दो विभागों में उलझा पोषण का आंकड़ा

 पोषण का आंकड़ा
  • मामला किशोरियों को पोषण देने का

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। मध्यप्रदेश राज्य भले ही अब बीमारू राज्यों से बाहर निकलकर विकसित राज्यों में आ गया हो , लेकिन अब भी प्रदेश उन छोटे राज्यों से पीछे चल रहा है, जो न केवल छोटे हैं बल्कि पिछड़े माने जाते हैं। ऐसा ही एक मामला है किशोरियों का पोषण देने के लिए संचालित योजना का। इस मामले में मप्र असम और उड़ीसा जैसे राज्यों से भी प्रदेश पीछे बना हुआ है। इसकी वजह है दो विभागों में समन्वय न होना।
इसका खुलासा आंकड़ों से हो जाता है। यह वो योजना है जिसे केन्द्र सरकार द्वारा चलाया जा रहा है, जिसमें प्रदेश पर आर्थिक भार भी नहीं आता है, इसके बाद भी हमारा प्रदेश इस मामले में पीछे चल रहा है। अगर आंकड़ों की बात करें तो मप्र में इस योजना के तहत इस साल के जुलाई माह तक 1.56 लाख किशोरियों को फायदा दिया गया है। मप्र की तुलना में असम में इसका फायदा पाने वाली किशोरियों की संख्या 1.78 लाख है। हद तो यह है कि प्रदेश में महिला एवं बाल विकास विभाग और राज्य शिक्षा केंद्र के बीच आंकड़े तक में अंतर बना हुआ है। इसकी वजह से यह योजना परवान नहीं चढ़ पा रही है। दरअसल केन्द्र सरकार द्वारा वर्ष 2017-18 में किशोरियों के लिए योजना लाई गई थी। इसमें देश के 303 अतिरिक्त जिलों को शामिल किया गया। योजनाओं का उद्देश्य था कि स्कूल छोड़ चुकी किशोरियों को पोषण आहार उपलब्ध कराना है।  
केंद्र ने अब नई योजना लांच की
केंद्र सरकार ने अब मिशन सक्षम आंगनबाड़ी और पोषण 2.0 योजना लॉन्च की है। इस योजना में प्रदेश के सिर्फ आठ आकांक्षी जिलों को शामिल किया गया है। इन जिलों में 14 से 18 वर्ष की किशोरियों के स्वास्थ्य और पोषण पर फोकस है। पोषण के तहत 300 दिन के लिए 14 से 18 वर्ष की आयु की किशोरियों को 600 कैलोरी, 18 से 20 ग्राम प्रोटीन और माइक्रो न्यूट्रिएंट्स वाला अनुपूरक पोषण दिया जाना है। यह योजना तीन माह पहले प्रदेश में लागू की है। इसमें 14-18 वर्ष की बालिकाओं को शामिल किया गया है। योजना सिर्फ आंकाक्षी जिलों में है।  इसके लिए फिलहाल पंजीयन का काम जारी है।
यह हैं हालात
अगर सरकारी आंकड़ों को देखें तो 2021 में प्राथमिक शिक्षा में स्कूलों में लडक़ों का नामांकन 39 लाख 42 हजार 871 और 36 लाख 21 हजार 229 लड़कियों का नामांकन था। जो 12वीं में 82 फीसदी तक कम हो गया। हायर सेकंडरी में लडक़ों की संख्या 7 लाख 60,517 और लड़कियों की 6 लाख 66 हजार 399 ही रह गई।

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