- नौरादेही अभयारण्य में शुरु करने की है योजना
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। मध्यप्रदेश ऐसा राज्य है, जिसे टाइगर स्टेट के साथ ही गिद्ध स्टेट का भी गौरव मिला हुआ है। इसकी वजह है दो साल पहले 2021 में की गई जनगणना। इसमें प्रदेश में 10 हजार से ज्यादा गिद्ध पाए गए थे। अब इन गिद्धों की देखरेख कर उन्हें संरक्षित करने और उनकी वृद्धि के लिए वन महकमे द्वारा उनके लिए सरकारी रेस्टोरेंट खोलने की योजना तैयार की गई है। इसमें उनके भोजन की व्यवस्था सरकारी पैसों से की जाएगी। इसमें उन्हें जानवरों का ताजा मांस परोसा जाएगा। इसके लिए वीरांगना दुर्गावती टाइगर रिजर्व यानी नौरादेही अभयारण्य का चयन किया गया है। परोसे जाने वाले मांस का पहला लैब में परीक्षण किया जाएगा। वन विभाग इस रेस्टोरेंट को नए वित्त वर्ष में शुरु करने की तैयारी कर रहा है। वन विभाग के अफसरों का इस मामले में कहना है कि यह योजना एक्शन प्लान-2030 के तहत तैयार की गई है। गौरतलब है कि नौरादेही अभयारण्य प्रदेश के सागर, दमोह और नरसिंहपुर जिले में फैला है। यह क्षेत्रफल के हिसाब से ये देश का सबसे बड़ा टाइगर रिजर्व है। इसे बीते साल ही टाइगर रिजर्व घोषित किया गया है। इसकी वजह है इस क्षेत्र में तेजी से बाधों की संख्या में वृद्धि हो रही है। बाघों के साथ ही गिद्धों को भी यहां की आबोहवा बेहद रास आ रही है। तीन साल पहले हुई गिनती में इस इलाके में गिद्धों की संख्या करीब 300 पाई गई थी। इसकी वजह से ही गिद्ध रेस्टोरेंट के लिए वन विभाग द्वारा टाइगर रिजर्व की नरसिंहपुर और डोंगरगांव रेंज का चयन किया गया है। इसके लिए करीब दो हेक्टेयर क्षेत्र में तारों की बाड़ लगाकर उसे सुरक्षित बनाया जाएगा। इससे मांस की गंध पाकर दूसरे जानवर नहीं आ सकेंगे। मांस के लिए आसपास की गोशाला से अनुबंध किया जा रहा है। वन अफसरों का कहना है कि अभी मवेशियों की मौत होती है तो उन्हें जमीन में दफनाया जाता है। इसके शुरु होने से मृत मवेशियों को रिजर्व में रखा जाएगा। इनके मांस की लैब में जांच करने के बाद ही उन्हें वल्चर रेस्टोरेंट में भेजा जाएगा।
डायक्लोफेनिक पामक दवा पड़ रही गिद्धों पर भारी: गिद्धों की आबादी कम होने की सबसे बड़ी वजह डायक्लोफेनिक दवा है। इसका उपयोग जानवरों के इलाज में होता है। टाइगर रिजर्व के अफसरों का कहना है कि गांवों में मवेशी रखने के पैटर्न में बदलाव आया है। गाय-भैंसों को होने वाली कुछ बीमारियों के इलाज के लिए डायक्लोफेनिक जैसी दवाएं इस्तेमाल की जाती हैं। ऐसे मवेशियों का शव खाना गिद्धों के लिए जानलेवा होता है। इसके इस्तेमाल पर 2006 में रोक लगा दी गई है। हालांकि, अभी भी ऐसी दवाइयां मवेशियों को दी जा रही हैं और ऐसे शवों का मांस खाने पर गिद्ध बीमार होकर मर जाते हैं। उनका कहना है कि गिद्ध कभी शिकार नहीं करते, वह केवल मरे हुए जीव ही खाते हैं।
यह बताया जा रहा है फायदा
विभाग का दावा है कि इससे वल्चर रेस्टोरेंट में गिद्धों को अच्छी क्वालिटी का मांस मिलेगा, जिससे उनकी फैट, मिनरल्स और कैल्शियम की जरूरतें पूरी होंगी। इसका सकारात्मक असर उनकी ब्रीडिंग पर पड़ेगा और उनकी संख्या में वृद्धि होगी। वल्चर रेस्टोरेंट को देश में सबसे पहले महाराष्ट्र के रायगढ़ में 2012 में शुरू किया गया था। जिसके नतीजे अच्छे पाए गए हैं। इसी तरह से पठानकोट के धारकला क्षेत्र की चंडोला खड्ड में भी वल्चर रेस्टोरेंट संचालित किया जा रहा है। इसकी वजह से वहां पर गिद्धों की 4 प्रजातियों सेबेरियुस वल्वर, हिमालयन वल्चर, ग्रिफ और व्हाइट रैपर्ड की संख्या में 10 गुना से ज्यादा बढ़ोतरी हुई है।
प्रदेश के इन जिलों में है सर्वाधिक गिद्ध
प्रदेश में कुल सात प्रजातियों के गिद्ध पाए जाते हैं। इनमें से चार स्थानीय और तीन प्रजाति प्रवासी हैं, जो शीतकाल समाप्त होते ही लौट जाते हैं। प्रदेश में सबसे अधिक गिद्ध पन्ना, मंदसौर, नीमच, सतना, छतरपुर, रायसेन, भोपाल, श्योपुर और विदिशा जिले में पाए गए हैं। प्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व में 2020-21 गणना के तहत प्रदेश भर में सबसे ज्यादा 722 गिद्ध मिले थे। इसके अलावा उत्तर वन मंडल में 438 और दक्षिण वन मंडल में 614 गिद्ध मिले थे। कूनो नेशनल पार्क में 381 और वीरांगना दुर्गावती टाइगर रिजर्व में 300 गिद्ध पाए गए थे।