नेत्रियों पर पार्टियों को नहीं विश्वास

  • कुछ बगावत कर लड़ेंगी चुनाव, कुछ करेंगी अगली बारी का इंतजार
  • विनोद उपाध्याय
नेत्रियों

सत्ता के संग्राम में इस बार भाजपा और कांग्रेस ने तथाकथित तौर पर काफी जांच-परख के बाद टिकटों का वितरण किया है। इस कारण दोनों पार्टियों के जीत के फॉर्मूले पर कई नेत्रियां खरी नहीं उतरी हैं। इसलिए पार्टियों ने कई नेत्रियों को दरकिनार कर उनकी जगह पुरूषों को टिकट दे दिया है। पार्टी के इस रूख से कुछ नेत्रियों ने बगावत का रास्ता पकड़ लिया है और निर्दलीय या फिर किसी अन्य पार्टी से चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है। हालांकि कुछ नेत्रियां ऐसी भी हैं, जो पार्टी पर विश्वास करते हुए अगली बार के इंतजार में हैं। गौरतलब है की इसी साल संसद में महिला आरक्षण बिल पास हुआ है और लोकसभा तथा विधानसभाओं में 33 फीसदी आरक्षण का प्रावधान किया गया है। लेकिन मप्र में भाजपा और कांग्रेस ने 13 फीसदी महिलाओं को भी टिकट नहीं दिया है। 230 विधानसभा सीटों में से भाजपा ने 28 तो कांग्रेस ने 30 महिलाओं का टिकट दिया है। ऐसे में टिकट की चाह रखने वाली कई महिलाओं की मंशा पर पानी फिर गया है।
कांग्रेस में भी कई दरकिनार
इस बार के चुनाव में कई महिला नेत्रियों ने चुनाव लडऩे की मंशा पाल रखी थी। इनमें निशा बांगरे, मेघा परमार, रोशनी यादव सबसे अधिक चर्चा में रहीं। ये तीन हाई प्रोफाइल महिलाएं बड़ी उम्मीदों के साथ कांग्रेस में शामिल तो हुई, लेकिन कांग्रेस ने इन तीनों को चुनाव मैदान में नहीं उतारकर इनके मंसूबों पर पानी फेर दिया। कांग्रेस ने पहले तो प्रदेश की 230 सीटों पर उम्मीदवारों के नाम घोषित किए, इसके बाद सात सीटों पर उम्मीदवार भी बदले हैं, लेकिन तीनों महिलाओं को पार्टी ने चुनाव लड़ाने के लायक नहीं समझा। आखिर उम्मीद आपला सीट से निशा बांगरे की उम्मीदवारी को लेकर थी, लेकिन वह भी ध्वस्त हो गई। एक दिन पहले कमलनाथ ने कहा कि निशा बांगरे चुनाव नहीं लड़ेंगी। पार्टी उन्हें अहम जिम्मेदारी देगी। बीजेपी ने तीनों महिलाओं को टिकट नहीं देने कर तंज कसते हुए इसे कांग्रेस की महिला विरोधी मानसिकता बताया है, तो कांग्रेस का कहना है कि टिकट सर्वे के आधार पर तय हुए हैं। टिकट वितरण में सर्वे को मुख्य आधार बनाया गया था। कमलनाथ ने पहले ही स्पष्ट कर दिया था कि सर्वे के आधार पर जो नंबर वन पर रहेगा , उन्हें ही टिकट मिलेगा। सर्वे की वजह से कई नाम नहीं आ पाए हैं। वहीं, निशा बांगरे का इस्तीफा समय से मंजूर नहीं हुआ था, तब तक उम्मीदवार की घोषणा हो चुकी थी। गौरतलब है कि टिकट की चाह में निशा बांगरे ने सरकारी नौकरी का अलविदा कर दिया। वे बैतूल के आमला सीट से चुनाव लडऩे  की तैयारी कर रही थीं। कुछ समय पूर्व उन्होंने कहा था कि मैं चुनाव लडूंगी। अगले दिन उन्होंने कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण कर ली। इस बीच मंच से कमलनाथ ने कह दिया कि निशा चुनाव नहीं लड़ेंगी। हालांकि निशा ने यह नहीं कहा कि मैं चुनाव नहीं लडूंगी। उन्होंने कहा है कि पार्टी हमारे लिए कोशिश कर रही है। मैं पद की लालच में यहां नहीं आई हूं। प्रदेश में बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ की ब्रांड एंबेसडर पर्वतारोही मेघा परमार भी टिकट की आस में कांग्रेस में शामिल हुई थी। चर्चा थी कि वह सीहोर जिले के किसी सीट से चुनाव लड़ सकती हैं।
