- हरीश फतेहचंदानी
चुनावी साल में कर्मचारियों की पदोन्नति को लेकर जारी नाराजगी को दूर करने एक बार फिर से प्रदेश की शिवराज सरकार उनकी सेवावृद्धि करने पर गंभीरता से विचार कर रही है। हालांकि इसका कर्मचरियों पर कितना सकारात्मक असर पड़ेगा यह तो चुनाव के समय ही पता चल सकेगा , लेकिन यह तो तय है कि इससे कर्मचारी पूरी तरह से संतुष्ट नहीं हो सकते हैं। सरकार द्वारा अगर इस तरह का निर्णय लिया जाता है तो 7 साल से पदोन्नति का इंतजार कर रहे अधिकारी एवं कर्मचारियों को एक बार फिर बड़ा झटका लग सकता है। राज्य सरकार आने वाले समय में कर्मचारियों के हित में बड़ा फैसला लेने का मन बना चुकी है। मंत्रालय सूत्र बताते हैं कि पदोन्नति या सेवावृद्धि में से एक निर्णय होना तो लगभग तय है। साथ ही अन्य सभी तरह की मांगों पर भी विचार किया जाएगा। इसके लिए बाकायदा कर्मचारियों की मांगों को लेकर लिस्टिंग हो रही है। कर्मचारियों की कौन सी मांग को चुनाव से पहले पूरा किया जा सकता है, इस पर भी मंथन जारी है। दरअसल सरकार चाहती है कि किसी तरह से कर्मचारियों की नाराजगी दूर कर दी जाए, जिससे की चुनाव के समय किसी तरह का कोई नुकसान न हो। इस मामले में मप्र राज्य कर्मचारी कल्याण समिति के अध्यक्ष रमेश चंद्र शर्मा का कहना है कि सभी विभागों में प्रभारी बनाकर पदोन्नति दी जा रही है। इसलिए अब पदोन्नति कोई मसला नहीं है। शर्मा ने कहा कि कर्मचारी पुरानी पेंशन योजना को बहाल करने की मांग कर रहे हैं। इसको लेकर सरकार ने कमेटी बनाई है। हालांकि नया पदोन्नति नियम बनाने का मामला शासन स्तर पर विचारधीन है। सामान्य प्रशासन विभाग ने पिछले साल पदोन्नति का प्रस्ताव भेजा था, जो अभी तक लंबित है। इधर कर्मचारी संगठन पदोन्नति, पुरानी पेंशन योजना समेत अन्य मांगों को लेकर आंदोलन पर उतर आए हैं। प्रदेश में जून 2016 में मप्र हाईकोर्ट ने मप्र पदोन्नति नियम 2002 को खारिज कर दिया था। इसके बाद से प्रदेश में पदोन्नति का रास्ता पूरी तरह से बंद हो गया था। इस अवधि में हजारों की संख्या में कर्मचारी बिना पदोन्नति के सेवानिवृत्त हो गए। फिलहाल यह मामला सुप्रीम कोर्ट में अभी भी विचाराधीन है। हालांकि सर्वोच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को अपने स्तर पर पदोन्नति का रास्ता निकालने की सशर्त ढील दे दी है। इसके बाद राज्य सरकार ने पदोन्नति का समाधान करने के लिए गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा की अध्यक्षता में मंत्री समूह गठित किया था। जिसमें पांच मंत्री शामिल थे। इसके बाद पिछले साल मंत्री समूह ने कई बैठकें की, साथ ही अजाक्स एवं सपाक्स के कर्मचारी नेताओं से भी चर्चा की। बावजूद इसके अभी तक भी कोई समाधान नहीं निकला। सितंबर 2022 में सामान्य प्रशासन विभाग ने मंत्री समूह और कर्मचारी संगठनों की सिफारिशों के आधार पर पदोन्नति का प्रस्ताव मुख्यमंत्री के पास भेज दिया था। जिस पर अभी तक निर्णय नहीं हो पाया है। मंत्रालय सूत्र बताते हैं कि राज्य सरकार कर्मचारियों की प्रमुख मांगों पर जल्द समाधान करना चाहती है। जिसमें पदोन्नति, सेवावृद्धि, समयमान वेतनमान आदि शामिल हैं। कर्मचारी कल्याण समिति के अध्यक्ष रमेश चंद्र शर्मा बताते हैं कि कर्मचारियों से जुड़े सभी मामले मुख्यमंत्री के संज्ञान में है । इन पर जल्द निर्णय लिया जाना है।
कर्मचारी संगठनों से लिए जा चुके हैं सुझाव
सामान्य प्रशासन विभाग इस मामले में करीब छह माह पहले ही कर्मचारी संगठनों से पदोन्नति को लेकर सुझाव ले चुकी है। इसके लिए जीएडी ने बाकायदा कर्मचारी संगठनों को पदोन्नति का प्रोफार्मा भेजा था। हालांकि कितने कर्मचारी संगठनों ने जीएडी को प्रोफार्मा के आधार पर सिफारिशें भेजी है, यह कोई नहीं जानता है। मप्र राज्य कर्मचारी कल्याण समिति के सदस्य शिवपाल सिंह का कहना है कि सरकार को जल्द से जल्द कर्मचारियों की पदोन्नति जैसी जायज मांगों पर विचार करना चाहिए।