- गौरव चौहान
मप्र की 230 विधानसभा सीटों के लिए 17 नवंबर को वोट डाले जाएंगे, वहीं वोटों की गिनती 3 दिसंबर 2023 को होगी। भाजपा ने जहां 228 सीटों पर अपने उम्मीदवार घोषित कर दिए हैं, वहीं कांग्रेस ने सभी 230 सीटों पर कैंडिडेट्स की लिस्ट जारी कर दी है। कांग्रेस और बीजेपी दोनों में उम्मीदवारों के ऐलान के बाद विरोध हो रहा है। मप्र की राजनीति में हालांकि वंशवाद की जड़ें बहुत गहरी हैं।
मप्र की राजनीति में भाजपा और कांग्रेस के कई नेताओं की कई पीढिय़ों ने राज किया है और इनका खासा दबदबा भी रहा। एक तरफ जहां आठ पूर्व मुख्यमंत्रियों अर्जुन सिंह, दिग्विजय सिंह, कैलाश जोशी, वीरेंद्र कुमार सखलेचा, बाबूलाल गौर, उमा भारती, गोविंद नारायण सिंह और सुंदरलाल पटवा के वंशज अभी भी चुनाव में सीधे तौर पर प्रत्याशी के रूप में उतरे हैं। वहीं, दो उपमुख्यमंत्री सुभाष यादव और जमुना देवी के वंशज भी चुनावी मैदान में हैं। पूर्व मुख्यमंत्रियों और उप मुख्यमंत्रियों के बेटे-परिवार के अलावा भी अनेक दिग्गज नेताओं के परिवार चुनावी मैदान में अपना दम दिखा रहे हैं। इसके साथ ही दर्जनों ऐसे नेता हैं, जो राजनीतिक घरानों से हैं और पूरे दमखम से सियासी मैदान में जुटे हैं। 40 से ज्यादा उम्मीदवार ऐसे हैं, जो पीढ़ी दर पीढ़ी चुनावी मैदान में हैं।
ओमप्रकाश सकलेचा: ओमप्रकाश राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री वीरेंद्र कुमार सकलेचा के बेटे हैं। ये नीमच जिले के जावद से चुनाव मैदान में हैं। वीरेंद्र कुमार साल 1977 में जनता पार्टी की सरकार बनने के बाद मुख्यमंत्री बने। उसके बाद 2003 में उमा भारती की अगुवाई में चुनाव लड़ा गया, तब इनके बिजनेसमैन बेटे ओम प्रकाश सकलेचा को पहली बार जावद से पार्टी का टिकट मिला और वह विधायक बने। तब से ये लगातार चुनाव लड़ रहे हैं। वे अभी सरकार में मंत्री हैं।
दीपक जोशी: दीपक प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी के बेटे हैं। दीपक साल 2003 में अपने पिता के क्षेत्र बागली से विधायक चुने गए। साल 2008 में हाटपिपलिया से चुनाव जीते। 2013 में फिर यहीं से जीते, लेकिन 2018 में हार गए। दीपक जोशी ने हाल ही में कांग्रेस का दामन थामा और कांग्रेस ने इन्हें खातेगांव से टिकट दिया है।
जयवर्धन सिंह: जयवर्धन पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के पुत्र हैं। जयवर्धन राघौगढ़ सीट से चुनाव मैदान में हैं। कमलनाथ सरकार में मंत्री भी रहे हैं। दो बार विधायक रह चुके हैं, इस बार तीसरे कार्यकाल के लिए चुनावी मैदान में उतरे हैं।
कृष्णा गौर: कृष्णा राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री स्व बाबूलाल गौर की पुत्रवधू हैं। बाबूलाल गौर के निधन के बाद भाजपा ने गौर की परंपरागत सीट गोविंदपुरा से टिकट दिया और चुनाव जीतीं। भाजपा ने इस बार भी इन्हें गोविंदपुरा विधानसभा क्षेत्र से टिकट दिया है।
अजय सिंह राहुल: पूर्व मुख्यमंत्री स्व अर्जुन सिंह के पुत्र हैं। वह चुरहट विधानसभा सीट से कांग्रेस प्रत्याशी हैं। पिछली बार इसी सीट पर शरदेंदु तिवारी से हार गए थे। वह लोक सभा चुनाव भी लड़ चुके हैं ,लेकिन हार गए थे। इसके अलावा भी ध्रुवनारायण सिंह, राज्यवर्धन सिंह, सुरेंद्र सिंह बघेल, निर्मला भूरिया, नितेंद्र सिंह राठौर, हेमंत कटारे, ऋषि अग्रवाल, लक्ष्मण सिंह, कमलेश्वर पटेल, संजय पाठक, हिना कांवरे जैसे कई नाम हैं।
राहुल लोधी: टीकमगढ़ जिले की विधानसभा सीट खरगापुर से पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती के भतीजे राहुल लोधी भाजपा प्रत्याशी है। राहुल ने 2018 में कांग्रेस की चंद्रा गौर को 11665 वोटों से चुनाव हराया था। 2013 में चंद्रा गौर ने राहुल को 5677 वोटों से हराया था। इस चुनाव में दोनों प्रत्याशी फिर आमने-सामने हैं। हालांकि यहां कांग्रेस के बागी अजय यादव एवं अन्य निर्दलीय चुनाव लड़ रहे है। जिसकी वजह से क्षेत्र के चुनावी समीकरण गड़बड़ाए हैं।
सुरेन्द्र पटवा: रायसेन जिले का विधानसभा क्षेत्र क्रमांक 141 भोजपुर राजधानी से सटा है। यहां से पूर्व मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा के दत्तक पुत्र सुरेन्द्र पटवा भाजपा के टिकट पर फिर चुनाव लड़ रहे हैं। वे 2003 से इसी सीट से विधायक चुनते आ रहे है। पिछला चुनाव उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी सुरेश पचौरी को 29486 वोटों से हराकर जीता था। इस बार कांग्रेस ने यहां से पूर्व मंत्री राजकुमार पटेल को चुनाव में उतारा है। इस बार यहां चुनाव में संघर्ष होता दिख रहा है। हालांकि कांग्रेस से बागी भी चुनाव मैदान में हैं।
ध्रुव नारायण सिंह: विधानसभा क्षेत्र क्रमांक 153 भोपाल मध्य से संविद सरकार में मुख्यमंत्री रहे गोविंद नारायण सिंह के बेटे ध्रुवनारायण सिंह चुनाव लड़ रहे हैं। वे 2008 में भी इसी सीट से कांग्रेस के नासिर इस्लाम को 2254 वोटों से हराकर विधायक बने थे। ध्रुवनारायण इस सीट से फिर भाजपा प्रत्याशी है। जबकि कांग्रेस से मौजूदा विधायक आरिफ मसूद मैदान में हैं। वहीं नासिर इस्लाम इस बार कांग्रेस से बागी होकर निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं। निर्दलीय प्रत्याशियों की वजह से क्षेत्र के चुनावी समीकरण बिगड़ गए हैं।