इसी आस में कमलनाथ के समक्ष वे कांग्रेस में शामिल हो गई थीं। कांग्रेस ने उन्हें नारी शक्ति सम्मान योजना का चेहरा भी बनाया। इसका नुकसान यह हुआ कि शिवराज सरकार ने मेघा परमार को ब्रांड एंबेसडर से हटा दिया। पूर्व राज्यपाल रामनरेश यादव की पौत्र वधु रोशनी यादव बीजेपी में थीं। वह निवाड़ी जिले में बीजेपी की उपाध्यक्ष और जिला पंचायत सदस्य हैं।  टिकट की चाहत में रोशनी यादव ने दल बदला और कांग्रेस में शामिल हुई थीं। उन्हें उम्मीद थी कि पार्टी टिकट देगी। रोशनी यादव को टिकट नहीं मिला। टिकट नहीं मिलने के बाद रोशनी यादव ने इंस्टाग्राम पर लिखा कि मेरे पूरे परिवार रूपी, जनता का आशीर्वाद सर्वोपरि है। उधर, भाजपा प्रवक्ता नरेंद्र सलूजा का कहना है कि कांग्रेस ने जिन महिलाओं से वादा किया था, उनके भी टिकट काट दिए हैं। ये लोग किसी अन्य महिलाओं को क्या बढ़ाएंगे। यह कांग्रेस की मानसिकता है। कांग्रेस ने सात टिकट बदल दिए हैं ,लेकिन उनके लिए नहीं बदले। अब कह रहे हैं कि आपकी प्रदेश को जरूरत है।
टूट गई भाजपा से टिकट की आस
सत्तारूढ़ भाजपा का पूरा फोकस सत्ता में बरकरार रहने पर है। इसके लिए उसने जिताऊ प्रत्याशियों का टिकट दिया है। इस कारण कई महिला नेत्रियां टिकट से वंचित रह गई हैं। भाजपा से टिकट नहीं मिलने वालों में पूर्व मंत्री रंजना बघेल का भी नाम शामिल हैं। उन्होंने गत दिनों भाजपा व निर्दलीय रूप से दो नामांकन पत्र जमा किए। नामांकन दाखिल करने के पूर्व पत्रकारों से चर्चा में उन्होंने भड़ास निकाली। उन्होंने कहा कि शिवराम का टिकट बदलकर उन्हें नहीं दिया तो वे निर्दलीय लड़ेंगी। रंजना ने कहा कि मैंने क्षेत्र में 30 सालों में भाजपा को मजबूत किया। अगर मुझे टिकट नहीं दिया तो मेरे साथ हजारों कार्यकर्ता भाजपा छोड़ेंगे। उन मु_ी भर लोगों पर कभी पार्टी ने कार्रवाई नहीं की जिन्होंने निर्दलीय खड़ा किया था। मैंने कीचड़ में कमल खिलाने का काम किया।  गुना की छछोरा सीट से बीजेपी विधायक ममता मीना को  टिकट नहीं मिला तो आम आदमी पार्टी में शामिल हो गई और अब आप की प्रत्याशी के रूप में भाजपा की प्रियंका के लिए मुसीबत बन सकती हैं। इसके अलावा छतरपुर विधानसभा क्षेत्र से पिछला चुनाव हार चुकी पूर्व नगर पालिका अध्यक्ष अर्चना सिंह भूमिका नहीं मिलने से नाराज हैं। उनके द्वारा शक्ति प्रदर्शन भी किया गया। भाजपा महिला मोर्चा की प्रदेश अध्यक्ष माया नारोलिया भी टिकट से वंचित रही हैं। वे होशंगाबाद से टिकट मांग रही थीं। नारोलिया पहले होशंगाबाद नगर पालिका की अध्यक्ष भी रही हैं और उनका अपना जनाधार भी है। इसके अलावा सोहागपुर विधानसभा क्षेत्र से टिकट मांग रही राजो मालवीय भी खुश नहीं बताई जा रही हैं। वे प्रदेश स्तर की नेत्री मानी जाती हैं। विधायक पन्ना प्रजापति रीवा जिले की आरक्षित मनगवां विधानसभा सीट से टिकट की प्रबल दावेदार मानी जा रही थीं। वर्तमान में उनके पति पंचूलाल प्रजापति भाजपा के विधायक हैं। टिकट नहीं मिलने से श्रीमती प्रजापति और उनके पति विधायक पंचलाल बेहद व्यथित हैं। उन्होंने आरोप लगाया है कि वर्तमान प्रत्याशी ने टिकट खरीदा है। वे भी निर्दलीय मैदान में कूदने की बात कर रही हैं।

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