आईपीएस की भर्राशाही पुलिस विभाग में पड़ी भारी

आईपीएस

-कार्यवाहक बनाने की प्रक्रिया में हो रही है देरी ..

भोपाल/अपूर्व चतुर्वेदी/बिच्छू डॉट कॉम। पिछले 6 साल से आरक्षण पर रोक के कारण पदोन्नति नहीं होने के बाद पुलिस विभाग में खाली पड़े पदों को भरने के लिए उच्च पद का प्रभार (कार्यवाहक) देने की प्रक्रिया शुरू की गई थी लेकिन आईपीएस अधिकारियों की लालफीताशाही और भर्राशाही के कारण प्रक्रिया पर ब्रेक सा लग गया है। आलम यह है कि उच्च पदों की चाह और पात्रता रखने वाले पुलिस अधिकारी आईपीएस अफसरों के रूख का इंतजार कर रहे हैं। गौरतलब है कि पुलिस विभाग में मैदानी अमले की कमी थी। अपराधों की विवेचना करने वाले अधिकारियों का भी भारी टोटा था।  उल्लेखनीय है कि पदोन्नति अच्छा सर्विस रिकार्ड रखने वाले कर्मचारियों का अधिकार है, लेकिन यह हक मिलेगा? यह आला अफसरों की मर्जी पर निर्भर होता है। पुलिस महकमे में निचले अमले पर तो यही फार्मूला लागू होता है। शायद! यही वजह है कि पुलिस विभाग में खूब तेजी से शुरू की गई कार्यवाहक बनाने की प्रक्रिया पर ब्रेक सा लग गया है। खुद की पदोन्नति के लिए समय से पहले डीपीसी करा लेने वाले आईपीएस अफसर निचले अमले को कार्यवाहक बनाने को भी तैयार नहीं हैं।
बड़े-बड़े दावों के बाद प्रक्रिया थमी
पदोन्नति में आरक्षण का मामला सुप्रीमकोर्ट में लंबित होने की आड़ में साल 2016 से तकरीबन सभी विभागों में पदोन्नति बंद है। कर्मचारी सेवानिवृत्त हो रहे हैं, लेकिन उन्हें पदोन्नति नहीं मिल रही है। पुलिस विभाग में मैदानी अमले की कमी थी। अपराधों की विवेचना करने वाले अधिकारियों का भी भारी टोटा था। इसके लिए पुलिस महकमे ने उच्च पद का प्रभार देने की प्रक्रिया शुरू की थी। जब प्रक्रिया शुरू की गई थी, तब सरकार से लेकर पीएचक्यू तक ने बड़े-बड़े दावे किए थे। तकरीबन सभी रिक्त पदों को भरने के लिए उस समय एक सूची जारी भी की गई थी, लेकिन उसके बाद रफ्तार पर ब्रेक लग गया है। पुलिस विभाग में उच्च पद का प्रभार पाने वाले तकरीबन सभी पदों के कर्मचारियों को समय पर पदोन्नति नहीं मिल रही है।
एसआई के हजार से ज्यादा पद रिक्त
मिली जानकारी के अनुसार सबसे ज्यादा दिक्कत सहायक उप निरीक्षक (एएसआई) स्तर के अधिकारियों की पदोन्नति में आ रही है।  एसआई के तकरीबन हजार से ज्यादा पद रिक्त हैं, उसके बावजूद एएसआई को उच्च पद का प्रभार नहीं सौंपा जा रहा है। पुलिस मुख्यालय ने एएसआई को एसआई का उच्च पद का प्रभार देने की पहली सूची 30 मार्च 2021 को जारी थी। पहली सूची में 1225 नाम थे। दूसरी सूची 29 जून 2021 को जारी की गई थी। दूसरी सूची में 283 नाम थे। दोनों को मिलाकर 1508 एएसआई को उच्च पद का प्रभार सौपा गया था। यह पदोन्नति एक जनवरी 2019 की स्थिति में जारी की गई पदक्रम सूची के आधार पर दी गई थी, जिसमें 2102 नाम थे। सूची में शामिल 1508 एएसआई को पदोन्नति देकर एसआई बनाया गया था। बाकी एएसआई के पद से सेवानिवृत्त हो गए थे। जिन पंद्रह सौ एएसआई को एसआई बनाया गया था, उसमें भी लगभग 400 सेवानिवृत्त हो चुके हैं। पीएचक्यू ने जून 2021 में सूची जारी करने के बाद 6 जनवरी 2022 से मार्च 2022 के बीच तीन बार जिलों के एसपी को पत्र लिखा और एएसआई स्तर के गैर राजपत्रित अधिकारियों का सेवा विवरण अविलंब भेजने का आदेश दिया था। जिलों से जानकारी आ भी गई, लेकिन तीन बार रिकार्ड बुलाने के बावजूद उच्च पद का प्रभार दिए जाने संबंधी सूची जारी नहीं की गई है। तकरीबन डेढ़ साल हो गए हैं, बावजूद एएसआई स्तर के अफसरों को पदोन्नति नहीं मिली है। ऐसा नहीं है कि विभाग के पास पद नहीं है? पद भी रिक्त हैं, लेकिन सूची जारी नहीं होना आला अफसरों की मर्जी पर निर्भर है।
डिमोशन वालों को भी प्रमोशन
 सुप्रीम कोर्ट के 12 जून 2016 के निर्णय के अनुसार जिन आरक्षित वर्ग के सरकारी कर्मचारियों अधिकारियों की अवैध पदोन्नति को निरस्त करके डिमोशन होना था, उनको ही रिव्यू डीपीसी के नाम पर प्रमोशन दिया जा रहा है। राज्य सरकार बार- बार सुप्रीम कोर्ट से पदोन्नतियों पर रोक लगाए जाने का झूठ बोल रही है, जबकि सुप्रीम कोर्ट ने सिर्फ पदोन्नति नियम-2002 के आधार पर पदोन्नति में आरक्षण का अवैध फायदा उठाकर प्रमोशन लेने वालों को ही आगे प्रमोशन देने से रोका है। सामान्य, पिछड़ा और अल्पसंख्यक वर्ग को पदोन्नति देने से नहीं रोका है। यह कहना है सपाक्स (सामान्य, पिछड़ा सामान्य, पिछड़ा  एवं अल्पसंख्यक वर्ग अधिकारी कमर्चारी  संस्था) के संस्थापक अध्यक्ष डॉ. केदार सिंह तोमर का । इनका कहना है कि 30 अप्रैल 2016 को पदोन्नति में आरक्षण नियम पर हाई कोर्ट जबलपुर ने पदोन्नति में आरक्षण को अवैधानिक घोषित करते हुए आरक्षित वर्ग के कमर्चारियों अधिकारियों को पदावनत करने के आदेश दिए थे। बावजूद उच्च न्यायालय के निर्णय का पालन करने नहीं किया गया और सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर करके स्थगन मांगा गया, लेकिन 12 जून 2016 को सरकार की स्थगन की मांग ठुकराते हुए यथास्थिति बनाए रखने का निर्देश दिया था। तभी से इस अंतरिम आदेश की आड़ लेकर राज्य सरकार ने स्वर्ण वर्ग ओर अल्पसंख्यकों के प्रमोशन रोक रखे हैं।

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