नहीं किया गया है, जबकि एक कैफे संचालक का सिर फोड़ने के मामले में सामान्य धाराएं लगाकर इतिश्री कर ली गई है। हद तो यह है कि इस मामले में आरोपी पक्ष की तरफ से भी पीड़ितों के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया गया है। सबसे अहम बात यह है कि एफआईआर में न तो आरोपी अभिज्ञान के मंत्री के पिता का नाम और न ही उसका पता लिखा गया है। दरअसल यह सब कारस्तानी एफआईआर में मंत्री का नाम न आने के लिए की गई है। आश्चर्यजनक बात यह है कि इस मामले में पुलिसकर्मियों के साथ अभद्रता करने और धमकी देने के मामले में कोई भी कार्रवाई नहीं की गई , उलटे ऐसे पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई कर दी गई, जिनके द्वारा और गंभीर मामला होने से बचाने का प्रयास किया गया। यही नहीं इस मामले में एक ऐसे पुलिसकर्मी को भी निलंबित कर दिया गया , जो मौके पर था ही नहीं। इस पूरे मामले के बाद भले ही पार्टी हाईकमान द्वारा स्वास्थ्य राज्य मंत्री नरेंद्र शिवाजी पटेल के बेटे की गुंडागर्दी पर नाराजगी दिखाई गई हो , लेकिन इससे न तो पीड़ित पक्ष को कोई राहत मिली है और न ही पुलिस कार्रवाई पर असर पड़ा है, ऐसे में आमजन चाहते हैं कि कुछ तो कार्रवाई होनी चाहिए। उधर, थाने से लेकर मारपीट वाले घटना स्थल तक पर सीसीटीवी कैमरे लगे हुए है, जिन्हें देखकर सच का तत्काल पता लगाया जा सकता है, लेकिन पुलिस अफसर जांच के नाम पर मामले को दबाने के लिए उसके ठंडा करने का इंतजार कर रहे हैं। उधर, अगर अभिज्ञान रसूखदार नहीं होता तो हत्या के प्रयास का प्रकरण दर्ज कर उसे तत्काल गिरफ्तार कर लिया गया होता और उस पर और उसके पिता पर भी कई मामले दर्ज कर लिए गए होते।
यह भी बनता है अपराध
प्रदेश सरकार के मंत्री नरेंद्र शिवाजी पटेल और उनके बेटे अभिज्ञान पटेल के मामले में पुलिस की कार्रवाई पर कई तरह के सवाल खड़े हो रहे हैं। पुलिस ने एफआईआर में मंत्री पिता का नाम और उनके निवास का पता तक जानबूझकर नहीं लिखा है। यही नहीं चुनावी आचार संहिता में अपराध धारा 353 और 188 का भी बनता है, जिसमें पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की। यह तब किया गया है जबकि मुख्य आरोपी खुद थाने में मौजूद था। आरोपी की पहचान भी हो गई थी। ऐसे में पुलिस की भूमिका पर सवाल खड़े होना लाजमी है।
मामूली धाराएं लगाई
मामले में रेस्टोरेंट की संचालक आलिशा सक्सेना का आरोप है कि मंत्री के दबाव में पुलिस ने साधारण धाराओं में केस दर्ज किया है। धारा 294, 324, 506, 34 के तहत मामला दर्ज हुआ है। इन धाराओं में 3 साल कारावास या जुर्माने की सजा है। जबकि, जान से मारने की कोशिश (307), महिला से अभद्रता (354) की धाराएं नहीं लगाईं गई हैं। यही नहीं अभिज्ञान के दोस्त की शिकायत पर रेस्टोरेंट संचालक दंपती और कुक के खिलाफ भी मामला दर्ज कर लिया गया है। जबकि धारदार हथियार, कुल्हाड़ी, बंदूक या लोहे की रॉड या छड़ी से हमले में चोट आती है या टांके लगे हों, हड्डी फ्रैक्चर हो तो आरोपी पर हत्या के प्रयास के तहत धारा 307 का केस दर्ज होता है। महिला के साथ मारपीट और अभद्रता पर 354 की धारा में मामला दर्ज होता है। यह बात अलग है कि ऐसे मामलों में चार्जशीट के बाद कोर्ट धाराएं बढ़ा सकता है। इसमें एमएलसी, सीसीटीवी फुटेज और गवाहों के बयान को आधार बनाया जा सकता है।

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