- ग्वालियर-चंबल अंचल की सीटों पर लगाया जा रहा गणित
- गौरव चौहान
मप्र में इस बार रिकॉर्ड वोटिंग से सबका गणित गड़बड़ा गया है। खासकर ग्वालियर-चंबल अंचल की 34 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़े प्रत्याशियों की बेचैनी सबसे अधिक बढ़ी है। अचानक बढ़े वोट प्रतिशत ने राजनेता और और राजनीतिक विश्लेषकों को असमंजस में डाल दिया। दूसरा चौंकाने वाला तथ्य ये रहा कि ग्रामीण क्षेत्रो में अधिक वोट डले, जबकि शहरी क्षेत्र में कम लोग वोट डालने पहुंचे। जानकारों का कहना है कि अंचल की 25 सीटों पर जहां सीधा मुकाबला है, वहीं 9 सीटें फंसी हुई है।
गौरतलब है कि प्रदेश में मतदान प्रतिशत का आंकड़ा बढक़र 77.15 प्रतिशत पर पहुंच चुका है। इसके अभी आगे और बढ़ने की संभावना जताई जा रही है। वहीं ग्वालियर-चंबल अंचल में हुए मतदान का औसत 70 प्रतिशत तक रहा है और अधिकतर सीटों पर मतदाता का रुझान ईवीएम लॉक होने तक स्पष्ट नहीं था। ऐसे में जीत के दावे तो प्रत्याशी कर रहे हैं, लेकिन शत-प्रतिशत भरोसा कोई नहीं दिखा रहा। चंबल संभाग में भाजपा के दिग्गज नरेन्द्र सिंह तोमर अपने ही क्षेत्र में घिरे हुए दिख रहे हैं, जबकि कांग्रेस के दिग्गज डॉ गोविंद सिंह अपने ही पुराने मित्र की चुनौती का सामना कर रहे हैं। दूसरी ओर ग्वालियर संभाग में केपी सिंह को इस बार नए मतदाताओं की अपेक्षाओं पर खरा उतरने की चुनौती रही है। मतदान के बाद एक भी दिग्गज रिलेक्स नहीं दिखा है।
25 सीटों पर आमना-सामना
34 सीटों में से एक भी सीट पर एकतरफा मुकाबला नहीं दिख रहा। इस बार 25 सीटों पर 25 सीटों पर कांग्रेस और भाजपा के बीच आमने-सामने की टक्कर है। जबकि 2 सीटों पर मुकाबला त्रिकोणीय है। जबकि 7 सीटों पर जीत हार का अंतर बेहद कम रहने की संभावना है। विधानसभा-2023 के लिए भाजपा और कांग्रेस ने प्रचार के लिए आक्रामक रुख अपनाए रखा था। इसमें चंबल संभाग के जिलों में प्रचार का तरीका ज्यादा आक्रामक रहा है। जबकि ग्वालियर संभाग के जिलों में डिप्लोमेटिक कूटनीति और जातिगत समीकरणों को लेकर रणनीति बनाई गई थी। इस रणनीति में इस बार बसपा का भी महत्वपूर्ण रोल रहा है। कांग्रेस और भाजपा दोनों ही दल बसपा को एक दूसरे के लिए घाटा देने वाला वोट काटने का टूल मानकर काम करती रही है, जबकि अंदर खाने की खबर है कि लगभग हर सीट पर बसपा बहुत अधिक वोट शेयर नहीं करेगी। क्षेत्र के जिन मतदाताओं ने वर्ष 2018 में निर्णायक रूप से कांग्रेस के पक्ष में वोट किया था। वे उप चुनाव में उहापोह में रहे और वर्ष 2023 में असंतोष और उदासीनता के बीच फंसे रहे हैं। भाजपा के प्रति स्पष्ट असंतोष भी नजर आया और सरकार की कई योजनाओं को लेकर मतदाताओं में संतोष भी दिखा है। मतदान के बाद भी अधिकतर लोग चुप्पी साधे हैं। साथ ही यह भी कहते हैं कि बदलाव की जरूरत तो है। युवाओं की माने तो भाजपा हो या कांग्रेस एकतरफा जीत का दावा कोई पार्टी नहीं कर सकती। प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे इन युवाओं का कहना है कि विधानसभा में सीटों की संख्या नेक टू नेक रहने वाली है।
बराबरी का मुकाबला
