भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश सरकार को सबसे अधिक राजस्व देने वाले आबकारी विभाग को हर बार की तरह इस बार भी शराब ठेकेदारों ने अरबों रुपए की चपत लगाई है। दरअसल, ठेकेदारों ने फर्जी बैंक गारंटी लगाकर यह खेल खेला है। भोपाल में कलेक्टर की जांच में दो दुकानों का मामला सामने आने के बाद उनका लाइसेंस रद्द कर दिया गया है, वहीं प्रमुख सचिव वाणिज्यिक कर के पास शिकायत पहुंची है की रीवा जिले में कई दुकानें भी फर्जी बैंक गारंटी लगाकर ली गई हैं, जिससे सरकार को 500 करोड़ रुपए की चपत लगने का अनुमान है। गौरतलब है कि प्रदेश में सरकार और आबकारी विभाग शराब की खरीदी और बिक्री में पारदर्शिता लाने के लिए लगातार प्रयासरत हैं। लेकिन शराब का कारोबार करने वाले अपना खेल खेलने का रास्ता निकाल लेते हैं। इस बार रीवा जिले में शराब कारोबार में बड़ा फर्जीवाड़ा होने की आशंका है। करोड़ों की फर्जी बैंक गारंटी आबकारी विभाग को थमा दी गई। जिला सहकारी बैंक मोरबा सिंगरौली से जारी बैंक गारंटी ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। करीब 500 करोड़ के घोटाले का अंदेशा जताया गया है। इसकी शिकायत प्रमुख सचिव वाणिज्य कर विभाग और कमिश्नर रीवा संभाग रीवा से की गई है।
अधिकारियों के साथ मिलीभगत: जानकारी के अनुसार 500 करोड़ के इस संभावित घोटाले में शराब के कारोबार में ठेकेदार, आबकारी अधिकारी और सहकारी बैंक मैनेजर ने बड़ा खेल किया है। शराब दुकान के ठेके में जमा होने वाले बैंक गारंटी पर ही सवाल खड़े हो गए हैं।
सहकारी बैंक की बैंक गारंटी बिना मान्यता के ही जमा कर ली गई। इसमें भी एफडीआर और प्रापर्टी मॉड्रगेज नहीं कराया गया। बैंक गारंटी का खुलासा हुआ तो हडक़ंप मच गया है। आबकारी विभाग के जिला अधिकारी और मऊगंज सर्किल प्रभारी पर सवाल खड़े हो रहे हैं। इनकी भूमिका संदिग्ध मानी जा रही है। रीवा जिला के कई शराब दुकानों के लिए जमा की गई करोड़ों रुपए की बैंक गारंटी फर्जी बताई जा रही है। हालांकि इसकी जांच की मांग की गई है। दावा किया जा रहा है कि बैंक गारंटी की जांच की जाए तो कई सारे राज बाहर आ सकते हैं। राजपत्र में सहकारी बैंक की मान्यता नहीं होने के बाद भी बैंक गारंटी क्यों ली गई। महालक्ष्मी ग्रुप के ठेके कई सर्किल में हैं लेकिन एक ही सर्किल प्रभारी मनोज बेलवंशी से ही क्यों सत्यापन कराया गया। रीवा के रायपुर कर्चुलियान शराब दुकान में 24 घंटे के अंदर बैंक गारंटी कैसे बन गई, जबकि ठेका 26 मार्च को हुआ और 28 मार्च को बैंक गारंटी विभाग को प्रस्तुत की गई। बैंक ने सारे कागज में हाथ से लिखित सत्यापन को विभाग के अधिकारियों ने कैसे मान्य कर लिया। बैंक गारंटी बनाने के लिए शाखा प्रबंधक एवं बैंक की खुद की स्वीकृति की सीमा होती है।
500 करोड़ का घोटाला
गौरतलब है कि फर्जी बैंक गारंटी से ही अब तक ठेकेदार धड़ल्ले से शराब उठाते रहे और दुकानों का संचालन करते रहे। ऐसे में यदि शराब ठेकेदार भाग खड़े हुए तो शराब दुकान की फीस भी मिलना मुश्किल हो जाएगा। सहकारी बैंक से बनी बैंक गारंटी से करीब 500 करोड़ का फर्जीवाड़ करने का आरोप लगाया गया है। इस पूरे मामले की जांच की मांग की गई है। अधिवक्ता बीके माला ने कमिश्नर रीवा संभाग से शिकायत कर मामले की जांच की मांग की है। इसके अलावा एक शिकायत प्रमुख सचिव वाणिज्य कर विभाग से भी की गई है।