अफसरों की लापरवाही पड़ रही स्मार्ट सिटी पर भारी

स्मार्ट सिटी
  • अधूरे कामों को पूरा करने फिर मिला 5 माह का समय

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र ऐसा राज्य है, जहां पर कोई भी सरकारी प्रोजेक्ट हो वो समय पर कभी पूरा नहीं होता है। फिर वह प्रोजेक्ट राज्य या केन्द्र सरकार का कितना भी महत्व वाला ही क्यों न हो। अहम बात यह है कि इस तरह के मामलों में संबंधित अफसरों पर सरकार व शासन भी कोई कार्रवाई नहीं करता है, जिसकी वजह से अफसरों की कार्यशैली सुधरने का नाम ही नहीं ले रही है।
अफसरों की ऐसी ही लापरवाही प्रदेशभर में स्मार्ट सिटी के कामों पर भी भारी पड़ रही है। इसकी वजह से न केवल इन कामों की लागत बढ़ रही है , बल्कि लोगों को भी होने वाली परेशानी से राहत नहीं मिल पा रही है। यही वजह है कि केन्द्र सरकार द्वारा इन कामों के लिए मोहलत पर मोहलत देनी पड़ रही है। इस बार केन्द्र सरकार ने पांच माह का समय और दिया है। इस अवधि में करीब छह अरब कीमत के कामों को जून माह तक पूरा करने को कहा गया है। दरअसल पहले चरण में प्रदेश के जिन शहरों को इस काम के लिए चुना गया था, उनके काम आठ साल में भी पूरे नहीं हो सके हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जून, 2015 को स्मार्ट सिटी मिशन लॉन्च किया था। इसके पहले चरण में भोपाल के साथ इंदौर और जबलपुर का चयन किया गया था। फिर उज्जैन, ग्वालियर, सागर और सतना का भी चयन कर लिया गया था। जिससे प्रदेश के इस योजना में चयनित शहरों की संख्या सात हो गई थी। इन शहरों को स्मार्ट बनाने के लिए केंद्र व राज्य से मिलने वाली ग्रांट से 6609 करोड़ रुपए के 640 प्रोजेक्ट की योजना तैयार की गई थी। इंदौर में 24 करोड़, जबलपुर में 436 करोड़, ग्वालियर के 523 करोड़, उज्जैन में 282 करोड़, सागर में 392 करोड़ और सतना में 764 करोड़ लागत के कार्य अभी अधूरे पड़े हुए हैं, जबकि भोपाल में भी यही हाल हैं। हद तो यह है कि यह काम अधूरे पड़े हुए हैं और जो काम स्मार्ट सिटी ने खुद के वित्तीय संसाधनों से भी तैयार किए थे, वे भी पूरे नहीं हो सके हैं।
यह हैं निर्माण कामों के हाल…
शहर का पहला स्मार्ट गवर्नमेंट हाउसिंग प्रोजेक्ट टीटी नगर दशहरा मैदान के समीप चल रहा है। वहां पर 186 करोड़ से 700 मकानों का निर्माण का काम आधा अधूरा पड़ा हुआ है। इसी तरह से गैमन इंडिया के पीछे 314 करोड़ की लागत से 1344 आवास बनाने काम भी कई माह से ठप्प पड़ा हुआ है। चार साल में भी यह काम पूरा नहीं हो सका है। इसमें भी खास बात यह है कि देरी के काम के एवज में भी ठेकेदार एजेंसी द्वारा लागत में बढ़ोतरी यानि एस्केलेशन की मांग तक कर डाली है। इसी तरह से पीएंडटी चौराहा के पास 700 मकानों का प्रोजेक्ट पर तो काम अब तक शुरु ही नहीं हो सका है। इसी तरह से टीटी नगर दशहरा मैदान को स्मार्ट बनाने का का भी पूरा नहीं हो सका है। हद तो यह है कि 78 करोड़ की लागत से 496 मकान और 344 दुकाने बनाने के लिए कोई डेवलपर तक की तलाश पूरी नहीं की जा सकी है।
भोपाल में ही 25 अरब के काम
शहर के टीटी नगर की 342 एकड़ जमीन स्मार्ट सिटी के लिए दी गई थी, वहां पर सरकारी बहुमंजिला इमारतों के साथ ही स्मार्ट रोड का निर्माण किया जा रहा है। इसके अलावा कॉमर्शियल कॉम्पलेक्स का काम भी जारी है। इनकी कुल लागत 2565 करोड़ रुपए  केंद्र और राज्य से ग्रांट के तौर पर मिला एक हजार करोड़ रुपए खर्च हो चुका है। अब शेष कामों के लिए राशि जुटाने के लिए विकसित किए बड़े प्लॉट बेचे जा रहे हैं। इससे 1200 करोड़ से अधिक जुटाने का लक्ष्य तय किया गया है। हाउसिंग बोर्ड के अलावा कुछ निजी डेवलपर द्वारा प्लॉट खरीदने के बाद भी कई प्लॉटों की बिक्री नहीं हो सकी है। इसकी वजह से राशि का प्र्याप्त इंतजाम नहीं हो पा रहा है।

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