प्रदेश की सभी ट्राइबल सीटों को जीतने कांग्रेस का प्लान

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  • हारी सीटों पर सामाजिक युवाओं को टिकट देगी पार्टी

भोपाल/रवि खरे/बिच्छू डॉट कॉम। कांग्रेस 2023 के विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुट गई है। कांग्रेस का फोकस ट्राइबल सीटों पर रहेगा। पार्टी अपने सबसे पुराने वोट बैंक आदिवासियों पर फोकस कर रही है। इसके लिए कांग्रेस ने प्लान बनाया है कि 2018 में एसटी के लिए आरक्षित जिन सीटों पर पार्टी को हार का सामना करना पड़ा था, उन सीटों पर सामाजिक और सक्रिय युवाओं को टिकट दिया जाएगा। यानी इन सीटों पर राजनीतिक पृष्ठभूमि वालों पर दांव नहीं लगाया जाएगा। माना जा रहा है कि कांग्रेस का यह कदम आदिवासी क्षेत्रों में सक्रिय सामाजिक संगठनों की सक्रियता का फायदा उठाना है। गौरतलब है कि प्रदेश के आदिवासी बहुल क्षेत्रों में कई सामाजिक संगठन और युवा लोगों के बीच सक्रिय हैं।
साल 2018 में 15 साल बाद मप्र में कांग्रेस की सत्ता में वापसी की राह आदिवासी वर्ग के लिए सुरक्षित सीटों ने बनाई थी। पार्टी ने 47 में से 30 विधानसभा सीटें जीती थीं। नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनाव में इस प्रदर्शन को दोहराने के लिए प्रदेश कांग्रेस कुछ ऐसे व्यक्तियों पर दांव लगा सकती है, जो राजनीतिक पृष्ठभूमि से तो नहीं आते हैं लेकिन सामाजिक तौर पर सक्रिय हैं। निकाय चुनाव में पार्टी ने नए चेहरों पर दांव लगाने का प्रयोग किया था, जिसके सकारात्मक परिणाम मिले थे। पहली बार कांग्रेस के पांच महापौर बने। यही कारण है कि पार्टी ने वरिष्ठ नेताओं को आदिवासी क्षेत्रों में नए चेहरों को तलाशने के लिए कहा है। कांग्रेस ने 50 प्रतिशत प्रत्याशी युवा, अनुसूचित जाति-जनजाति, पिछड़ा वर्ग और महिलाओं को बनाने की कार्ययोजना बनाई है। इसके लिए सभी सहयोगी संगठनों के साथ विभिन्न क्षेत्रों के गणमान्य नागरिकों से सुझाव भी लिए जा रहे हैं।
17 सीटों पर सबसे अधिक फोकस
गौरतलब है कि वर्ष 2018 में कांग्रेस ने आदिवासी वर्ग के लिए सुरक्षित 47 सीटों में से 30 सीटें जीती थीं। ऐसे में इस बार पार्टी का सबसे अधिक फोकस उन 17 सीटों पर है, जो वह हार गई थी। पार्टी का प्लान है कि इन 17 सीटों पर सामाजिक पृष्ठभूमि वाले लोगों को उतारा जाए। गौरतलब है कि नगरीय निकाय चुनाव में पार्टी ने नए चेहरों पर दांव लगाने का प्रयोग किया था, जिसके सकारात्मक परिणाम मिले थे। वहीं पिछले चुनाव में पार्टी ने जय युवा आदिवासी शक्ति संगठन (जयस) के संरक्षक डा. हीरालाल अलावा को चुनाव लड़ाया था और वे विजयी रहे। 230 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस के 114 में से 49 विधायक पहली बार चुनकर विधानसभा पहुंचे थे। इसके बाद निकाय चुनाव में छिंदवाड़ा से विक्रम अहाके को महापौर पद के लिए मैदान में उतारा और वे भी जीते। इसी प्रयोग को पार्टी नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनाव में भी अजमाने की तैयारी में है। उधर, पार्टी जय युवा आदिवासी शक्ति संगठन (जयस) की गतिविधियों पर भी नजर रख रही है। जयस ने 80 विधानसभा क्षेत्रों में प्रत्याशी उतारने की घोषणा की है। जाहिर है कि आदिवासी वोटों के बंटवारे का नुकसान होगा क्योंकि 47 में से 30 सीटें अभी पार्टी के पास हैं। उधर, भाजपा ने भी आदिवासी क्षेत्रों में गतिविधियां बढ़ाई हैं। शिवराज सरकार ने पेसा कानून लागू करके यह संदेश देने का काम किया है कि वह आदिवासी वर्ग की सबसे अधिक हितैषी है।
कराया जा रहा क्षेत्रवार आंकलन
पिछले विधानसभा और नगरीय निकाय चुनाव की तर्ज पर कांग्रेस इस बार भी संभावित प्रत्याशियों की खोज के लिए क्षेत्रवार आंकलन करा रही है। इसके लिए पार्टी के वरिष्ठ नेताओं से जीत की संभावना वाले व्यक्तियों की पड़ताल कराई जा रही है। वहीं, सेवानिवृत्त अधिकारियों के माध्यम से आदिवासी क्षेत्रों में काम करने वाले गैर सरकारी संगठनों से भी जानकारी जुटाई जा रही है। इसमें ऐसे व्यक्तियों पर अधिक ध्यान दिया जा रहा है जो गैर राजनीतिक पृष्ठभूमि से आते हैं ,पर सामाजिक तौर पर सक्रिय हैं। इसमें वर्तमान और सेवानिवृत्त अधिकारी भी शामिल हैं। प्रदेश महामंत्री चंद्रिका प्रसाद द्विवेदी का कहना है कि आगामी विधानसभा चुनाव में पार्टी की जीत सुनिश्चित करने के लिए प्रदेश अध्यक्ष कमल नाथ सभी संभावनाओं पर काम रहे हैं। उन्होंने दावा किया कि आदिवासी क्षेत्र में हमारा प्रदर्शन पिछले चुनाव से बेहतर रहेगा। निश्चित तौर पर नए चेहरों को मौका दिया जाएगा।

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