नई दिल्ली/बिच्छू डॉट कॉम। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि कर्मचारी राज्य बीमा (ईएसआई) कानून, 1948 की उदार व्याख्या की जानी चाहिए। शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि इसकी इस तरह से व्याख्या की जानी चाहिए ताकि कर्मचारियों को सामाजिक सुरक्षा दी जा सके। जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस सीटी रविकुमार की पीठ तेलंगाना हाईकोर्ट के फरवरी 2021 के फैसले के खिलाफ ईएसआई निगम की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। पीठ ने कहा, इस कानून की कोई भी व्याख्या ऐसी दी जानी चाहिए जो कर्मचारी के हित में हो, क्योंकि यह अधिनियम एक सामाजिक कल्याण कानून है। शीर्ष अदालत ने हाईकोर्ट के फैसले को रद्द करते हुए ईएसआई निगम की मांग नोटिस को बहाल कर दिया।
मामले के अनुसार हाई कोर्ट ने कर्मचारी बीमा अदालत के दिसंबर 2010 के फैसले को रद्द कर दिया था, जिसने ईएसआई निगम की ओर से एक सिनेमा थियेटर को अगस्त 1994 में जारी किए गए मांग नोटिस को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि थियेटर 1981 से चल रहा था और उसने सितंबर 1989 तक ईएसआई योगदान भी दिया। उसके बाद थियेटर में कर्मचारियों की संख्या 20 से कम हो गई और उसने ईएसआई योगदान देना बंद कर दिया, जिसके बाद उसे मांग नोटिस जारी किया गया था।
सुप्रीम कोर्ट ने माना कि अधिनियम की धारा 1 की उपधारा (6) को जोड़ने से पहले ईएसआई के तहत वही फैकटरी या संस्थान आते थे जहां 20 से ज्यादा कर्मचारी काम करते थे। लेकिन, पीठ ने कहा, इस उपधारा को जोड़ने के बाद 20 अक्तूबर, 1989 से व्यापक बदलाव आया और संशोधित प्रावधान के तहत किसी फैक्ट्री या प्रतिष्ठान जिस पर ईएसआई अधिनियम लागू होता है, ईएसआई कानून के तहत शासित होगा, भले ही किसी भी समय उसमें काम करने वाले कर्मचारियों की संख्या ईएसआई कानून के तहत निर्धारित सीमा से कम ही क्यों न हो।
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को आंध्र प्रदेश सरकार को बड़ा झटका देते हुए उसके राष्ट्रीय राजमार्गों सहित सड़कों पर जनसभाओं और रैलियों के आयोजन पर रोक की याचिका पर विचार करने से इन्कार कर दिया। सरकार के इस आदेश को हाईकोर्ट ने निलंबित कर दिया था। इसके बाद सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंची थी। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की अपील फिर से आंध्र हाईकोर्ट को वापस भेज दी। आंध्र प्रदेश सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सीएस वैद्यनाथन की दलीलों पर गौर करते हुए सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की पीठ ने याचिका को वापस भेजते हुए इस पर हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली खंडपीठ से सुनवाई सुनिश्चित करने का अनुरोध किया।