अंचल की कई सीटों पर आकर्षक मुकाबला देखने को मिला। संभाग की श्योपुर, दिमनी, मुरैना, भिंड, दतिया, लहार, ग्वालियर पूर्व, ग्वालियर, शिवपुरी आदि सीटों पर जन मन को पढ़ना आसान नहीं रहा है। दिमनी में 15 साल बाद मतदान प्रतिशत कम रहा है। लगभग 4 प्रतिशत कम वोट डाले गए हैं। अगर बीते चुनावों की बात करें तो यहां से दो बार भाजपा, एक बार बसपा और एक बार कांग्रेस जीती है। श्योपुर बीते चुनाव में कांग्रेस ने अच्छे-खासे अंतर से भाजपा के प्रत्याशी को हराया था। इस बार जीत एकतरफा न होकर मुकाबले के साथ ही हार जीत का फैसला होगा। विजयपुर में वर्ष 2018 के चुनाव में कांग्रेस के दिग्गज प्रत्याशी को भाजपा के सामान्य प्रत्याशी से हार का दंश झेलना पड़ा था। इस बार मुकाबला कड़ा है। दिमनी में बीते चुनाव में कांग्रेस को सफलता मिली थी। इस बार संघर्ष त्रिकोणीय है। यहां भाजपा के दिग्गज को कांग्रेस और बसपा दोनों ही दल के प्रत्याशियों की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। लहार में पिछले सात विधानसभा चुनाव से कांग्रेस के दिग्गज को ही जन समर्थन मिलता रहा है। इस बार उनका सामना पुराने समय में मित्र रहे उनके बसपा से चुनाव मैदान में आए सजातीय प्रत्याशी से है। यहां भाजपा के प्रत्याशी को लगातार संघर्ष करना पड़ा है। दतिया में प्रदेश सरकार के गृहमंत्री का सामना पुराने क्षेत्रीय नेता से है। इस चुनाव को भाजपा छोड़कर कांग्रेस में गए पुराने नेता ने दिलचस्प बना दिया है। भाजपा के दिग्गज के साथ मुकाबला संघर्ष पूर्ण है। शिवपुरी में कांग्रेसी दिग्गज और पिछोर से लगातार अजेय रहे प्रत्याशी का सामना भाजपा के अपेक्षाकृत कमजोर प्रत्याशी से है। लेकिन आयातित प्रत्याशी को लेकर उपजे असंतोष ने चुनाव को आमने सामने के संघर्ष वाला बना दिया है। ग्वालियर की छह सीटों में से डबरा में त्रिकोणीय, भितरवार, ग्वालियर दक्षिण, ग्वालियर, ग्वालियर पूर्व और ग्वालियर ग्रामीण में आमने सामने का संघर्ष है।
सिंधिया-तोमर की प्रतिष्ठा दांव पर
ग्वालियर-चंबल अंचल के आठों जिलों में भाजपा के दिग्गज ज्योतिरादित्य सिंधिया और नरेंद्र सिंह तोमर की प्रतिष्ठा दांव पर है। मतदान प्रतिशत में बमुश्किल 3 प्रतिशत की बढ़ोतरी का औसत जनता की उदासीनता को भी सामने लेकर आया है। अब आने वाले तीन दिसंबर को तय होगा कि किसके वादों और इरादों पर मतदाताओं ने भरोसा जताया है। दरअसल, भाजपा की चिंता इस बात को लेकर भी बढ़ी हुई है कि बीते दो विधानसभा चुनावों में जनता ने जीत का औसत नीचे ला दिया था। इसमें से वर्ष 2013 में जहां भाजपा को 20 सीटें मिली थीं, वहीं वर्ष 2018 में यह आंकड़ा सिर्फ 7 सीटों तक सिमट गया। हालांकि, सिंधिया के भाजपा में आने के बाद उपचुनाव 2021 में भाजपा ने फिर से बढ़त हासिल की थी, लेकिन इसके साथ ही लोकल पॉलिटिकल लीडर्स ने रवैये से उपजा आक्रोश भी चिंता का कारण बना रहा है। इसी तरह कांग्रेस के नेताओं से लोग इस बात पर क्षुब्ध रहे हैं कि जनहित के मुद्दों को जन आंदोलन में बदलने में कांग्रेसी विफल रहे हैं। बीते उपचुनाव में जनता यह सबक दे भी चुकी है। इसके बाद से लगातार पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की क्षेत्र में सक्रियता और प्रियंका गांधी, राहुल गांधी जैसे नेताओं के दौरों ने माहौल तो बनाया लेकिन इसको कैश कराने के मामले में कांग्रेसी नेताओं को कितनी सफलता मिली है, यह साफ तौर पर नहीं कहा जा सकता।