पूरे चुनावी रंग में कांग्रेस

कांग्रेस

कमलनाथ का सबसे अधिक फोकस ग्वालियर चंबल पर

गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र में आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर प्रदेश कांग्रेस संगठन में जल्द ही बड़े बदलाव हो सकते हैं। इसके लिए प्रदेश अध्यक्ष ने लगभग पूरी तैयारी कर ली है। नाथ का सबसे अधिक फोकस ग्वालियर-चंबल अंचल पर है। मध्यप्रदेश में आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर प्रदेश कांग्रेस संगठन में भी  जल्द ही बड़े बदलाव हो सकते हैं। सबसे बड़ा फेरबदल ग्वालियर चंबल संभाग में देखने को मिल सकता है। इसकी वजह यह है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थकों के भाजपा में जाने से कांग्रेस इस क्षेत्र में कमजोर हो गई है। इसलिए कमलनाथ की कोशिश है की संगठन को मजबूत कर भाजपा को बड़ी चुनौती दी जाए। यही वजह है कि अब माना जा रहा है कि पूरी कांग्रेस अब चुनावी रंग में दिखेगा।
मप्र में चुनाव में भले ही एक साल बचे हो लेकिन सियासी ठंड में भी दोनों दल लगातार अपने संगठनों को मजबूत करने में जुटे हुए है। भाजपा जहां कई जिलाध्यक्षों को बदल चुकी है तो अब कांग्रेस भी सिंधिया को घेरने के साथ संगठन को मजबूत करने कई जिलाध्यक्षों को बदलने की तैयारी कर रही है। लेकिन संगठन को मजबूत करना कांग्रेस के लिए इतना आसान नहीं होगा। सूत्रों के मुताबिकसबसे बड़ा फेरबदल ग्वालियर चंबल संभाग में देखने को मिल सकता है। कहां जा रहा  है कि कांग्रेस के वरिष्ठ  नेताओं में इसको लेकर मंथन भी हो चुका है। मध्य प्रदेश में 2023 के चुनाव को लेकर ग्वालियर चंबल अंचल पार्टी के सामने क्षेत्र में संगठन को मजबूत करने की चुनौती है। ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ बीजेपी में शामिल होने वाले 22 विधायकों में से ज्यादातर इसी अंचल से है। लिहाजा इन क्षेत्रों में कांग्रेस को चुनावी नजरिए से मजबूत करने के लिए फेरबदल किए जाएंगे।
16 जिलों के अध्यक्षों को बदलने पर  चर्चा
ग्वालियर, शिवपुरी, भिंड, निवाड़ी, मुरैना, अशोकनगर, श्योपुर समेत करीब 16 जिलों के अध्यक्षों को बदलने की तैयारी हो रही है। देखा जाए तो कई जिलों में कांग्रेस की हालत खराब है। सबसे ज्यादा विंध्य और बुन्देलखंड में कांग्रेस कमजोर है। प्रदेश के 13 जिले ऐसे हैं, जहां कांग्रेस का एक भी विधायक नहीं है। इनमें टीकमगढ़, निवाड़ी, रीवा, सिंगरौली, शहडोल, उमरिया, हरदा, नर्मदापुरम, सीहोर, खंडवा, बुरहानपुर, नीमच और मंदसौर जिलों में किसी भी सीट पर कांग्रेस का एक भी एमएलए नहीं हैं। इन जिलों में 42 विधानसभा की सीटें हैं। इन जिलों को लेकर भी कांग्रेस खासा जोर दे रही है। वहीं चंबल पर कांग्रेस का इसलिए भी जोर ज्यादा है, क्योंकि 2018 में कांग्रेस ने सिंधिया को आगे करके चुनाव लड़ा था। चंबल अंचल के एक सीनियर कांग्रेस लीडर ने बताया कि अगले साल चुनाव होने हैं। पार्टी के सामने क्षेत्र में संगठन को मजबूत करने की चुनौती है। ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ बीजेपी में शामिल होने वाले 22 विधायकों में से ज्यादातर इसी अंचल से है। लिहाजा इन क्षेत्रों में कांग्रेस को चुनावी नजरिए से मजबूत करने के लिए फेरबदल किए जाएंगे। ग्वालियर, शिवपुरी, भिंड, निवाड़ी, मुरैना, अशोकनगर, श्योपुर समेत करीब 16 जिलों के अध्यक्षों को बदलने पर चर्चा हुई है। सूत्रों की मानें तो जिलाध्यक्षों की नई लिस्ट पर भी अगले हफ्ते तक जारी हो सकती है।
बदलाव की हो चुकी शुरूआत
चुनावी तैयारियों के तहत ही हाल में कमलनाथ द्वारा प्रदेश के कुछ नेताओं के दायित्वों में बदलाव किया है। जिसे इसकी शुरूआत के तौर पर माना जा रहा है। इसमें नाथ द्वारा प्रदेश कांग्रेस के उपाध्यक्ष चंद्रप्रभाष शेखर को वरिष्ठ नेताओं से समन्वय, संपूर्ण मॉनिटरिंग, कोषाध्यक्ष अशोक सिंह को प्रशासन, मंडलम सेक्टर कार्य की मॉनिटरिंग, उपाध्यक्ष प्रकाश जैन को जिला प्रभारियों से समन्वय और मंडलम सेक्टर कार्य की जिम्मेदारी दी गई है। प्रदेश कांग्रेस के महामंत्री राजीव सिंह को संगठन प्रभारी बनाया गया है। सेवादल के पूर्व अध्यक्ष महेन्द्र जोशी को बाल कांग्रेस, वोटर लिस्ट से संबंधित कार्य, शोभा ओझा को मोर्चा संगठन प्रभारी, जेपी धनोपिया को मप्र कांग्रेस के विभाग एवं प्रकोष्ठ प्रभारी के अतिरिक्त चुनाव आयोग से संबंधित कार्य, विधिक कार्य का जिम्मा दिया गया है।
ग्वालियर-चंबल में अंचल का गणित
दरअसल, ग्वालियर-चंबल अंचल में विधानसभा की 34 सीटें आती हैं, जिनमें से 7 सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं। 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस 34 में से 26 सीटें जीत ले गयी थी। खास बात यह है कि अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित 7 सीटों में 6 सीटों पर कांग्रेस ने कब्जा जमाया था, जबकि बीजेपी को केवल 1 ही सीट मिली थी। हालांकि उस वक्त कांग्रेस के स्टार प्रचारक ज्योतिरादित्य सिंधिया का इसमें बड़ा योगदान था जो अब बीजेपी में हैं। सिंधिया के बीजेपी में शामिल होने के बाद यहां के समीकरण बदल चुके हैं।  उपचुनाव के बाद अजा आरक्षित 7 सीटों में 5 सीटों पर बीजेपी और 3 सीटों पर कांग्रेस का कब्जा है।  दरअसल सिंधिया की वजह से कांग्रेस की सरकार गिरी थी और कमलनाथ इस साल होने वाले चुनाव में हर हाल में सिंधिया को उन्ही के इलाके में मात देकर बदला लेना चाहते हैं। इसकी वजह से इस इलाके में वे संगठन को भी इसी हिसाब से जिम्मेदारी देना चाहते हैं।

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