दीदी मां का… 17 जिलों में प्रभाव

  • हरीश फतेहचंदानी
दीदी मां

प्रदेश में 51 फीसदी वोट के साथ भाजपा ने 200 से अधिक सीटें जीतने का जो लक्ष्य बनाया है, उस पर पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती का बगावती सुर भारी पड़ सकता है। इसकी वजह है उनका प्रदेश के 17 जिलों में प्रभाव होना। गौरतलब है कि उमा भारती की शराब बंदी, तो कभी राम, तो कभी गाय, तो कभी जाति को लेकर भाजपा पर लगातार हमलावर हैं। इससे प्रदेश में भाजपा के खिलाफ माहौल बन रहा है। वहीं उमा भारती की इस बगावत को प्रदेश का सबसे बड़े वोट वाला ओबीसी समाज अपनी उपेक्षा मानने लगा है। खासकर लोधी समाज तो उमा भारती के साथ खड़ा है। ऐसे में भाजपा को उमा प्रदेश के 17 जिलों के तहत आने वाली करीब 50 सीटों पर नुकसान पहुंचा सकती हैं। वैसे भी भाजपा को इस बार के विधानसभा चुनाव में कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। लेकिन, सबसे बड़ी चुनौती  है उमा भारती का बदलता नजरिया।
अब वे खुलकर मैदान में आने की तैयारी में हैं। चुनावी साल में मप्र की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती के बगावती सुर भाजपा के लिए मुश्किलें खड़ी करते नजर आ रहे हैं। उमा भारती सरकार चला चुकी हैं और जानती हैं कि शराबबंदी लागू करना आसान नहीं है। इसके बावजूद शराबबंदी के जरिए भाजपा सरकार को घेरने में जुटी है। उमा का यह बागी रुख भाजपा को नुकसान पहुंचा सकता है? उमा भारती लोधी समुदाय से आती हैं, जो बुंदेलखंड और निमाड़ के 17 जिलों में काफी प्रभावी हैं। मध्य प्रदेश विधानसभा के करीब 50 सीटों पर लोधी वोटर्स असरदार हैं। इसी वजह से भाजपा के नेता उमा के खिलाफ सीधे बयानबाजी से परहेज कर रहे हैं। जानकारों का कहना है कि अगर उमा शराबबंदी अभियान के जरिए 6 महीने में अपनी छवि बनाने में फिर से कामयाब रहती हैं, तो भाजपा को नुकसान होना तय है। बुंदेलखंड और निमाड़ इलाकों में उमा की पकड़ अभी भी मजबूत है और शराबबंदी अभियान से सीधे तौर पर महिलाएं जुड़ी हैं।
भाजपा के सामने दुविधा की स्थिति
उमा भारती की राजनीति का अपना एक अलग तरीका है। वे भाजपा का सामने खड़े होकर विरोध न करके भी भाजपा के खिलाफ परोक्ष रूप से दांव चल रही हैं। वे भाजपा के उस राम अभियान’ को भी चोट पहुंचा रही हैं, जो पार्टी की सबसे बड़ी ताकत है। उन्होंने यहां तक कहा कि राम और हनुमान भाजपा के कॉपीराइट नहीं हैं। यह दोनों भगवान पुरातन काल से हिंदुओं की आस्था के प्रतीक रहे हैं और इन्हें भाजपा ने नहीं बनाया। उन्होंने अपनी बात साबित करने के लिए कई तर्क दिए। जहां तक तर्कों की बात है, उमा भारती के सामने कोई खड़ा नहीं हो सकता। क्योंकि, वे बचपन से धार्मिक प्रवचनकार रही हैं। इसलिए उन्हें वे सारे धार्मिक ग्रंथ कंठस्थ हैं, जिनके आधार पर वे कभी भी किसी से भी बहस कर सकती हैं। उन्होंने यह भी कहा कि जब कांग्रेस के लोगों ने राम मंदिर के लिए चंदा दिया और भाजपा के लोगों ने उसका विरोध किया था, तब सबसे पहले मैंने ही कहा था कि राम सबके हैं राम के भक्त कहीं भी हो सकते हैं।
सोची-समझी राजनीतिक रणनीति
