सरकार की संभावनाओं के चलते प्रभारी खुद के लिए चाहते हैं टिकट
गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश में आठ माह बाद होने वाले विधानसभा चुनावों को देखते हुए प्रदेश कांग्रेस के अधिकांश नेता अब संगठन के काम से मुक्ति चाहते हैं। इसकी वजह है वे खुद इस बार पार्टी का टिकट चाहते हैं। यह वे नेता हैं जो बीते करीब छह माह से जिलों में बतौर प्रभारी काम देख रहे हैं। इन नेताओं को प्रदेशाध्यक्ष कमलनाथ द्वारा दूसरे जिलों का प्रभारी बनाकर उन्हें संगठन को मजबूत करने से लेकर पार्टी के समय -समय पर काम मैदानी स्तर पर उतारने के साथ ही पार्टी की जीत के लिए माहौल बनाने का काम सौंपा गया था। दरअसल अधिकांश कांग्रेस नेताओं का मानना है कि प्रदेश में इस बार कांग्रेस की सत्ता में वापसी तय है और प्रदेश में बने माहौल में अगर उन्हें टिकट मिलता है तो फिर वे भी विधायक बन सकते हैं। यह बात अलग है कि इस बार चुनावी परिणाम क्या होंगे अभी कोई कुछ भी नहीं कह सकता है। फिलहाल जीत की संभावनाओं को देखते हुए कांग्रेस में अभी से दावेदार टिकट पाने के लिए पूरी ताकत लगाने में लग गए हैं, लेकिन उनके सामने सबसे बड़ा संकट जिला प्रभारी का दायित्व बना हुआ है, जिसके चलते वे अपनी गृह विधानसभा सीट पर अधिक समय नहीं दे पा रहे हैं, साथ ही टिकट के लिए भी पूरी तरह से खुलकर लाबिंग नहीं कर पा रहे हैं। दरअसल, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं को करीब छह महीने पहले जिला प्रभारी की जिम्मेदारी सौंपी थी। उन्हें संबंधित जिले की सभी विधानसभा सीटों पर मंडलम, सेक्टर व बूथ के गठन से लेकर चुनाव संबंधी सभी तैयारियां देखना है और इसकी रिपोर्ट कमलनाथ को सौंपना है। चूंकि जिले की जिम्मेदारी महत्वपूर्ण है, इसलिए उसे हल्के में नहीं लिया जा सकता। चुनाव का वक्त जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है, कई जिला प्रभारियों का मन प्रभार के जिले में लगना कम होता जा रहा है। उन्हें डर है कि यदि वे अपने प्रभार के जिले में पूरा समय देते रहे, तो उनके विधानसभा क्षेत्र का क्या होगा? यही वजह है, कि कई जिला प्रभारी पद छोडऩे का मन बना रहे हैं। दतिया जिले के प्रभारी व विधायक कमलेश्वर पटेल और बालाघाट जिले के प्रभारी व विधायक तरुण भनोत पहले ही जिलों का प्रभार छोडक़र पूरी ताकत से अपने-अपने विधानसभा क्षेत्रों में सक्रिय बने हुए हैं। हालांकि टिकट के दावेदार जिला प्रभारियों ने पहले से अपने परिवार वालों को संबंधित विधानसभा क्षेत्र में सक्रिय कर रखा है।
यह जिला प्रभारी भी टिकट के दावेदार
भोपाल के जिला प्रभारी मुकेश नायक पन्ना जिले की पबई विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं। चुनाव के करीब आने के साथ ही नायक ने पबई क्षेत्र में पूरी ताकत झोंक दी है। नायक का कहना है कि वे टाइम मैनेजमेंट और टेक्नोलॉजी का उपयोग कर भोपाल के साथ ही पबई में भी बराबर समय दे रहे हैं। इसमें कहीं कोई दिक्कत नहीं है। इसी तरह से सागर के जिला प्रभारी अवनीश भार्गव भोपाल के हुजूर विधानसभा क्षेत्र से टिकट के लिए दावेदारी कर रहे हैं। जिले का प्रभार मिलने के साथ ही भार्गव को पूरा समय सागर में देना पड़ रहा है, इसलिए वे चाहकर भी हूजूर विस क्षेत्र में पर्याप्त समय नहीं दे पा रहे हैं। उधर, टीकमगढ़ के जिला प्रभारी चंद्रिका प्रसाद द्विवेदी छतरपुर जिले की महाराजपुर सीट से टिकट की दावेदारी कर रहे हैं। वे प्रदेश महासचिव हैं और उनके पास हाथ से हाथ जोड़ो अभियान का भी प्रभार है, इसलिए वे चाहकर भी महाराजपुर क्षेत्र में सक्रिय नहीं हो पा रहे हैं। ग्वालियर जिले के प्रभारी महेंद्र सिंह चौहान भोपाल की नरेला विस क्षेत्र से टिकट के दावेदार हैं। चुनाव लड़ने के लिए तैयार हैं। उन्हें संगठन में प्रदेश उपाध्यक्ष का पद भी दिया गया है। अभी वे ग्वालियर के साथ नरेला में भी सक्रिय हैं। चौहान पीसीसी में भी पर्याप्त समय देते हैं। नर्मदापुरम जिले के प्रभारी संजय शर्मा तेंदूखेड़ा सीट से विधायक हैं। प्रभार के जिले के साथ ही अपने विस क्षेत्र में समय देने में उन्हें परेशानी हो रही है। इसी तरह से जबलपुर के जिला प्रभारी सुनील जैन सागर और देवरी सीट से टिकट के दावेदार हैं। जैन का कहना है कि वे जबलपुर के साथ ही सागर व देवरी में बराबर सक्रिय हैं। जबकि श्योपुर जिले के प्रभारी दिनेश गुर्जर मुरैना सीट से टिकट के लिए दावेदारी कर रहे हैं। गुर्जर का कहना है कि वे प्रभार के जिले में पूरा समय दे रहे हैं। मुरैना में भी सक्रिय हैं, टिकट देने या नहीं देने का फैसला पार्टी को करना है। छिंदवाड़ा जिले के प्रभारी नरेश सर्राफ सागर सीट से टिकट के दावेदार हैं। जैन का कहना है कि वे उन्हें सौंपी गई जिम्मेदारी पूरी ईमानदारी से निभा रहे हैं। पीसीसी चीफ कमलनाथ आदेश देंगे, तो वे किसी भी सीट से चुनाव लडऩे को तैयार हैं। बैतूल की जिला प्रभारी सविता दीवान शर्मा सोहागपुर सीट से टिकट के लिए दावेदारी कर रही हैं। फिलहाल वे बैतूल और सोहागपुर दोनों जगह सक्रियता बनाए हुए हैं।
अधिकांश नेता हैं पूर्व विधायक
जिलों के प्रभारी बनाए गए पार्टी के इन नेताओं में अधिकांश नेता पूर्व में भी विधायक रह चुके हैं। इसकी वजह से उनकी दावेदारी अधिक पुख्ता बनी हुई है। यह बात अलग है कि इनमें से कुछ को बीते चुनाव में टिकट नहीं मिला था या फिर वे बीता चुनाव हार चुके हैं। इनमें से अधिकांश नेताओं का मानना है कि अगर पार्टी उन्हें इस बार प्रत्याशी बनाती है तो उनकी जीत की संभावनाएं अधिक हैं।