निस्संदेह यह उमा भारती की सोची-समझी राजनीतिक रणनीति का हिस्सा है। पिछले दिनों उमा भारती ने अपने समाज के एक कार्यक्रम में संदर्भ से अलग हटकर वहां मौजूद लोगों से कहा कि वे उनके कहने से भाजपा को वोट न दें! उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि वे पार्टी से बंधी हैं, इसलिए वे तो भाजपा को वोट देने के लिए कहेंगी, लेकिन उन्हें जिस भी पार्टी को देना है, उनको वोट दें। इसका सीधा-सा मतलब समझा जा सकता है कि वे मध्यप्रदेश के 9 फीसदी लोधी वोटरों को भाजपा से काटना चाहती हैं, जो अभी तक भाजपा के साथ रहे हैं। जिसके पीछे उमा भारती रही हैं। चुनावी साल में उनका ये मुद्दा अंडर करंट बन सकता है। उमा भारती के इस अभियान को महिलाओं का समर्थन मिल रहा है। भाजपा का मजबूत माना जाने वाला महिला वोट बैंक यदि उससे छिटका तो बदलावकारी हो सकता है। ऐसा माना जाता है कि टीकमगढ़ और बुंदेलखंड के स्थानीय राजनीति में भी उमा भारती का सियासी वजूद शून्य में पड़ गया था। भतीजे राहुल लोधी के खिलाफ हाईकोर्ट के फैसले के बाद वहां की परिस्थितियां भी सही नहीं है। उनकी नाराजगी की वजह मानी जा रही है संन्यास लेने के बाद हाईकमान से पूछ नहीं होना है। दरअसल, उमा इस उम्मीद में थी कि सक्रिय राजनीति से संन्यास लेने के बाद उन्हें किसी संवैधानिक पद पर भेजा जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। वे अब शराबबंदी के मुद्दे को आगे कर अपना चेहरा चमकाने की कोशिश कर रही हैं। हिंदुत्व की फायर ब्रांड चेहरा होने की वजह से उमा को इसमें फुटेज भी मिल रहा है।
लगातार परेशानी खड़ी कर रही हैं उमा
पार्टी के अंदर सुलग रहीं उमा भारती लंबे समय से अलग-अलग तरीकों से भाजपा को परेशान करने में लगी हैं। वे न सिर्फ संगठन को, बल्कि सरकार को भी वे अपने शराबबंदी अभियान से परेशान कर रही हैं। कई बार उन्हें शराब की दुकानों पर पत्थर चलाते देखा जाता है। उमा ने बागी रुख अख्तियार करते हुए कहा है कि शराबबंदी नहीं हुई तो आगे जो होगा, वो सब देखेंगे। उमा की चेतावनी पर जब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से भोपाल में सवाल पूछा तो वे जवाब देने के बजाय सिर्फ मुस्कुरा दिए। उमा और शिवराज के बीच सियासी द्वंद नया नहीं है, लेकिन चुनावी साल में उनके बागी रुख से हाईकमान की टेंशन जरूर बढ़ सकती है। 22 दिसंबर 2022 को उमा ने कहा था कि भाजपा के लोग यूपी और एमपी के चुनाव में मेरा फोटो दिखाकर लोधियों से वोट मांगते हैं। आम दिनों में मेरी तस्वीर पोस्टर पर नहीं लगाया जाता है, लेकिन चुनाव में जरूर लगता है। 28 दिसंबर 2022 को कहा था कि मैं चुनाव में वोट मांगने जरूर आऊंगी, लेकिन मैं यह नहीं कहूंगी की लोधियों तुम बीजेपी को वोट दो। आप सभी लोग मेरी तरफ से राजनीतिक बंधन से पूरी तरह से आजाद हैं। 2014 में बीजेपी की बंपर जीत के बाद उमा भारती को मोदी कैबिनेट में गंगा सफाई और जल विभाग का मंत्री बनाया गया। उमा इसके बाद मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश की स्थानीय राजनीति से दूर होती गईं। 2018 में उन्होंने राजनीति से संन्यास लेने का ऐलान कर दिया। इस वजह से 2019 लोकसभा चुनाव में उन्हें पार्टी ने टिकट भी नहीं दिया। संन्यास की घोषणा के बाद कुछ साल तक उमा राजनीति से दूरी बना ली, लेकिन अब फिर सक्रिय हो गई हैं।

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